कवि तुम लिखो दिवस और रात कवि तुम...
विधि ने तुमको दे रख्खी है यह स्वर्णिम सौगात
करना नवनिर्माण तुम्हें ही करना जीर्ण विसर्जन
आशा को पतवार बनाकर करना है नौकायन
तेरी कोशिश ठीक करेगी सब बिगड़े हालात
कवि...
रचनाकर्म नहीं है क्रीड़ा सहनी पड़ती पीड़ा
मन का दीप निरंतर जलता दृढ़ता बिन है व्रीड़ा
करनी होगी सतत साधना तभी बनेगी बात
कवि..
शब्द बाण से ध्यान लगाकर लक्ष्य करो संधारण
अगर नहीं कुछ कह पाये तो जीवन जिये अकारण
"किरन " तुम्हारा शस्त्र शिरोमणि है ये क़लम दवात।
कवि --------
डॉ किरण जैन
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