ख़ुदा की खुदाई लिखूं


सागर की गोद में है सीप मोती वो लिखूं कि समुन्दर की गहराई लिखूं !

मैं उस आस्मां की ऊंचाई लिखूं की बनाने वाले ख़ुदा की खुदाई लिखूं !!


इसी उलझन में है फसा हुआ कहीं इधर उधर की बातों में है मन मेरा !

तो फिर सोचा कि क्यों न छोड़ सब मैं आज जीवन मृत्यु की गहरायी लिखूं !!


कभी देखूं जो मैं बारिश में गिरते हुए पत्तों को तो किआ मैं महसूस करूँ !

बरसती बूंदों का चमकता नगीना लिखूं कि उसके संगीत की रुबाई लिखूं !!


बादलों की हवा संग अठखेलिआं लिखूं  कि उड़ती चिड़िया की चतुराई लिखूं !

जीवन की डगर है कठिन लिखूं कि ग़म ए दिल में बसी गहरी गहरायी लिखूं !!


आईने में से झांकते हुए अक्स को क्या मैं अपना कहूँ कि कोई बेगाना लिखूं !

गिले शिकवे खुदा से ख़तम लिखूं कि मैं जीवन के गीत रूह की रुबाई लिखूं !!


टूटा है सुर कि रूठा है दिल ज़िंदगी का इतराना तो कहीं मौत की मोहलत है ख़तम !

अब चढ़ते हुए प्यार का सफर हो परवान लिखूं कि मरते हुए की कबर खुदाई लिखूं !!


कहाँ हूँ मैं कौन हूँ क्यों हूँ ये खुद से करूँ सवाल कि दुनिया से करूँ मैं सवाल कोई !

जो उठे हैं मन में इतने सारे सवाल बवाल लिखूं कि रूह की उड़ान हवा हवाई लिखूं !!


क्या लिखूं ख़ुदा के बारे में क्या करूँ दुआ मैं मिलने की ढूंढूं बाहर कि खुद में तलाश करू!

अब इस रूह की आज़माइश करूँ ब्यान कि उस रूह से रूह के मिलन की बधाई लिखूं !! 


डॉ गुरिंदर गिल मलेशिया

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