सृजन का दीप जले दिन रात


सृजन का दीप जले दिन रात


लिखें लेखनी सोच समझ कर ,देख नए हालात।


विषय सामयिक सृजन का, दीप जले दिन रात।।

 चार स्तंभ अटल खड़े हैं ,राष्ट्र का मान बढ़ाने को ।

कलम की ताकत बनी हमेशा, उच्च शिखर पहुंचाने को।

 सोया देश जगाने को , कोई ना कर दे आघात।

विषय सामयिक सृजन का, दीप जले दिन रात।।


हर विपदा मेंआइना बन, सत्य ज्ञान कराया है।

राजा महाराजा सत्ता का, कलम ने जोश बढ़ाया है।

हर रस का आनंद सिखाया, खुलकर कह दी बात।।

विषय सामयिक सृजन का,दीप जले दिन रात ।।


वेद पुराण महाभारत गीता ,सीख हमें दे जाते हैं।

एक सूत्र में बांधा जग को, प्रेम त्याग सिखलाते हैं।

रहस्य सारे खुल जाते, उलझी बन जाती बात।

 विषय सामयिक सृजन का, दीप जले दिन रात।।


 नव पुरातन सुधी जनों ने, साहित्य रूप संवारा है।

 स्वतंत्र विधा कहीं छंद विधा, निर्बल को भी तारा है।

जांगिड़ घट उजियारा हो, आप भी बैठो पांत।।

 विषय सामयिक सृजन का, दीप जले दिन रात।। 


 सुरेश कुमार जांगिड़ नवलगढ़

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