मेरी मजबूर सी यादें

भुला नहीं पाए हम उसको, मेरी वो मजबूर सी यादें 

याद बहुत आती है हमको, बहुत सारी उसकी बातें 

लाख हमने कोशिश की , सब कुछ वो भुलाने की 

बहुत बुरा सपना था वो तो , दिल को समझाने की 

ना समझा कभी हमने , दिल बड़ा नादाँ होता है 

इससे खेलना किसी का, कितना आसां होता है 

सपनो का महल था मेरा, उसने  कैसे तोड़ दिया 

वादे सारे भूल गया वो , बेवस हमको छोड़ दिया 

बहुत बुरा जालिम था वो ,बहुत सितमगार था 

जुल्म उसने बहुत ढाये , ना कोई मददगार था 

लालची था बहुत बड़ा वो, दौलत का पुजारी था 

वासना का कीड़ा था वो , वो तो एक शिकारी था 

माँ-बाप के दिल को तोड़ा ,बहुत हमें समझाया था 

बहुरूपिये है कितने यहाँ ,सब कुछ तो बताया था 

देखा नहीं उन अश्रु धार को , खुद हमें भरोसा था 

तड़फते छोड़ा था  हमने , कितना उनको कोसा था 

लहू के आँसू पी रहे थे ,उसे कहाँ अहसास था 

कितने हम मजबूर हैं , बस उसका अट्ठास था 

अपनों का भी साथ नहीं,  कैसा ये परिहास था  

हर तरफ बर्बादी दिखती ,  मन बहुत उदास था  

खुद को फिर संभाला हमने, काट दिया हमने वो बंधन 

जीवन नहीं है हार मानना , अपने उर में बसता चंदन

चल पड़े हैं हम तो अकेले ,  अपनी डगर बसाने को 

मज़बूरी हैं वो सब यादें ,  लगे जिन्हें हम भुलाने को 


श्याम मठपाल, उदयपुर

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