महल बस अपनी गाते हैं

नहीं होता मोह किसी से,

अपना राग सुनाते हैं।

शान में हो न कोई कमी,

 महल बस अपनी गाते हैं।। 

मुफलिसी से नहीं वास्ता,

गरीबों का मखौल उड़ाते हैं।

कीड़े मकोड़े लगते निर्धन,

हर वक्त औकात बताते हैं।।

उन बिन काम नहीं चलता,

समय आने पर रिरियाते हैं,

शान में हो न कोई कमी,

 महल बस अपनी गाते हैं।। 

रहते आज जिन महलों में,

गरीबों ने ही बनाये हैं।

रात दिन पसीना बहाकर,

इन्हें खड़ा कर पाये हैं।।

बारीक बारीक कामों में,

वो जी जान लगाते हैं।

शान में हो न कोई कमी,

 महल बस अपनी गाते हैं।। 

महलों में लगे उपकरण,

गरीब ही तो बनाते हैं।

एसी फ्रिज और टीवी,

 ऊपर से नहीं आते हैं।।

गरीबों की मेहनत से,

ऐशोआराम पाते हैं।।

शान में हो न कोई कमी,

 महल बस अपनी गाते हैं।। 

गरीबों की मेहनत से,

इन्हें सरोकार नहीं।

खून भी चूस लेते ये,

देते पूरी पगार नहीं।।

गरीबों बिन हस्ती नहीं,

ये समझ नहीं पाते हैं।

शान में हो न कोई कमी,

 महल बस अपनी गाते हैं।।


प्रवेश "अकेला", आगरा

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