पर्यावरण के प्रति हमारा कर्तव्य
जी हां ! ईश्वर ने, खुदा ने मनुष्य के लिए बेहद ख़ुशगवार, खूबसूरत, हसीन दुनिया बनाई है । जिसका जर्रा - जर्रा मनुष्य के उपयोग के लिए है । हवा श्वास लेने के लिए ,पानी पीने व अन्य कामों के लिए , फल- सब्जी अनाज खाने के लिए। इसके अलावा और भी अनगिनित चीजें जो इस धरती पर पाई जाती हैं । ईश्वर की तरफ से इंसानों को दिया गया नायाब तोहफा है जो कभी खत्म नहीं होने वाला है। अब चूंकि यह सभी चीजें हम मनुष्यों के लिए खुदा की तरफ से सौगात है, उपहार है अर्थात इंसान की है तो फिर इसका मतलब यह हुआ कि एक तरह से इंसान इन सब चीजों का मालिक हैं और रक्षक भी।
लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या मनुष्य मालिक होने का, रक्षक होने का फर्ज शिद्दत से निभा रहा हैं या अपनी ही चीज को बिगाड़ने , नष्ट करने पर या प्रदूषित करने पर तुला हुआ है। हम अगर अपने कार्यों को और उसके नतीजों को, परिणामों को देखे,गौर करें तो यही लगता है कि हम अपने ही धरती के फल - फूल पेड़, नदियां जल ,हवा ,नदी, पहाड़ आदि के शत्रु बन बैठे हैं और साथ ही शत्रु बन बैठे हैं हमारे बच्चों की भविष्य के जो कि हमारी सबसे बड़ी संपत्ति है । आज हम मनुष्य नदियों को प्रदूषित कर बोतलबंद पानी पीने को मजबूर हैं। वायु को प्रदूषित कर बीमारियों से पीड़ित है। अनाज , सब्जी, फल को रसायनों के बेजा इस्तेमाल से दूषित कर असाध्य रोगों से पूरी मानवता को दुखी किए हुए हैं । बात यहीं पर खत्म नहीं होती क्योंकि हमारे मूर्खता पूर्ण कार्यों से इंसान ही नहीं पशु-पक्षी भी प्रभावित हो रहे हैं । यही कारण है कि बहुत से पशु पक्षियों की प्रजातियां समाप्त हो गई हैं या नष्ट होने के कगार पर हैं । पहाड़ खत्म होते जा रहे हैं । जंगल स्माप्त हो रहे हैं तो शहर सीमेंट - बजरी के जंगल बनते जा रहे हैं। नदियां गंदे पानी की नालियां बनती जा रही है । दरिया जहाजों ,युद्ध पोतों और नेट के वायर का डिब्बा बनते जा रहे हैं । जीवनदाई वायू जहरीली हो चुकी हैं । इन्हीं सब बातों का परिणाम है कि प्रकृति हमें तूफान , भूकंप महामारी जैसे प्रकोपों से जैसे सचेत कर रही हैं, संकेत दे रही है । आज दुनिया जिस तरह कोरोनावायरस से आशंकित औऱ भयभीत है। जिस तरह से ये रोग मनुष्यों को काल का ग्रास बना रहा हैं । हमारे लिए खतरे की घंटी है ,सूचना है , सावधान, सचेत रहने की। लेकिन अगर मनुष्य अभी भी नहीं सुनता है तो प्रकृति कभी ऐसे ही किसी जलजले से , महामारी से सभ्यता का अंत कर सकती हैं, जीवन चक्र को समाप्त कर सकते हैं । आज के दौर में लोक डाउन जो कि एक अप्रत्याशित घटना है आज की दुनिया के लिए , उसके बाद भी मनुष्य जागरूक नही होता है तो यह अपने ही कुल्हाड़ी मारने वाला कदम साबित होगा इसलिए अति आवश्यक है कि हम इको फ्रेंडली बने । प्रकृति को अपने अनुकूल बनाने की बजाय स्वयं प्रकृति के अनुकूल बने । उस पर शासन करने की बजाय उसके सेवक बने भक्षक बनने की बजाय रक्षक बने ताकि अगली पीढ़ी को एक स्वस्थ सुंदर , प्रदूषण रहित पर्यावरण की सौगात दे सकें । अगर हम ये कर पाते हैं तो हमारा ये कदम उनके लिए सबसे बड़ा उपहार होगा, वसीयत होगी।
इसलिए परम् आवश्यक है कि हम अपनी सोच बदले , मानसिकता बदले और अपने आपको बदलाव के लिए जेहनी तौर पर तैयार करें । इसके लिए हमें कोई बड़ा त्याग करने की जरूरत नहीं बल्कि छोटे-छोटे सुधारात्मक कदम उठाने की जरूरत है। जैसे कि -- प्लास्टिक थैली की जगह कपड़े या कागज की थैली का प्रयोग करें । जन्मदिन पर केक की जगह पौधारोपण कर यादें सुरक्षित करें । एसी कूलर का कम से कम प्रयोग करें और परिवार के साथ करें। शादी उत्सव में माला की जगह पौधे भेंट करे। लाल बत्ती पर गाड़ियां बंद करें । सार्वजनिक यातायात का प्रयोग करें। पेड़ लगाने से पहले पालन-पोषण की जिम्मेदारी लें। एक पेड़ काटने से पहले पांच पेड़ लगाएं । घर आंगन में पेड़ पौधों के लिए थोड़ी जगह जरूर रखें। पहाड़ों पर सड़क बिजली की बजाय उनके निवासियों को मैदान पर बसाए। पहाड़ों के वास्तविक स्वरूप को बनाए रखें दाल सब्जी का पानी इकट्ठा कर पेड़ पौधों में डालें। जानवरों के लिए कुंडे, पक्षियों के लिए परिंडे लगाए। एक रोटी गाय- कुत्ते के लिए जरूर दें । घूमने जाते समय गंदगी ना फैलाएं । कचरा प्लास्टिक की थैली में बंद करके ना फेंकें। अनावश्यक रूप से वाहनों का प्रयोग ना करें। साइकिल का उपयोग शुरू करे। पैदल चलने की आदत डालें। जंगलों को बचाएं।
ऐसे छोटे छोटे कदम उठाकर हम न सिर्फ जन जागरूकता फैला सकते हैं बल्कि साथ ही अपनी पृथ्वी को , धरती माता को , सुरक्षित रख सकते हैं।
शबनम भारतीय
फतेहपुर शेखावाटी
सीकर,राजस्थान
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