चमक


चमक दमक यहाँ , देख रहे यहाँ -वहाँ , 
फँस गये हाय कहाँ , काँप रहे थरथर ।।

कोई देखता है नूर , देखे कोई यहॉं हूर , 
सब अपने में चूर , उड़ रहे लगा पर ।।

किसी का जमीं पे पाँव , कोई ढूँढ़ रहे गाँव , 
कोई को मिले न ठाँव , कोई खाली कोई भर ।।

यह जग बना मेला , चल रहे रेला -पेला , 
चूर्ण घूर्ण माटी ढेला , वक़्त कहे चलो घर ।।


अंतस्थल भरा प्रेम , पावन भावन नेम ,
रखना कुशल क्षेम , प्यारे मेरे दिलवर ।

 सपन साकार सब , संग रहो तुम तब ,
पूरे होंगे आज अब , हाथ मेरे चल धर ।।

नहीं अब कोई बाधा , जैसे प्रीत कान्हा राधा ,
हमने भी ये है साधा , अपना भी बने घर ।

प्रेरणा से ओतप्रोत , प्रीत रस बहे स्श्रोत ,
शांति सुख का कपोत , किसी का नहीं है  डर ।।


                 माधुरी डड़सेना "मुदिता"

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