गुरू पूजन को हम चले पाकर आशीष
ठोकर खाकर सम्हल गए पाकर आशीष
हम तो थे कच्ची मिट्टी के यारो
जो बने आज पाकर गुरूवर का आशीष
श्रद्धा सुमन रख गुरू चरणो मे करूँ वंदना
व्यर्थ नहीं होती वंदना जाते देकर आशीष
तन मन धन समर्पित है गुरू जीवन को
प्रातः वंदना करू जिनकी मै लेकर आशीष
शीब्बू बन कर ला सकूं दूध शेरनी का
बन सकूं मै भी वो, पाकर आशीष
प्राण फूंक मिट्टी मे एकलव्य ने किया प्रणाम
गुरू दक्षिणा में वो दे गया पाकर आशीष
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मनमोहन पालीवाल राजसमंद
कांकरोली
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