खानपान हैं अलग हमारे,
अलग है दामन चोली।
मन के भाव एक हमारे ,
हिंदी अपने दिल की बोली।।
मात्राओं की शान निराली,
व्याकरण सम्मत भाषा।
जैसी बोलें वैसी लिखते,
जन गण मन की अभिलाषा।।
अवधी ब्रज सरस धारायें,
सबके मूल भाव में हिन्दी।
हर बोली अमृत सी इसकी,
ये सबके माथे की बिन्दी।।
अग्रेंजी बोल क्यों इतरायें
छब्बीस वर्ण ही उसमें।
बावन अक्षर से शोभित है,
परम ओज है इसमें।।
राजनीति प्रपंच रचाती,
रुतबे से महरूम है हिन्दी।
हिन्द राष्ट्र का स्वाभिमान,
मेरी भी पहचान है हिन्दी।।
पदम प्रवीण
जयपुर
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