कर से कर स्पर्श पोर से।
अचक अचक सहलाते हैं।
धर अधरों पर अधर बांसुरी।
को फिर मधुर बजाते हैं।
सप्त स्वरों से लगें थिरकने।
मन दीवाना हो जाता।
स्वर लहरी को सुन ना जाने।
किन ख्वाबों में खो जाता।
मधुर मधुर यादों के सपने।
मन में खूब सजाते हैं।
धर अधरों पर अधर बांसुरी।
को फिर मधुर बजाते हैं।।1।।
मोर पंख में प्रियतम की।
आभा नयनों से निरख रही।
मधुर मिलन की मधुर कल्पना।
से मन ही मन थिरक रही।
कब बाहों में लेकर मुझसे।
नैन से मिलाते हैं।
धर अधरों पर अधर बांसुरी।
को फिर मधुर बजाते हैं।।2।।
काली काली अलकें लम्बी।
महक रहा जिन पर गजरा।
सुरमई गोल गोल आंखों पर।
चहक रहा काला कजरा।
थिरक रहे हैं होठ नशीले।
मानो उन्हें बुलाते हैं।
धर अधरों पर अधर बांसुरी।
को फिर मधुर बजाते हैं।।3।।
ग्रीवा पर है हार शुशोभित।
बाजूबंद कलाई में।
ध्यान मग्न है पागल मनुआं।
केवल कृष्ण कन्हाई में।
लगा लगा मस्तक पर चंदन।
कान्हा खूब रिझाते हैं।
धर अधरों पर अधर बांसुरी।
को फिर मधुर बजाते हैं।।4।।
चढता प्रीत रंग तन मन पर।
मन ही मन बतियाते हैं।
नींद नहीं आती पल भर भी।
तनिक ना खाना खाते हैं।
रोम रोम प्रियतम की यादों।
के रंग में रग जाते हैं।
धर अधरों पर अधर बांसुरी।
को फिर मधुर बजाते हैं।।5।।
🙏हरीश चंद्र हरि नगर🙏
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