सशक्त विचारधारा आदर्श

आदर्श जीवन का वह पहलू है जो जीवन को अनन्त शिखर तक पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त करता है। सभी सकारात्मक गुणों  से जो व्यक्ति परिपूर्ण होता है। वह आदर्शता का ताज पहनता है। कहने का तात्पर्य यह है की व्यक्ति का व्यक्तित्व ही सर्वोपरि होता है। व्यक्तित्व का सीधा संबंध संस्कार और मर्यादा से होता है ।किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके नाम से नहीं बल्कि उसके व्यक्तित्व से करनी चाहिए। व्यक्तित्व उस व्यक्ति का निव होता है ।जिस पर आदर्श रूपी इमारत खड़ी होती है। धनी तो सब होते हैं। ज्ञान में धनी होते है, कोई साहित्य मे धनी

 होते है ,कोई धन में धनी होते है, कोई मन से धनी होते है। अमीर या गरीबी का अर्थ भौतिकवाद ज्ञान या धन से नहीं करनी चाहिए। धनी ,

 अमीरी या गरीबी का अर्थ उसके व्यक्तित्व से करनी चाहिए। भौतिकवाद ज्ञान या धन व्यक्ति के रहने तक ही सीमित है ।लेकिन व्यक्तित्व का धनी आदमी आदर्श ताज पहने हुए हमेशा हमेशा के लिए जीवित रहता है ,या अमर हो जाता है। व्यक्ति का स्थूल शरीर पंचतत्व में तो मिल जाता है। लेकिन उसके व्यक्तित्व को जलाने के लिए संसार में कोई ऐसी चीज नहीं है ।भगवान भी उसे मिटा नहीं सकते, जला नहीं सकते हैं। क्योंकि वह लौकिक से अपने व्यक्तित्व अवर आदर्श ताज पहने अलौकिक हो जाता है। कम मानसिकता वाले लोग संसारीक उपलब्धियों में ही खुश रहते हैं, और अपने अहंकार में वह अपने आप को सर्वोपरि समझने लगते हैं। जबकि यह सत्य नहीं है।लोग उनके नकारात्मक ज्ञान और धन से डरते हैं। उससे अलग रहते हैं। लेकिन व्यक्ति का अहंकार इतना हावी होता है, कि वह यह समझ बैठता है, लोग हमसे डरते हैं। कभी-कभी ऐसा भी देखने को मिलता है, की व्यक्ति किसी व्यक्ति का इज्जत करता है ।वह व्यक्ति अपना अहंकार के वशीभूत होकर यह समझने लगता है, कि वह व्यक्ति डर रहा है। लोगों से मेरा गुजारिश है कि वह अपने व्यक्तित्व को संस्कार मर्यादा और परिश्रम की तराजू पर तौलें तब अपने को धनी अमिर  या गरीब की श्रेणी में रखने का विचार करें ।सहभागिता इमानदारी लगनशीलता और पूर्वजों से मिला हुआ वह ज्ञान जो अपने व्यक्तित्व को निखार सके। और आदर्श रूपी एक इमारत तैयार कर सकें उस तरफ अग्रसर होना चाहिए।

कोई जमीर को बेचकर अमीर बन गया।

जो जमीर नहीं बेचा वह फकीर बन गया।।

दीनानाथ  

रूपसागर, 

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