हिन्दी की व्यथा

अनिल ओझा,इंदौर 


हम हिन्दी के पुजारी हैं और हिन्द के वासी।

क्यों  हिन्दी के चलन में  छाई  है ये उदासी?


बोलें जो हिन्दी करते हैं अंग्रेजी मिलावट।

हस्ताक्षर  करें  तो  अंग्रेजी   लिखावट।।

बच्चे पढ़ें कान्वेंट में सब की यही चाहत।

ये हाल अपना देख कर हिन्दी हुई आहत।।

हिन्दी तो आज भी हमारे प्यार की प्यासी।

क्यों हिन्दी के चलन में  छाई है ये उदासी?


हिन्दी  हो  राष्ट्र भाषा से, इनकार नहीं  है।

अन्य भारतीय भाषाओं से तकरार नहीं है।।

है कौन शख़्श जिसको माँ से प्यार नहीं है।

फिर हिन्दी का वर्चस्व क्यों स्वीकार नहीं है?

माँ  को न माने माँ , परदेसी  को माँ-सी।

क्यों हिन्दी के चलन में छाई है ये उदासी?


माँ भारती के भाल पर हिन्दी का ताज हो।

सारे  ही हिंदुस्तान  में हिन्दी  का राज हो।।

हिन्दी में ही सम्पन्न  सभी  राज काज  हो।

होने  का हिंदुस्तानी  हमें भी तो नाज़  हो।।

अब  न कोई चाल  चले  और सियासी।

क्यों हिंदी के चलन में छाई है ये उदासी?


अनिल ओझा,इंदौर 

No comments:

Post a Comment

Featured Post

महावीर तपोभूमि उज्जैन में द्वि-दिवसीय विशिष्ट विद्वत् सम्मेलन संपन्न

उज्जैन 27 नवम्बर 2022। महावीर तपोभूमि उज्जैन में ‘उज्जैन का जैन इतिहास’ विषय पर आचार्यश्री पुष्पदंत सागर जी के प्रखर शिष्य आचार्यश्री प्रज्ञ...

Popular