वक्त के साथ बहुत कुछ बदला है.. पहले हम अपने ज़ख़्म (परेशानियां) किसे बताते तो महरम मिलता.. क्योंकि लोग हाथों में मरहम लेकर चलते थे.. फिर लोग एक हाथ में मरहम और दूसरे में नमक लेकर चलने लगे.. पर आजकल एक हाथ में नमक और दूसरे में खंजर होता है.. इसलिए अपने जख्मों को हर किसी के सामने बेपर्दा ना करें.. पहले लोग हम के साथ जीते थे.. फ़िर मैं के साथ जीने लगे.. पर आजकल तो तू तू मैं मैं के साथ जीते हैं.. हाल-ए-दौर के बारे में तो फकत इतना कहेगा ये क़लमकार..!
किसे दिखाएं जख्म़ अपने आज ऐसा हमदम नहीं मिलता..!
कोई नमक रखता कोई खंजर हाथों में महरम नहीं मिलता..!
मौसम की तरह बदलने लगे हैं आजकल हर एक के मिज़ाज..!
वक्त के साथ जो कभी ना बदले अब ऐसा सनम नहीं मिलता..!
कौन है ज़माने में जिसे जिंदगानी में रंजो ग़म ना मिले हो..!
ख़ुश किस्मत होंगे वो लोग जिसे ज़िंदगी में अलम नहीं मिलता..!
इसलिए अपने जख्मों को कभी भी बेपर्दा ना करना तू बंदे..!
हवा देने वाले बहुत मिलेंगे इलाज़े ज़ख्म हरदम नहीं मिलता..!
बड़ा कठिन दौर है हर कोई आज ख़ुद में ही ख़ुद गुम है..!
हर तरफ़ मैं मै की रट है किसी भी जुबां पे हम नहीं मिलता..!
हमदम=अंत तक साथ देने वाला मित्र
अलम=दुःख,रंज
कमल सिंह सोलंकी
रतलाम मध्यप्रदेश
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