ज़िन्दगी



जिंदगी कभी सुनहरी धूप है

कभी रेगिस्तान का  तपता रेत है

जिंदगी कभी नदी किनारे ठन्डी बरगद की सी छांव है

जिंदगी कभी है चंचल हसीना कभी बहता हुआ है पसीना

जिंदगी एक राज है बढ़ती हुई सी प्यास है

जिंदगी कभी इतनी हंसी है मन में उठता उल्हास है

 जिंदगी कभी बुझता दिया

 कभी दिवाली की सी रात है

जिंदगी जो जिए हर हाल में जिंदगी कमाल है

जो मन ले हार यहां

वो है बेकार यहां जिंदगी एक अनसुलझी  पहेली

सुलझे तो क्या बात है जिंदगी ए जिंदगी तेरे क्या अंदाज है

जितना भी जानू इसे इतनी बढ़ती आस है

जिंदगी क्या कहने तेरे बिन सब उदास है

जिए तो सालों जिए वरना एक पल में खलास है

जिंदगी कभी सुनहरी धूप है कभी छरहरी छांव है

  अनीता पांचाल 


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