🎺🎺🎺🎺🎺‌सिंहरथ प्रवर्तक त्रिलोक तीर्थ प्रणेता समाधि सम्राट आचार्य श्री सन्मति सागर जी महाराज की परम शिष्या, अनेक विधानों की लेखिका, पूज्य आर्यिका 105 मुक्ति भूषण माताजी का धरावतरण दिवस 6 नवम्बर 2021 को त्रिलोक तीर्थ (बड़ा गांव) में अति भव्यता के साथ आयोजित किया जा रहा है ।आयोजन में देश के मूर्धन्य विद्वान, भक्तगण ,श्रेष्ठी  अपनी विनयांजलि समर्पित करेंगे .कार्यक्रम का आयोजन जूम पर किया जाएगा ।सभी सादर आमंत्रित है

दिनांक -6/11/21

  समय - दोपहर 3-5 बजे


पाखण्ड

 आज जब आए दिन हम देखते है कि बाहर से तो धर्म नैतिकता,आदि खूब दिखते है किन्तु ईर्ष्या द्वेष घ्रणा, नफरत आदि दिनो दिन बड़ रही है तब पाखण्ड पर देखिए  कुछ इस तरह


पाखण्ड मे खण्ड मतलव हिस्सा 

पाखण्ड मे पा मतलव पाप

पाखण्ड से तब धर्म मलिन होता

पाखण्ड से तब जिंदगी को शाप


पाखण्ड से पनपती अंध श्रृद्धा 

पाखण्ड से तब रूह जाती काँप

पाखण्ड रक्षित धनिक धन से

पाखण्ड का कोई नही तब माप


पाखण्ड कर पाखण्डी पूजें तब

पाखण्ड की प्रमाणित छाप

पाखण्ड का ही ओड़ चोला

पाखण्ड से तब पद प्रतिष्ठा नाप।


पाखण्ड ही अब धर्म लगता

पाखण्ड ही उच्चता की माप

पाखण्ड की इस क्रूरता से

पाखण्ड लीजिए अब भाँप


पाखंड मे जब संत उलझे

पाखण्ड से तब भारी प्रलाप 

पाखण्ड तब अब तो समझिए 

पाखण्ड पथ खूनि हुए पद चाप


राजेन्द्र जैन अनेकांत 

बालाघाट

अबकी बार दीवाली में.





 राष्ट्रहित का गला घोंटकर,

    छेद न करना थाली में...

मिट्टी वाले दीये जलाना, अबकी बार दीवाली में..

देश के धन को देश में रखना,

      नहीं बहाना नाली में..

मिट्टी वाले दीये जलाना,

अबकी बार दीवाली में..

बने जो अपनी मिट्टी से, 

   वो दिये बिकें बाज़ारों में...

छुपी है वैज्ञानिकता अपने,

    सभी तीज़-त्यौहारों में...

चायनिज़ झालर से आकर्षित,

          कीट-पतंगे आते हैं...

जबकि दीये में जलकर,

   बरसाती कीड़े मर जाते हैं..

कार्तिक दीप-दान से बदले,

     पितृ-दोष खुशहाली में...

मिट्टी वाले दीये जलाना

 अबकी बार दीवाली में..

मिट्टी वाले दीये जलाना

अब की बार दिवाली मे..

       कार्तिक की अमावस वाली, 

    रात न अबकी काली हो...

दीये बनाने वालों की भी,

   खुशियों भरी दीवाली हो...

अपने देश का पैसा जाये,

    अपने भाई की झोली में...

गया जो दुश्मन देश में पैसा,

    लगेगा रायफ़ल गोली में...

देश की सीमा रहे सुरक्षित,

      चूक न हो रखवाली में...

मिट्टी वाले दीये जलाना...

 अबकी बार दीवाली में..

मिट्टी वाले दीये जलाना..अबकी बार दीवाली में.

         मधुबाला

मानवीयता की हवा खिलाफ है

 आज की रचना में आपको राजनीतिक, सामाजिक और पारिवारिक रंगों का मिश्रण मिलेगा.. मतलब थ्री इन वन.. बस शर्त यह है की मेरे लफ़्ज़ों की गहराई को समझें..!


चंद खोटे सिक्के जो कभी भी चल ना सके बाजार में..!

वो भी आज कमी निकाल रहे हैं हर एक के किरदार में..!


गैरों के सामने आईने रखने का यह कैसा चला चलन है..!

जो धोखा फरेब की दुकान है वो खुद को गिनते ना गुनहगार में..!


उजड़ चुकी है सारी बस्तियां जो शुमार थी कभी शरीफों में..!

वो सब बस्तियां आजकल सिर्फ मौकापरस्तों से गुलजार है..!


मानवीयता की हवा खिलाफ है आजकल हर एक शख्स से..!

कभी ये हर एक साथ थी आज दिखती नहीं है दो चार में..!


अदब की ज़मीन बंजर हो चली है अब बेअदबी का आलम है..!

अब कहां वो पहले सी मह़क मिलती है आज आदर सत्कार में..!


पत्ते गर पीले पड़ जाते तो डालियां उन्हें दूर छिटक देती है..!

डालियों वाले दस्तूर का चलन है आज बुजुर्गों के संसार में..!


मन्नत पूरी ना हो तो लोग आज भगवान तक को बदल देते हैं..!

हमने देखा लोगों को भटकते अलग-अलग भगवान के दरबार में..!


कमल सिंह सोलंकी

रतलाम मध्यप्रदेश

श्रमण श्री विशल्यसागर जी मुनिराज को झारखण्ड सरकार ने राजकीय अतिथि सम्मान से घोषित

       


 
परम पूज्य आचार्य 108 श्री विराग सागर जी महाराज के परम शिष्य श्रमण मुनि 108 श्री विशल्य सागर जी महाराज को झारखंड सरकार द्वारा राजकीय अतिथि घोषित किया गया है। सरकार के इस सराहनीय कार्य के लिए अध्यक्ष पदम छाबड़ा, मंत्री सुभाष विनायक्या, पूर्व उपाध्यक्ष अजय गंगवाल, धर्मचंद रारा, उमेद मल जी काला, कमल विनायक्या प्रदीप बाकलीवाल, संजय पाटनी, प्रमोद झांझरी, संजय छाबड़ा, हेमंत सेठी, सीए महेंद्र बड़जात्या, जैन महिला जागृति की अध्यक्षा मंजुला विनायक्या, प्रियंका पाटनी, राकेश गंगवाल, प्रोफेसर सुरेश कुमार पांड्या, राजकुमार जैन, कोडरमा जैन समाज के अध्यक्ष  विमल जी जैन, सुरेंद्र जी काला, ललित जी सेठी ने आभार प्रकट किया है।आचार्य श्री द्वारा रांची में अभूतपूर्व धर्म प्रभावना की गई है नवंबर में सराक क्षेत्र में भव्य जैन मंदिर का पंचकल्याणक होगा दीपावली के पश्चात आचार्य श्री ससंघ सराक क्षेत्र के लिए विहार करेंगे

 दिल्ली में हुआ ऐतिहासिक संत मिलन


राजधानी दिल्ली के नवोदित तीर्थ चक्रवर्ती भगवान भरत ज्ञानस्थली दिगम्बर जैन तीर्थ, बड़ी मूर्ति, क्नॉट प्लेस में प्रशममूर्ति आचार्य श्री 108 शान्तिसागर जी महाराज 'छाणी' की परम्परा के प्रमुख संत परम पूज्य आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज का प्रथम बार आचार्य श्री 108 अनेकांत सागर जी महाराज ससंघ एवं गणिनी प्रमुख आर्यिका श्री 105 ज्ञानमति माताजी ससंघ से भव्य मंगल वात्सल्य मिलन हुआ| इस अवसर पर भारी संख्या में उपस्थित गुरुभक्तों ने संत-मिलन के इन अद्भुत पलों के साक्षी बनकर स्वयं को धन्य किया| प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री 105 चंदनामती माताजी व पीठाधीश श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी ने आचार्य श्री के चरणों में सादर नमन करते हुए इस ऐतिहासिक मंगल मिलन की बेला को जैन समाज के लिए अविस्मरणीय व सुखद बताया|

गणिनी आर्यिका श्री 105 ज्ञानमति माताजी ने सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि लगभग 20 वर्षों के पश्चात् हमारा राजधानी दिल्ली में आगमन हुआ है, इस लम्बे अंतराल के मध्य दिल्ली का ही एक बालक अतिवीर बन गया जो वर्तमान में जैन धर्म की पताका को नित नयी ऊंचाइयों पर ले जाने में सक्षम हैं| आचार्य श्री का वात्सल्य प्राप्त कर आज ऐसा लग रहा है जैसे हमें बड़ा भाई मिल गया हो| माताजी ने आगे कहा कि वह माँ अत्यंत पुण्यशाली होगी जिसकी कुक्षी से ऐसे तेजस्वी बालक ने जन्म लिया| आचार्य श्री अतिवीर जी मुनिराज का विराट व्यक्तित्व तथा विलक्षण सोच अकल्पनीय है|

इस अवसर पर आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज ने कहा कि जैन साधुओं की परंपरा में आर्यिकाओं में आर्यिका श्री सुपार्श्वमती माताजी, आर्यिका श्री विशुद्धमती माताजी, आर्यिका श्री स्याद्वादमति माताजी व आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के रूप में चार मजबूत स्तम्भ हैं जिनमें से तीन स्तम्भ को हम खो चुके हैं| अंतिम स्तम्भ आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी के पास अथाह अनुभव व ज्ञान का भंडार विद्यमान है| हमारा परम सौभाग्य है कि अपना दिशा-निर्देश व अनुभव प्रदान करने के लिए हमारी माताजी हम सबके मध्य आज उपलब्ध हैं| आचार्य श्री के आगे कहा कि दिल्ली वासियों को माताजी का जितना स्नेह व आशीर्वाद प्राप्त हुआ है, शायद ही वह अन्य किसी राज्य को मिला होगा|

राजधानी दिल्ली में माताजी के आशीर्वाद की चिरस्थायी स्मृति बनाये रखने के उद्देश्य से हम सभी को साथ मिलकर एक कीर्तिस्तम्भ का निर्माण इस क्षेत्र में करना चाहिए| आचार्य श्री ने आगामी शरद पूर्णिमा पर माताजी के जन्मदिवस के अवसर पर दिल्ली में विराजित सभी साधु-साध्वियों के मंगल सान्निध्य में ऐतिहासिक संत सम्मलेन करवाने की घोषणा की जिसकी सभी ने करतल ध्वनि से अनुमोदना की| इस सम्मलेन के मध्य ही कीर्तिस्तम्भ का शिलान्यास भी किया जायेगा तथा दिल्ली जैन समाज द्वारा माताजी का भव्य गुणानुवाद समारोह का आयोजन होगा| आचार्य श्री ने आगे कहा कि जिन भरत भगवान के नाम पर इस देश का नाम भारत पड़ा, ऐसे चक्रवर्ती भगवान भरत स्वामी की 31 फीट उत्तुंग प्रतिमा देशभर में 108 स्थानों पर विराजित की जानी चाहिए जिससे कि जैन धर्म की कीर्ति का यशोगान युगों-युगों तक होता रहे| पूज्य आचार्य श्री अनेकांत सागर जी महाराज ने भी समर्थन करते हुए समस्त समाज को इन ऐतिहासिक कार्यों में तन-मन-धन से सहयोग करने हेतु प्रेरित किया|


 


 किसी भी दाम्पत्य जीवन में तलाक शब्द ही तबाही का दूसरा नाम है, यह सिर्फ दो व्यक्ति ही नहीं वरन उनसे जुड़े कई परिवारों को भी अपने अंदर समेट लेता है।



खुशियों की होम डिलीवरी तो अमूमन सभी चाहते हैं मगर तलाक जैसा अनचाहे मेहमान को कौन घर बुलाना चाहे? फिर भी गर नियति को यही मंजूर होता है तो इस पर इंसानों का कोई बस नहीं चलता है। तलाक किसी भी सुखद दाम्पत्य जीवन के प्लानिंग में नहीं होता, जीवन में यह मोड़ जब भी आता है ज़िन्दगी के लिए चुनौतीपूर्ण और पीड़ादायक ही होता है। इसके एक नहीं बहुत सारे कारण हैं, जिसमें कुछ मुख्य कारणों का उल्लेख अवश्य करना चाहूँगी।


प्रथम दृष्टया देखें तो, अब महिलाओं में जागरूकता आ गई है। वह भी अपना अधिकार जानने और मांगने लगीं है। घर हो या दफ़्तर, वह दबकर या फिर अपमानित होकर या फिर यूँ कह लीजिए कि रौब सहकर नहीं रहना चाहती है। आप इसे अहंकार कह लीजिए या फिर आत्मसम्मान। सबको तो नहीं पर कुछ महिलाएं खासकर जो काफी पढ़ी-लिखी महिलाऐं है, जो आत्मनिर्भर हैं उनमें कुछ तो कतई समझौता नहीं करना चाहती। चाहे वो लड़का हो या लड़की। वैसे ज्यादातर तलाक की स्वीकृति लड़कों के तरफ से ही पाया गया है। लड़कियाँ ना स्वयं अपना अपमान बर्दाश्त कर पाती है और ना ही घरेलू झगड़े में उसके परिवार वालों को गाली-गलौज, अपशब्द या अपमान जनक कोई व्यवहार सह पाती है। सामान्य सा मनोविज्ञान है वह जितना प्रेम और परवाह अपनें पार्टनर के लिए करती है, उतना उससे अपेक्षा भी करती है।


विश्वास किसी भी मजबूत रिश्ते के बीच की एक महत्वपूर्ण कड़ी होती है। जहाँ कहीं भी इसकी कमी खटकती है, बस टोक-टाक शुरू हो जाता है, यह परस्पर दोनों तरफ से होता है जो दरार डालने के लिए पर्याप्त होता है।


अगर हम लड़कों की बात करें तो इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में 
लड़के भी अपनी साथी से यही उम्मीद करते हैं। वह भी चाहता है कि उसकी पत्नी बिल्कुल रिजर्व रहे, ज्यादा आज की आधुनिक दुनिया में किसी और पुरूष के संसर्ग में ना आए। मगर आज आलम यह है कि आधुनिकता के इस दौड़ में पच्चीस फीसदी महिलाओं को यह बंधन किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं, तभी दोनों नए रास्ते की तरफ मुड़ना शुरू कर देते हैं।


छोटी-छोटी बातों को मठेर कर रिश्ते निभानी जानी चाहिए, दादी-काकी हमें यही सिखाती है। अब यह सब सहकर जीवन जीने वाली महिलाओं को आज के दौर में गवार और लाचार कहा जाता है। आज किसी भी रिश्ते में समझौता नामक हथियार का धार बहुत मुड़झाया सा लगता है। यही कारण है कि लोग बिना सोचे-समझे फैसले लेने पर अमादा हो जाते हैं।


पति पत्नी के रिश्तों में कम, सही और उचित शब्द ही परोसा जाए तो बेहतर है, पर यह भी मुमकिन तो नहीं जीवन भर के लिए। यह भी बहुत बड़ा कारण है दाम्पत्य के जीवन में मित्रता न होना,
कई बार तो कारण दहेज भी हुई है, वैसे प्रेम विवाह में ज्यादा तलाक पाया गया है। कारण यह है कि प्रेम विवाह में विवाह के बाद प्रेम के अलावे सब कुछ रहता है।


इन्हीं सब वजहों के कारण भारत में प्रतिवर्ष अस्सी हजार से एक लाख के आसपास दाम्पत्य तलाक के लिए अदालत पहुँचते है।


(और आज के समय में सब बिंदास, बे-फिक्र जीना चाहते हैं, कभी-कभी तो अपने दायित्व से परे होकर भी)


जिसका खामियाजा तलाक देकर भरना पड़ता है। स्वयं को तो तकलीफ़ देते ही हैं साथ ही इनके फैसलों में पिसते हैं कभी कोई नौनिहाल तो कभी कोई बुढ़ा माँ-बाप। यह एक अभिशाप की तरह ही है।

©सोनी नीलू झा 

स्त्री नियमो की सीमा को क्यों लांघ न पाए ?



अतीत के विकृत संकल्पो,
 की मिथ्या परछाई ने,
उन्नति के पथ पर रोडे अटकाए,
जाने क्यों ? स्त्री थोथे नियमो की सीमा को
लांघ ना पाए ।

ब्रह्मांड में जो कुछ भी चलायमान,
उत्पत्ति निर्माण में स्त्री का योगदान
उपलब्धियों पर हीन दृष्टि पाए
जाने क्यों ? स्त्री अपनी शक्ति को,
पहचान न पाए ।

शून्य जगत का हर कोना
गति पाता स्त्री के तप से
वही जगत से हेय दृष्टि पाए
जाने क्यों ? स्त्री अभिमानियों के मिथ्या दम को
मिटाना चाह ना पाए।

नियम वर्जनाओ  की बेड़ियों मे भी 
सृजन व पालन  की ताकत,
मानस पटल पर भय शंका बढ़ाएं,
जाने क्यों ? स्त्री अपनी पीड़ा को,
बतला न पाए ।

जग स्त्री उपलब्धियों को पचाना पाए,
कमी निकालने से बाज ना आए,
टूटता  स्त्री मनोबल षड्यंत्रों में फंस जाएं,
जाने क्यों ? स्त्री अपनी विवशता को
समझ न पाए ।

प्रश्न गरिमा का प्राणी मात्र से
क्यों सृजन शक्ति के मत्सर (जलन )
अवहास की आदत अपनाएं
जाने क्यों ? संसार की सृजन शक्ति
सम्मान न पाए ।

           
  🌹गरिमा खंडेलवाल 🌹
           उदयपुर 


 मायका

   कविता

मायके के प्यार पर ,ये सारी नारी वारी है|
कुछ दिन को जाती है ,साल भर का प्यार लाती है|
उसी प्यार से खुद को, ऊर्जावान बनाती है|
ससुराल के छप्पन भोग भी ,मां  की रोटी पर बलिहारी हैं|
मायके के प्यार पर,  ये सारी नारी वारी हैं|
मायके में जाती है तो खुद बच्ची बन जाती हैं|
छोटी-छोटी यादों को डिब्बों में  भर  लाती है|
 वापस आते आंसुओं से  भीगी  इनकी साड़ी है|
मायके के  प्यार पर ,ये  सारी नारी वारी है|
मां ओ भाभी कहती  , सब सामान बांध लो
 पापा कहते कुछ भूल ना जाना बेटा|
 सब सामान  समेटती हूं,   बस छूटती यादों की गठरी  है|
मायके के प्यार पर  ,ये सारी नारी वारी है|
 मायके को कभी गाली पड़े, तो तन बदन जल जाते हैं|
 बड़े लोग सही कहते हैं, मायके की तो लकड़ी भी प्यारी है|
मायके के प्यार पर , यह सारी नारी वारी है
  वर्षा शर्मा दिल्ली



 20 अक्टूबर, 2021 जिनवाणी मन्दिर का भव्य शिलान्यास🏛️

 परम् विदुषी लेखिका गणिनी आर्यिका 105 श्री स्वस्तिभूषण माता जी की मंगल प्रेरणा एवं ससंघ पावन सानिध्य में होगा जिनवाणी मन्दिर का भव्य शिलान्यास।

 श्री 1008 मुनिसुव्रतनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र में "स्वस्तिधाम" में भव्यता से बनने जा रहा है जिनवाणी को समर्पित एक सम्पूर्ण मंदिर।

 आत्मध्यान लगाने का स्वाध्यान से आत्मज्ञान बढाने का सबसे उत्तम स्थान।

मुख्य अतिथि श्री गजराज जी गंगवाल(अध्यक्ष- दि. जैन महासभा)मुख्य शिलान्यास कर्ता

श्री कस्तूर चंद कमला देवी, भागचंद माणिक देवी, कुमुद कासलीवाल लाडनूं निवासी कोलकाता प्रवासी

चार दिशा शिलान्यास कर्ताशांता देवी,आलोक श्रीकृति संजय बबिता सुनील भारती गुंजन कीर्ती साहिल रोशनी  भविष्या उर्मिला सिद्धांत जैन सपरिवार इंदौर अनु अर्पण पायल नित्यम अशवी अर्पित अर्चना स्वाति रोली रूपम समस्त राखी परिवार अलवरसपरिवार कानपुर (गुप्त नाम)

: यह देश का प्रथम  जिनवाणी मंदिर होगा इसमें प्राचीन पांडुलिपि या संरक्षित की जाएंगी



 शरद पूर्णिमा के दिन ही अनेकों ग्रंथो काव्यों के रचियता कवि दिगंबर जैन संत आचार्य भगवन विद्यासागर जी महाराज एवं गणिनी आर्यिकारत्न ज्ञानमति माताजी का अवतरण हुआ था। दोनों के चरणों में  बारंबार नमन🙏 और आचार्य भगवन के चरणों में अपने शब्दों के माध्यम से स्तुति🙏👇


विद्या के भंडार हमारे गुरुवर हैं। 

धरती के भगवान हमारे गुरुवर हैं। 

चर्या इनकी एकदम अजब निराली है। 

दिगंबर दीक्षा जब से गुरु ने पाली है। 

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सन 46 शरद पूर्णिमा सदलगा में जन्म हुआ, 

मां श्रीमती पिता मल्लप्पा को बड़ा ही हर्ष हुआ। 

भारत के प्रखर तपस्वी लेखक साधक हैं। 

त्याग तपस्या संयम के परिचायक हैं। 

विद्या के भंडार हमारे गुरुवर हैं, 

धरती के भगवान हमारे गुरुवर है। 

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सन 72 बाइस नवंबर आचार्य पद इनको मिला, 

पदयात्रा करके देश में सद्भाव का संदेश दिया। 

विद्याधर से हुए ये विद्यासागर हैं। 

त्याग तपस्या संयम के परिचायक हैं। 

विद्या के भंडार हमारे गुरूवर है।

धरती के भगवान हमारे गुरुवर हैं।

✍️©️ डी के जैन मित्तल कवि एवं गीतकार

रावण

रावण

वेद-शास्त्रों का मर्मज्ञ

सर्वज्ञाता–

पूछ रहा बेदर्द दुनिया के

बाशिंदों से यह 

क्यों उसे जलाया जाता हर वर्ष


आश्चर्य होता है

पराली जलाने पर जेल व ज़ुर्माना

परंतु ऊंचे से ऊंचा पुतला

जलाए जाने पर वाह-वाही

क्या पर्यावरण-प्रदूषण नहीं होता

उस विषैले धुएं से

वह जन-सामान्य से प्रश्न करता


मैंने तो सीता का हरण कर

उसे अशोक-वाटिका में रखा

और छुआ तक नहीं

परंतु आज हर चौराहे पर

मासूमों की लुटती अस्मत देख

क्यों मौन हो तुम

सब रिश्तों को ताक पर रख

हो रहा बालिकाओं का यौन-शोषण

आजकल बालिका भ्रूण रूप में

मां के गर्भ में नहीं सुरक्षित

न ही पिता के सुरक्षा-दायरे में महफ़ूज़

क्यों हर दिन घटित होते हादसों को देख

आहत नहीं होता तुम्हारा मन


ज़रा सोचो!

क्यों नहीं उन दहशतग़र्द

दरिंदों को फांसी पर चढ़ाया जाता

हर वर्ष उनका पुतला जलाया जाता

क्या किसी ने दुष्कर्म-पीड़िता को

बना कर रखा अपना हमसफ़र

दिया अपने घर में आश्रय

क्या उस पीड़िता को सहनी

नहीं पड़ी आजीवन ज़िल्लत

बोलो! क्या उसकी नियति

सीता से अलग है

जिसने झेली निष्कासन की

असहनीय पीड़ा व दु:ख-दर्द


परंतु रावण व सीता की नियति

कभी नहीं बदलेगी

और यह दिखावे का खेल

निरंतर यूं ही चलता रहेगा

नहीं होगा बुराई का अंत

अच्छाई मुंह छिपा कोने में पड़ी रहेगी

बहाती रहेगी अजस्त्र आंसू

जिसमें एक दिन

बह जाएगी सारी क़ायनात

और रावण के प्रश्न का

उत्तर देने का साहस

कोई नहीं जुटा पाएगा

क्योंकि यहां सब भीतर से बौने हैं

मुखौटा धारण कर जीते हैं 

●●●डॉ• मुक्ता●●●

दशानन क्यों नहीं मरता है


घर-घर में मंथरा बैठी रावण घट घट बसता है 

महंगाई सुरसा सी हो गई आदमी अब सस्ता है 

ना लक्ष्मण सा भाई हनुमान सा भक्त कहां 

मर्यादा पुरुषोत्तम फिर से आप आओ यहां 

कलयुग में मर्यादा ढह गई मन में क्लेश भरता है 

वैर भाव इर्ष्या घूमे दशानन क्यों नहीं मरता है 

कोई कुंभकरण सा सोया मेघनाथ घन्नानाद करें 

शूर्पणखा अब पंचवटी में बैठी पीर विषाद करे 

ना रही अशोक वाटिका शोक संताप सब हरे 

विभीषण सा भाई कहां बढ़कर हित की बात करें 

लूट खसोट भरा है जग में भ्रष्टाचार रग रग में 

माया का चक्कर हैं अभिमान ठहरा है मग में

रमाकांत सोनी 

नवलगढ़ (राजस्थान)

आर्यिका श्री 105 अनुभूतिभूषण माताजी का जन्म जयंती समारोह


 विद्याभूषण समाधि सम्राट श्री सन्मति सागर जी महाराज जी की सुयोग्य शिष्या आर्यिका  श्री 105 अनुभूतिभूषण माताजी का जन्म जयंती समारोह त्रिलोक तीर्थ बड़ागांव में उत्साह के साथ मनाया जा रहा है इस मंगल अवसर पर विषापहार  स्तोत्र विधान शांति धारा सांस्कृतिक कार्यक्रम शास्त्र भेंट आरती आदि के कार्यक्रम 17 अक्टूबर 2021 को किए जाएंगे दोपहर 1:00 से 5:00 तक विनयांजलि सभा का भी आयोजन होगा

मुनि श्री विशल्यसागर जी मुनिराज जी का दीक्षा दिवस

 रांची जैन भवन हरमू रोड रांची में परम पूज्य गणाचार्य विराग सागर जी के परम शिष्यजिनश्रुत मनीषी श्रमण मुनि श्री विशल्यसागर जी मुनिराज  जी का दीक्षा दिवस अति भव्यता से मनाया जाएगा इस पावन प्रसंग पर 17 से 20 अक्टूबर तक श्री 1008 महामृत्युंजय महामंडल विधान का आयोजन किया जा रहा है उल्लेखनीय है पूज्य श्री  विशाल्य सागर महाराज जी के चातुर्मास में अपूर्व  मंगल प्रभावना हो रही है भक्तगण शास्त्र स्वाध्याय आहार दान वैय्यावृत्ति आदि के द्वारा पुण्योपार्जन कर रहे हैं 20 अक्टूबर को दीक्षा दिवस पर  विनयांजलि   सभा का आयोजन होगा .


 सिद्धिदात्री : माता का नौवाँ रूप

 कमलेश कमल

या देवि सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
– तंत्रोक्त देवीसूक्त

भक्तवत्सला जगदंबा : 'माँ दुर्गा' की उपासना की उत्तमावस्था है– महानवमी! पूर्ण निष्ठा से की गई साधना इस दिन सिद्धि में परिणत होती है।

मान्यता है कि इस दिन तक आते-आते साधक साध ही लेता है और नौवें रूप में जीवनमुक्तता की अवस्था प्रदान करनेवाली 'मोक्षदा-शक्ति'– माँ सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट होती हैं। समस्त चर-अचर जगत् को संचालित करनेवाली, सर्वविधात्री देवी दुर्गा 'सिद्धि' और 'मोक्ष' प्रदात्री हैं और ऐश्वर्यप्रदायिनी भी। आश्वस्ति है कि दीनवत्सला दयामयी देवी का आश्रय ग्रहण करने पर इस संसार में कुछ भी अलभ्य नहीं रहता !!

चार भुजाओं वाली कमलासना माँ के दाहिनी ओर के नीचे वाले हाथ में खिला हुआ कमल है, जो देखें तो सुषुप्त चक्रों के खुलने का प्रतीक है।

इससे पहले के आठ दिनों में साधक अष्टसिद्धि प्राप्त करता है। मार्कण्डेय पुराण में इन अष्ट सिद्धियों का उल्लेख भी मिलता है– अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व।

भाषा-विज्ञान की दृष्टि से देखें, तो नवरात्र से संबद्ध सभी प्रतीकों की महत्ता स्वयंमेव यह सिद्धिदात्री माँ ही समुद्घाटित करने में पूर्णत: सक्षम हैं। यहाँ तक कि इस अवसर पर होने वाले रास, डांडिया आदि नृत्य, लास्य आदि प्रतीक स्वरूपात्मक ही हैं।

यह बाहर खेला जाना वाला रास वस्तुतः मनुष्य के मन, बुध्दि, चित्त, अहंकार की रसात्मक अनुभूति है जो कि वस्तुतः किसी भी साधक के परम तप की परिणति होती है।

समष्टि रूप में ये हमारी आंतरिक शक्तियों के प्रतीकात्मक चिह्न हैं जो कि भौतिक उपादानों से अभिव्यंजित होते हैं, जैसे– रास अंदर के ‘रस’ की, रसात्मक-अनुभूति और साधना की चरम परिणति से आये संगति का प्रतीक है। इसी तरह, डांडिया में जो डंडे लयपूर्वक मिलाए जाते हैं, वे अंदर की शक्तियों के सुमेल के प्रतीक हैं।

द्रष्टव्य है कि माँ महिमामय गुणव्यंजक चरित्र को प्रकाशित करनेवाले 16 वेदोक्त नामों के संकीर्तन द्वारा वेदवेत्ता महर्षियों ने भी इनकी उपासना की है, जो निम्नवत् हैं–

(१) दुर्गा, (२) नारायणी, (३) ईशाना, (४) विष्णुमाया, (५) शिवा, (६)सती, (७) नित्या, (८) सत्या (९) भगवती, (१०) सर्वाणी, (११) सर्वमंगला, (१२)अंबिका, (१३) वैष्णवी, (१४) गौरी, (१५) पार्वती और (१६) सनातनी ।

उपासना की दृष्टि से ये नाम इतने महत्वपूर्ण हैं कि इन्हें पुलकित भाव से अर्थ सहित हृदयंगम कर लेने मात्र से सर्वसिद्धिदायिनी दुर्गा देवी के गुण-स्मरण-कीर्तन के रूप में मानो इनकी पूजा संपन्न हो जाती है। अस्तु, इन वेदोक्त नामों की व्याख्या विशेष रूप से द्रष्टव्य है–

(१) 'दुर्गा' शब्द का पदच्छेद है - दुर्ग + आ। 'दुर्ग' शब्द - किला, भयंकर दैत्य, महारोग, महादुख, महाबाधा, कर्म-बंधन, भव-बंधन इत्यादि– अर्थ का द्योतक है और 'आ' हंता-वाचक, जय वाचक है। अर्थात् इन सभी अमंगलकारी-अशुभ शक्तियों का विनाश करनेवाली शक्ति 'दुर्गा' के नाम से विश्वविख्यात है।

(२) नारकीय स्थित से उद्धार करनेवाली, नारायण की तेजस्विनी शक्ति होने एवं रूप-गुण-यश में नारायण-तुल्य होने के कारण ये देवी 'नारायणी' कही जाती हैं ।

(३) 'ईशाना' का पदच्छेद है - ईशान + आ। 'ईशान' शब्द सर्वसिद्धियों का द्योतक है और यहाँ 'आ' दाता-वाचक है। अर्थात् अपने भक्तों को, प्रसन्न होकर सर्वसिद्धियाँ प्रदान करने के कारण ये 'ईशाना' नाम से महिमामंडित हैं ।

(४) सृष्टि-रचना के समय भगवान् विष्णु ने माया की रचना की और उस माया के द्वारा सारे विश्व को मोहित किया। यह माया, भगवान् विष्णु की शक्ति हैं, जो वस्तुत: महामाया दुर्गा ही हैं । अत: ये 'विष्णुमाया' कही जाती हैं ।

(५) 'शिवा' शब्द का पदच्छेद है - शिव + आ। शिव का अर्थ कल्याण होता है और यहाँ 'आ' प्रिय एवं दाता के अर्थ में प्रयुक्त है । इसलिए भगवान् शिव की भाँति सदा कल्याण करनेवाली ये देवी शिवप्रिया हैं अर्थात् 'शिवा' हैं ।

(६) 'सत्' के रूप में सदा विराजमान रहनेवाली, शुद्ध-सात्विक बुद्धि प्रदान करनेवाली, पवित्र पतिव्रत धर्म का पालन करनेवाली, सुंदर आचरणवाली, सदाचारिणी, सीधी एवं सच्ची होने के कारण ये 'सती' कहलाती हैं ।

(७) परमात्मा की तरह ही ये 'नित्य' यानी सदा रहनेवाली हैं। अत: ये 'नित्या' कहलाती हैं।

(८) 'सत्य' अर्थात् जिसका 'अस्तित्व' सदा से है और जो सदा रहेगा अर्थात् परब्रह्म परमात्मा। 'ब्रह्म सत्यं, जगन्मिथ्या' – जगज्जननी दुर्गा इस भौतिक जगत् की भाँति नश्वर नहीं हैं, वरन् ये अनश्वर हैं, सदा रहनेवाली, सत्य-स्वरूपा हैं। अत: ये 'सत्या' हैं ।

(९) 'भग' शब्द सिद्ध अवस्था एवं ऐश्वर्य का द्योतक है। 'भग' योनिबोधक भी है। सदा ही ऐश्वर्य एवं सुख उत्पन्न करने की दिव्य शक्ति से युक्त होकर सिद्ध अवस्था को प्राप्त होने के कारण माता 'भगवती' नाम से विख्यात हैं।

(१०) 'सर्वाणी' शब्द का अर्थ है– सर्व अर्थात् सारे चर-अचर जीव की अणी अर्थात् धुरी या केंद्रबिंदु। यानी समस्त जीवों को जन्म-मृत्यु और मोक्ष देनेवाली शक्ति से संपन्न होने के कारण ये 'सर्वाणी' कहलाती हैं।

(११) 'मंगल' शब्द मोक्षवाची है। मोक्ष का अर्थ मुक्ति यानी बंधन-मुक्ति है। 'मंगल' शब्द सुख-सौभाग्य, हर्ष एवं कल्याण का भी द्योतक है। 'आ' दाता का बोधक है। इस प्रकार ये देवी सब प्रकार के दुखदायी बंधनों से जीवों को मुक्त कर संपूर्ण मंगलमयता प्रदान करती हैं। अत: ये सबके द्वारा 'सर्वमंगला' नाम से वंदित हैं।

(१२) अंबा, ममतामयी माता का बोध करानेवाला पूजनीय एवं सम्माननीय शब्द है। धार्मिक मान्यतानुसार तीनों लोकों की सर्वसम्मानित एवं सर्ववंदित माता होने के कारण ये सबके द्वारा 'अंबिका' नाम से संपूज्या हैं।

(१३) सृष्टि-रचना के समय श्रीविष्णु द्वारा रचित होने, विष्णु की शक्ति व विष्णु-स्वरूपा होने तथा विष्णु जी की परम भक्ति में लीन होने के कारण ये 'वैष्णवी' कहलाती हैं।

(१४) 'गौर' शब्द परमात्मा की निर्मलता, शुद्धता और निर्लिप्तता का वाचक है । इसलिए परमात्मा की अभिन्न शक्ति होने के कारण ये 'गौरी' कहलाती हैं ।

आदिगुरु भगवान् शिव सारे जगत् के गुरु हैं । श्रीकृष्ण भी जगद्गुरु हैं। 'शिवा' के रूप में देवी शिवप्रिया हैं, तो श्रीकृष्ण जी की माया होने के कारण ये कृष्णप्रिया भी हैं । इस प्रकार देखें, तो 'गुरु' की शक्ति होने के कारण ये 'गौरी' हैं ।

(१५) पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने, पर्वत पर प्रकट होने, पर्वत पर ही अधिष्ठान (निवास) करने यानी पर्वत की अधिष्ठात्री होने के कारण इन्हें 'पार्वती' कहा जाता है। 'पर्व' शब्द का प्रयोग तिथिभेद, पर्वभेद एवं कल्पभेद के अर्थ में होता है तथा 'ती' शब्द 'प्रसिद्धि का द्योतक है। इस प्रकार अर्थभेद से पूर्णिमा, नवरात्र आदि पर्वों पर विशेष रूप से प्रसिद्ध होने के कारण ये 'पार्वती' कहलाती हैं ।

(१६) आदि-अंत से रहित होने के कारण ये देवी 'सनातनी' कही जाती हैं। अत:, अनादिकाल से, हर युग में, हर काल में, हरेक स्थान में इनकी विद्यमानता के कारण इन्हें 'सनातनी' कहा जाता है ।

अपने इन्हीं सुदुर्लभ गुणों के कारण ये सर्वसमर्थ- सनातनी देवी 'अमोघ-फलदायिनी', 'ममतामयी- माता' – सर्वाधारा, सर्वमंगल-मंगला, सर्वेश्वरी, सर्वऐश्वर्य-विधायिनी, शुभप्रदा, जयप्रदा, नित्यानंद-रूपिणी, सर्वसंपत्-स्वरूपिणी इत्यादि अनेक रूपों में बहुप्रशंसित हैं, जिनकी प्रशंसा में महादेव ने कहा है - 'महालक्ष्मी-स्वरूपासि किम् असाध्यं तवेश्वरी।'

इस जगत्-आराध्या, सर्वपूजिता, सर्वशक्तिस्वरूपिणी, मंगलकारी और परमानंदस्वरूपा के लिए उचित ही कहा गया है :

सर्वमंगलमांगल्यै शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।


कमल


गहरी दोस्ती

  गहरी दोस्ती


सविता नाम की एक भौली सी लड़की लखनपुर गांव में रहती थी। वह 12 साल की थी ।उसने अपनी दादी से पशु पक्षियों के बारे में बहुत सारी कहानियां सुनी थी। कहानियां सुन-सुनकर उसे पशुपक्षियों से प्यार होने लगा था। रोज शाम ढले वह गांव से दूर खुली  सड़कों के चौरस्ता पर जाकर बैठ जाती थी। खुली प्रकृति को देखना उसे बहुत अच्छा लगता था। एक दिन मुनिया ने वहां पर एक गिलहरी को देखा। जो पेड़ पर बैठी हुई थी।  वह बहुत घबरायी हुई थी। वह सोच में पड़ गई थी ,कि गिलहरी यहां कैसे आ गई। उसने गिलहरी से कहा, तुम कहां से आ रही हो , गिलहरी ने कहा ,मैं अपनी जान बचाकर आ रही हूं। सविता ने कहा वह कैसे‍‍‍। तब गिलहरी ने कहा, कि मुझे तुम्हारे पास वाले गांव में एक बिल्ली ने पकड़ लिया था मैं जैसे तैसे उस बिल्ली से अपनी जान बचा कर भागकर यहां आई हूं।  वे बिल्लियां मुझे अपना शिकार बनाने की फिराक में रहती थी ।मैं बहुत घबरायी हुई रहती थी। मेरी जान शूली पर अटकी हुई रहती थी। सविता ने उसे खाने के लिए मूंगफली दी और प्यार से उठाया और कहा कि तुम क्या मेरे साथ मेरे घर चलोगी। गिलहरी बहुत खुश हुई और सविता के साथ घर जाने को तैयार हो गई इस तरह दोनों में गहरी दोस्ती हो गई ।


शिक्षा 

अबोध मन में पशुपक्षियों के प्रति प्यार को जागृत करना चाहिए। तभी आने वाली पीढ़ी पक्षियों को देख पाएगी ।वर्ना पशुपक्षियों की प्रजाति लुप्त हो जायेगी।


 मीता गुप्ता

 रायपुर छत्तीसगढ़

🎷राजस्थान के इतिहास में पहली बार एक साथ 19 से अधिक पवित्र जैनेश्वरी दीक्षा


    राष्ट्र गौरव चतुर्थ पट्टाचार्य श्री सुनीलसागर जी यतिराज के 25 वे संयम वर्ष के शुभ अवसर पर विश्व विख्यात अतिशय क्षेत्र श्री अंदेश्वर पार्श्वनाथ जी के दर पर विजयादशमी 15 ऑक्टोम्बर सन 2021 के पावन दिवस पर पूज्य आचार्य भगवन्त के वरदानदायी हस्तकमलो से 19 से अधिक भव्यतमाओ को शुद्ध से बुद्ध-कंकर से शंकर,जीव से जिनेंद्र-प्राणी से परमात्मा व अणुव्रती से महाव्रती बनाने वाली भव्य जैनेश्वरी दीक्षाए होंगी जो पूज्य आचार्य श्री सुनीलसागर जी गुरूराज की छत्रछाया में रहकर संयमी से सिद्धत्व के श्रेष्ठतम लक्ष्य की ओर अग्रसर होंगे।

यह निश्चित ही प्रभु अंदेश्वर पार्श्वनाथ का महान अतिशय व तपस्वी सम्राट के श्रेष्ठशिष्य नन्द आचार्य श्री सुनीलसागर जी गुरूराज की उत्कृष्ट साधना-निस्पृहता,वात्सल्य अनुशासन व तेजोमयी ओरा का प्रभाव है जिससे अनेकानेक भव्यात्मा आपके चरणानुगामी बनकर संयम पथ पर आरूढ़ होना चाहते है।

विजयादशमी 15 ऑक्टोम्बर का दिन सम्पूर्ण राजस्थान के लिए महान पर्व का दिन होगा जो हमेशा हमेशा के लिए जयवंत हो जाएगा क्योकि इतना बड़ा स्वर्णिम सौभाग्य राजस्थान-वागड को मिल रहाहै 

 अवश्य पधारें पधार कर पुण्य लाभ ले

नमनकर्ता-सकल दिगम्बर जैन समाज कुशलगढ़ व श्री सुनीलसागर युवासंघ भारत

प्रेषक-शाह मधोक जैन चितरी


संसार असार है

 संसार असार है अस्थाई है, क्षण भंगुर है, पानी के बुलबुले के समान है, बाहुबली के मन में आया , एक राज्य के लिए क्या लड़ना , सब कुछ हमारे भावों की भावनाओं पर केन्द्रित है , एक पल में विध्वंस , एक पल में आत्म उत्थान, 12 मास तक कायोत्सर्ग ध्यान-साधना में लीन , इतना ऊंचे ध्यान में बस एक छोटी सी कांच के कण की तरह चिंतन में अटकी रही शल्य ने मुक्ति का मार्ग रोक दिया , और हम तो ऊपर से नीचे तक शल्य कषाय में डूबे भटके हुए रहते हैं , बस इस प्रकरण से हम यह सीख ले कि हम अपने मन के अंदर दहकती हुई शल्यताओ से खुद को जीतने का प्रयास व पुरुषार्थ निरन्तर जारी रखेंगे । सब अपने अंदर की आन्तरिक उहापोह से बाहर निकले , साथियों वीतरागता की ओर बढे । सारी दुनिया अकेली है ,हम खुद ही अपना आत्महित कर सकते हैं , आत्महित के लिए खुद को जीतना व तपाना पड़ेगा ,यह कोई विरासत नहीं है कि बाप दादाओं के मरने के बाद गिफ्ट में मिल जाएगी । आओ आत्म कल्याण के लिए आत्म पुरुषार्थ की ओर बढ़े ।               

   अनिल चेतन जैन दशमेश नगर मेरठ

खामोशी


करे भले कोई निन्दा-चुगली 

कितनी भी वो उठाले उंगली 

हरक़त करे चाहे जो कैसी 

लत उसकी जैसी की तैसी 

"एक चुप सौ चुप बराबर" 

यही मानता है सन्तोषी 

स्वच्छान्दित-आनन्दित हृदय, 

दर्शा देता है खामोशी 

कुविचार मन में न आऐं

सकारात्मक ऊर्जा लाऐं

इन्द्रियों पर भी पड़े प्रभाव 

स्थिर सदा रहे सद् भाव 

नजर में है कोई न दोषी ।

स्वच्छान्दित-आनन्दित हृदय, 

दर्शा देता है खामोशी  ।।

( बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज"

       कोटा (राजस्थान)

यम्मी दीपावली

 7 अक्टूबर 2021 को ग्लोबल जैन महा सभा द्वारा दीपावली पर महिलाओं को अमीषा दोषी जैन मुंबई  ने  यम्मी

 दीपावली व्यंजन मकई ढोकला , पेस्टो पीटा पॉकेट , चॉकलेट संदेश , चीज कॉर्न बॉल्स आदि सिखाए गए 400 से अधिक महिलाओं ने इसमें भाग लिया और अपने प्रश्नों का भी उत्तर प्राप्त किया .

 अमीषा दोषी जैन  ने   सभी को बहुत अच्छे समाधान दीजिए और -अच्छी रेसिपी बनाकर दिखाइ

जूम पर महासभा का यह प्रोग्राम बहुत अच्छा लगा सभी ने इसकी बहुत सराहना की

डॉ0 ममता जैन

  संपादक श्री देशना पुणे


16 वें स्थापना दिवस व त्रिदिवसीय अधिवेशन में पत्रकारों ने आगे बढ़ने का लिया संकल्प

आगरा। अखिल भारतीय जैन पत्र संपादक संघ का 16 वां स्थापना दिवस एवं त्रिदिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन का शुभारंभ 2 अक्टूबर को प्रातः 9:00 बजे एमडी जैन इंटर कॉलेज आगरा के सभागृह में श्री शैलेन्द्र जैन एडवोकेट अलीगढ़ की अध्यक्षता तथा प्रसिद्ध उद्योगपति श्री प्रदीप जैन पीएनसी के मुख्य आतिथ्य में हुआ। समारोह के विशिष्ट अतिथि श्री मनोज जैन बाकलीवाल, श्री राकेश जैन पर्दे वाले तथा श्री अशोक जैन पूर्व डिप्टी मेयर थे। सम्माननीय अतिथियों द्वारा भगवान महावीर के चित्र का अनावरण करते हुए दीप प्रज्वलन कर सत्र का उद्घाटन किया । इंदौर से पधारे पंडित अशोक शास्त्री ने मंगलाचरण किया तथा उद्योगपति श्री जगदीश प्रसाद जैन ने स्वागताध्यक्ष के रूप में अपना स्वागत भाषण प्रस्तुत कर सभी अतिथियों का स्वागत किया। संपादक संघ के महामंत्री डा.अखिल जैन ‘बंसल’ ने संगठन का परिचय दिया। परम संरक्षक श्री प्रदीप जैन पीएनसी ने अपने उद्बोधन में कहा कि मैं इस संगठन की गतिविधियों को अनेक वर्षों से देखता आ रहा हूं । इस संगठन में सभी की भावना सामाजिक एकता व सद्भावना की रही है तभी इस संगठन में अलग-अलग मान्यताओं को मानने वाले गुलदस्ते की भांति एक साथ मिलकर रहते हैं । उन्होंने कहा जो समाज आपस में बटा रहेगा वह कभी तरक्की नहीं कर सकता । वर्तमान समय में हम कठिनाई के दौर से गुजर रहे हैं तथा एक दूसरे से दूर होते जा रहे हैं । संगठन की मजबूती के लिए हमें समय-समय पर सामाजिक कार्यक्रम करते रहना होगा तथा सभी को साथ लेकर चलने की वृत्ति अपनाना होगी।

 संगठन के अध्यक्ष श्री शैलेन्द्र जैन ने कहा कि आज हम सभी यहां अखिल भारतीय जैन पत्र संपादक संघ का 16 वां स्थापना दिवस मना रहे हैं। कोरोना काल के पहले हम प्रतिवर्ष अपने कार्यक्रमों के माध्यम से सभी साथियों को जोड़े रखने का उपक्रम करते आ रहे हैं तभी आज हम इस मुकाम पर पहुंचे हैं । आपने बताया कि अधिवेशन के साथ हम सब निकटवर्ती तीर्थों की वंदना भी कर सकेंगे ऐसी व्यवस्था की गई है, साथ ही अनेक जैन संतों के दर्शन लाभ का अवसर भी आपको प्राप्त होगा।. वरिष्ठ समाजसेवी श्री मनोज बाकलीवाल ने अपनी बात रखते हुए कहा कि महान नेता वह होता है जो ज्ञान की मशाल लेकर समाज को जागरूक करता रहता है तथा उन्हें विकास के पथ पर ले जाते हुए प्रगति में सहायक होता है। डॉ अखिल बंसल ने सभी आगन्तुकों के साथ आवास,भोजन व स्वल्पाहार की उत्तम व्यवस्था के लिए श्री प्रदीप जी ,जगदीश जी और मनोज जी का आभार व्यक्त किया।समिति की ओर से आगन्तुकों को मुनिश्री प्रणम्य सागर जी का आकर्षक चित्र भेंट किया। कार्यक्रम के पूर्व रात्रि में सभी पदाधिकारियों ने सेक्टर 7 में विराजमान पूज्य मुनि श्री प्रणम्य सागर जी से आशीर्वाद ग्रहण किया तथा प्रातः देव दर्शन – पूजन में सहभागी बने । प्रस्थान करने से पूर्व  आचार्य श्री मेरूभूषण जी का आशीर्वाद ग्रहण किया तथा ब्रह्मचारी सुनील भैया जी से  मुलाकात की तथा उन्हें आगरा जेल में पू.आ.श्री विद्या सागर जी की प्रेरणा से स्थापित होने वाले हथकरघा केन्द्र के उद्घाटन हेतु शुभकामनाएं दीं। स्वल्पाहार के पश्चात् सभी ने ताजगंज प्रस्थान किया।

आगरा के ताज गंज स्थित भगवान पारसनाथ जैन मंदिर के दर्शन कर सभी धन्य हो गए इस मंदिर जी में भगवान पारसनाथ की 12 00 वर्ष पुरानी कसोटी पत्थर से निर्मित मनमोहक प्रतिमा विराजमान है ।यहां यह भी स्मरणीय है कि ताजगंज स्थित यह प्राचीन मंदिर कविवर बनारसी दास जी की साधना स्थली रही है उन्होंने अपने जीवन का बहुभाग यहां बिताया और समयसार नाटक, अर्ध कथानक ,बनारसी विलास आदि अनेक ग्रंथों की रचना की । पाण्डे रूपचंद,चतुर्भुज, भगवतीदास,कुंवर पाल और धर्मदास के मिलने से  विचारों में परिवर्तन आया और यहीं से अध्यात्म शैली को संगठित रूप मिला। ब्रह्मचारी रायमल जी,पं.भूधरदास,पं. द्यानत राय जी,पं.खेमचंद जी तथा पं.चन्द्रभान जी जैसे तलस्पर्शी विद्वानों का संसर्ग  और तेरापंथ शैली का उदय इसी स्थली से हुआ।
सभी ने मंदिर जी में विराजमान दुर्लभ हस्तलिखित ग्रंथों का अवलोकन कर तीर्थवंदना को सार्थक किया। मंदिर जी के हाल में पं.बनारसीदास जी का सम्पूर्ण जीवन चरित्र दीवारों पर कांच से निर्मित है जो दृष्टव्य है। यहां की कार्यसमिति के पदाधिकारियों ने सभी का उचित सम्मान किया तथा सुस्वादु भोजन कराकर विदा किया।

यहां से हम सभी ने शौरीपुर बटेश्वर के लिए प्रस्थान किया। आगरा से 70 कि.मी. की दूरी पर शौरीपुर स्थित है जो यमुना के तट पर एक विशाल नगरी थी; जिसे महाराजा शूरसेन ने बसाया था। उनकी पीढी में समुद्र विजय और वसुदेव आदि 10 भाई हुए। समुद्रविजय के पुत्र नेमिकुमार थे जो जैनधर्म के 22 वें तीर्थंकर हुए। कृष्ण वसुदेव के पुत्र थे।भ.नेमिनाथ की गर्भ व जन्मकल्याणक भूमि होने से हम सबको पूज्य है। यहां स्थित प्राचीन प्रतिमाओं के दर्शन करने के उपरांत आचार्य चैत्य सागर जी महाराज का आशीर्वाद प्राप्त किया। यहां टाइम्स आफ इण्डिया के श्री पुनीत जैन व श्री स्वराज जैन हमारे आमंत्रण पर पधारे । श्री पुनीत जी ने सभी पत्रकारों को  अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए कसौटी पर खरा उतरने का आव्हान किया। दोनों महानुभावों का आभार मानते हुए यात्रा संघ ने  वहां से प्रस्थान किया ।

करहल पहुंचकर विशाल जैन मंदिर और वहां की प्रतिमाओं के दर्शन कर अपना अहो भाग्य माना। यहां विराजित मुनि श्री विहसन्त सागर जी  का मंगल उद्बोधन सुनकर सभी गद्-गद् हो गये। डा.अखिल बंसल ने उपस्थित जन समुदाय को संपादक संघ की गतिविधियों से अवगत कराया। श्री शरद जैन चैनल महालक्ष्मी,श्री अनूपचंद एडवोकेट, डा.अनेकांत जैन,
डा.राजीव प्रचण्डिया तथा डा.अल्पना जैन आदि ने भी अपनी बात रखी। संगठन के कार्याध्यक्ष  डा.सुरेन्द्र भारती ने  सभा का कुशल संचालन किया। सभी का स्वागत सत्कार हुआ पश्चात मुनि श्री का आशीर्वाद लेकर हम सबने इटावा के लिए प्रस्थान किया ।
इटावा के कुन्हेरा में स्थित अहिंसा नवग्रह तीर्थ पर नवनिर्मित भवन में रात्रि विश्राम हुआ ।

3 अक्टूबरकी प्रातः जिनेन्द्र भगवान की पूजा अर्चना के साथ पूज्य आचार्य श्री प्रमुख सागर जी ससंघ के मगल सानिध्य में प्रातः काल अधिवेशन का तृतीय सत्र  आयोजित हुआ । इस सत्र का संचालन कार्याध्यक्ष डा.सुरेन्द्र भारती ने किया। स्वागत- सत्कार के पश्चात वर्तमान समय में जैन मीडिया की भूमिका पर चर्चा  हुई । सत्र के मुख्य अतिथि श्री स्वदेश भूषण जी,दिल्ली कार्याध्यक्ष पंजाब केसरी थे। दोपहर में चतुर्थ सत्र श्री प्रदीप जैन पीएनसी के मुख्य आतिथ्य में सम्पन्न हुआ।  मंगलाचरण के पश्चात जैन समाज की 9 प्रतिभाओं को पं.नाथूराम प्रेमी पत्रकारिता पुरस्कार-21 से सम्मानित किया गया। इन्हें यह सम्मान संघ के संरक्षक प्रदीप जैन पीएनसी,अध्यक्ष शैलेन्द्र जैन एडवोकेट, महामंत्री डा.अखिल जैन ” बंसल” , श्री स्वदेश भूषण जैन तथा स्वागताध्यक्ष जगदीश प्रसाद जैन ने प्रदान किये।
जिन प्रतिभावान संपादकों को  पुरस्कृत किया वे इस प्रकार हैं-
डा.सुरेन्द्र भारती-बुरहानपुर को उनके द्वारा संपादित मासिक पत्र पार्श्वज्योति को सुंदर साज- सज्जा के साथ नियमित मासिक प्रकाशन हेतु,श्री अनूपचंद एडवोकेट, फिरोजाबाद को जैन संदेश पाक्षिक के  प्रकाशन व लेखन हेतु, डा.अनेकांत जैन-दिल्ली को प्राकृत भाषा के क्षेत्र में पागद भाषा पत्र के संपादन व लेखन हेतु,डा.राजीव प्रचण्डिया को जय कल्याण श्री के मासिक प्रकाशन हेतु,श्री अनुराग जैन-अजमेर को अजमेर टुडे के नियमित प्रकाशन व संपादन हेतु, श्री शांतिनाथ होतपेटे -हुबली को कन्नड़ भाषा में जिनेन्द्र वाणी के प्रकाशन व संपादन हेतु, श्रीमती पारुल जैन-दिल्ली को, सोश्यल मीडिया में फैक न्यूज पर वर्क करने हेतु,डा.अल्पना जैन,मालेगांव को लेखन तथा डा.मीना जैन -उदयपुर को उनके शोधकार्य हेतु यह पुरस्कार प्रदान किये गये हैं। पूज्य आचार्य श्री प्रमुखसागर जी ने सभी को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हुए लेखनी को सशक्त बनाने की कामना की। आपने  आपसी मतभेद भुलाकर जैन एकता पर बल दिया और सभी को संगठित होकर समाज में व्याप्त विसंगति के निरसन करने का आव्हान किया। इस अवसर पर मीडिया के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य हेतु सोश्यल मीडिया फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री किशोर भाई भण्डारी, पुणे ने डा.अखिल बंसल का शाल,श्रीफल तथा चांदी के सिक्के से  सम्मान किया।
उपस्थित जन समूह ने करतल ध्वनि से सभी का हर्ष व्यक्त करते हुए स्वागत किया। तत्पश्चात  डॉ.अखिल बंसल , डा. मीना जैन, डा.सुरेन्द्र भारती,डा.रमेशचंद जैन,श्री अनूप शर्मा,तथा श्री राजेन्द्र सिंह की नवीनतम कृतियों  के  विमोचन पू.आ.श्री प्रमुखसागर जी के ससंघ सान्निध्य में श्री प्रदीप जैन पीएनसी,श्री स्वदेश भूषण जैन पंजाब केसरी,श्री अनूपचंद एडवोकेट ,श्री शैलेन्द्र जैन, तथा श्री जगदीश प्रसाद जैन आगरा द्वारा किया गया।
जैन प्रतिनिधि महासंघ के अध्यक्ष पद का भार  श्री प्रदीप जैन पीएनसी को सोंपा गया। स्वागत सम्मान कर कार्यक्रम आगे बढाते हुए जैन प्रतिनिधि महासंघ की कार्यकारिणी की घोषणा की और भविष्य की रूपरेखा को तैयार कर महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन निकट भविष्य में पू.आ.श्री प्रमुख सागर जी के सान्निध्य में रखना तय किया गया। जैन एकता क्यों और कैसे विषय का प्रतिपादन वक्ताओं द्वारा किया गया। सत्र का संचालन डा.अल्पना जैन  व आभार व्यक्त मयंक जैन ने किया ।
रात्रि कालीन सत्र में जैन एकता व जैन मीडिया को फोकस करते हुए वक्ताओं ने अपनी बात रखी । अंत में अहिंसा चैनल के त्रिलोक जैन द्वारा श्री शैलेन्द्र जैन व डा.अखिल बंसल को प्रशस्ति पत्र भेंट करते हुए दोनों को अहिंसा रत्न की उपाधि से विभूषित किया । अध्यक्षता शैलेन्द्र जैन ने की व संचालन डा.अखिल बंसल ने किया। कुन्हेरा जैन समाज के अध्यक्ष संजू जैन ने  सभी का आभार व्यक्त किया। संगोष्ठी का समापन  फिरोजावाद में विराजमान पू. आचार्य श्री विवेक सागर जी महाराज के सानिध्य में सम्पन्न हुआ। यहां भी सभी पत्रकारों का शाल ,माला व पट्टिका पहनाकर सम्मान किया गया। भोजन के पश्चात्  निकटवर्ती  तीर्थ मरसल गंज,राजमल तथा  पचोखरा आदि के दर्शन का लाभ सभी को प्राप्त हुआ । इन तीनों स्थानों पर वहां की कार्यसमिति ने सभी का भाव भीना सम्मान किया । अंत में सभी का आभार प्रदर्शन अखिल भारतीय जैन पत्र संपादक संघ के महामंत्री डॉ अखिल जैन बंसल ने व्यक्त किया और शीघ्र आगामी कार्यक्रम में पुनः मिलने का संकल्प  जताया । स्मरणीय है कि अधिवेशन में दिल्ली, उ.प्र.,म.प्र.,राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा प.बंगाल इन 7 राज्यों से 46 प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। तीन नये सदस्यों ने भी सदस्यता ग्रहण की।


छत्तीसगढ़ में रचा नया इतिहास,

 , संत शिरोमणि आचार्य गुरुवर विद्यासागर जी महाराज  के मंगल आशीर्वाद से परम पूज्य, परम तपस्वी, राष्ट्रसंत मुनि श्री 108  चिन्मय सागर जी महाराज जंगल वाले बाबा की  द्वितीय  पुण्यतिथि पर श्री 1008 कल्पद्रुम महामंडल विधान विश्व शांति यज्ञ  श्री आदिनाथ  नवग्रह पंच बलयती दिगंबर जैन मंदिर  भाटापारा छत्तीसगढ़ में सानंद संपन्न हुआ, पूरी छत्तीसगढ़ की जैन समाज ने इस विधान में आकर के  वास्तुविद ज्योतिषचार्य श्री भरत शास्त्री जी इंदौर के सानिध्य एवं मार्गदर्शन में यह विधान सानंद संपन्न हुआ। जिस की कुछ झलकियां आपको प्रेषित कर रहे हैं। विधान का सौभाग्य पारस चैनल के प्रथम चेयरमैन डायरेक्टर प्रकाश सुमनलता मोदी मोदी परिवार भाटापारा को प्राप्त हुआ।

 इस दुष्ट दुनिया में कुछ भी स्थाई नहीं है.. हमारी परिस्थितियां भी नहीं.. गम खुशी, अश्क हंसी, हार जीत, दुश्मन मीत वक्त के साथ सब बदलते रहते हैं.. जिन्होंने जिंदगी में संघर्ष किया वो  इस रचना से इत्तेफाक रखेंगे..!


आज ग़म है कल ख़ुशी होगी फिर ग़म का मातम क्यों करें..!

जिसने जख्म़ दिए इलाज भी वो करेगा हम मरहम क्यों करें..!


ऊपर वाले को सब की फिक्र है सुना है वो बड़ा रहमदिल हैं..!

पतझड़ के बाद बहारें आती ही है फिर आंखें नम क्यों करें..!


कश्ती के नसीब में डूबना लिखा हो तो किनारों पे डूब जाती है..!

साहिल लिखा हो किस्मत में तो फ़िक्र-ए-अलम क्यों करें..!


ज़िंदगी की उलझी जुल्फें संवरती है सदा मेहनत की कंघी से..!

ये बात हर ज्ञानी कह गया फिर अपने हौसले बेदम क्यों करें..!


विश्वास के पहले दो अक्षर से विष बनता है संधि विच्छेद कर लो..!

ख़ुद से ज़्यादा ख़ुद पे विश्वास कर ऐरे गैरे को हमदम क्यों करें..!


कमल सिंह सोलंकी

रतलाम मध्यप्रदेश

जैनों की जनसंख्या बढ़ाने के कुछ उपाय


1. सभी जैन अपने नाम के साथ जैन अवश्य लिखें  । गोत्र लिखते हैं तो उसके साथ भी जैन अतिरिक्त रूप से जोड़ दें ।


2. जब भी जनसंख्या गणना हो तो जाति और धर्म के कॉलम में मात्र ' जैन ' लिखें और भाषा के कॉलम में प्राकृत लिखें ।


3. जिस परिवार में अधिक संतान हों उन्हें सार्वजनिक रूप से सम्मानित करें । उनकी आर्थिक स्थिति के अनुसार उनकी आर्थिक मदद करें । उन्हें रोजगार दें । संयुक्त परिवार को प्रोत्साहित करें ।


4.सभी जैन अपने बच्चों के विवाह में खुद देर न करें । 18-21 वर्ष होते ही विवाह कर दें । विवाह संस्था को बहुत सहज चलने दें । पढ़ाई विवाह के बाद भी चलने दें और जॉब ऐच्छिक रहने दें ..बंधन न रखें । दुर्भाग्य से विधवा या विधुर होने पर पुनर्विवाह की स्वतंत्रता और पर्याप्त अवसर रखें ।


5.समाज में ऐसे कार्यक्रम अधिक संख्या में चलाएं जिसमें नए जैन  युवक युवतियों के आपस में परिचय बढ़ें और वे अन्य धर्म समाज में प्रेम विवाह करने की अपेक्षा अपनी समाज में बॉय फ्रेंड/ गर्ल फ्रेंड तथा जीवन साथी  प्राप्त कर सकें । 


6.उनमें जैनत्व के संस्कार इतनी दृढ़ता से रखें और उन्हें जैन समाज में इतना अपनत्व दें कि वे अपनी समाज से जुड़ें और उन्हें अन्य समाज की संस्कृति,खानपान रास ही न आये ।


7. छोटे छोटे नगर,गांव और कस्बों में हज़ारों अनाथालय खोलें और सभी जाति और धर्म के बच्चों को उसमें बचपन से रखें ,उनकी शिक्षा दीक्षा सभी जैन धर्म दर्शन के अनुकूल दृढ़ता पूर्वक दें । उन्हें जैन धर्म का कट्टर भक्त बना दें । उनकी उनके परिवार की आर्थिक और सामाजिक मदद करें । 


8. कोई अन्य संप्रदायों की उपेक्षित समाज हो तो मात्र मद्य मांस और मदिरा - इन तीन मकारों का त्याग करवा कर तथा देव दर्शन का संकल्प करवाकर उन्हें श्रावक दीक्षा दें और उन्हें गोत्र दान करें ।


9. अल्पसंख्यक मान्यता वाले उच्च स्तरीय स्कूल जो समाज द्वारा संचालित हैं उनमें जो नाम के साथ जैन लिखे उनकी फीस माफ कर दें तथा प्रोत्साहित करें कि वे जैन आचार का पालन करें । 


10. निःसंतान जैन दंपति संतानों को कानूनी रूप से गोद अवश्य लें । जिनके एक संतान हैं और वे यदि आर्थिक रूप से सम्पन्न हैं तो वे भी संतानों को गोद लें । इससे अनाथ बच्चों को सहारा मिलेगा और उन्हें जैन संस्कार मिलने से उसका भी कल्याण होगा । 

11. अपनों को भटकने से रोकें और दूसरों को अपना बनाएं  - इस मिशन पर कम से कम 25 वर्ष की योजना,बड़ा बजट और टीम बनाकर कार्य करें । 

इन उपायों के विपरीत अति आदर्शवादी होने से पहले 

बस इतना ध्यान रखिएगा - 

अगर अब भी न संभले तो मिट जायेंगे खुद ही ।

दास्तां तक भी न होगी फिर दस्तानों में ।।

डॉ अनेकान्त जैन ,नई दिल्ली

लोग ये ऊँचे कद वाले

झोंपड़ियों के दुख क्या जानें ,

ऊँचे रुतबे - पद वाले ?

ऊँची सोच कहाँ रख भूले ,

लोग ये ऊँचे क़द वाले ?

अपनी शानौ-शौकत ख़ातिर ,

शौक़ अनेकों रखते हैं ।

गांजा, चरस, अफीम, कोकेन ,

हेरोइन भी चखते हैं ।


औरों के अधिकार छीनकर ,

फ़र्ज़ ताक पर रखते हैं ।

नियम और क़ानून- प्रशासन ,

सुना ज़ेब में रखते हैं ।


राज निरंकुश करते हैं ये ,

धन के मद में मतवाले ।

ऊँची सोच कहाँ रख भूले ,

लोग ये ऊँचे कद वाले......

दया, क्षमा, परोपकार और

पर-दुख को ये क्या जानें ।

ख़ुद को शक्तिमान ये समझें ,

ईश्वर को भी ना मानें।


मुट्ठी में माया की गर्मी ,

दुष्कर्मों के दीवाने ।

राग अनूठे देखो इनके ,

अनुपम इनके अफ़साने ।

उजले कपड़े धारण करते ,

कर्म करें बेहद काले ।

ऊँची सोच कहाँ रख भूले ,

लोग ये ऊँचे कद वाले.....

सरस्वती से दूरी रखते ,

लक्ष्मी इन्हें बड़ी प्यारी ।

उच्च पदों पर बैठे लेकिन,

पाप करें इनकी ख़्वारी।।

लोभ-लालसा वशीभूत हो ,

अक्ल गई इनकी मारी ।

गिने-चुने होकर संख्या में , 

सवा करोड़ पर हैं भारी ।"बिन्दु" कहे क्या शिक्षा देंगे ,

दुर्व्यसनों की लत वाले ?

ऊँची सोच कहाँ रख भूले ,

लोग ये ऊँचे कद वाले...


                                                                 बिंदु 'पूर्णिमा' 


उलझन है किशोर वय मन की

 उलझन है किशोर वय मन की 


कभी मन में तूफान उमड़े , कभी मन बन जाता सागर 

कभी मन गगन को छूता, कभी मन बन जाता पत्थर 


नित नए परिवर्तन होते , उलझन किशोर वय मन की 

ज्वाला सी धधकती मन में , कैसे कहें हम उस तन की 


उर में आनंद उमड़ता , नयनों में छा जाता खुमार 

हर पल सुगन्धित होता , नित नूतन आते विचार 


सपने पंख लगाकर उड़ते , सुन्दर लगता ये संसार 

होश कहाँ खोता है मन का, जाने करता कौन पुकार 


मोहित करते वन-उपवन , तोड़ देता सारे बंधन 

इंद्र धनुष आखों में होता , महक उठे मन में चंदन


लाख कोई इसे समझाए , अपने मन की करता यौवन 

अँधा कभी ये हो जाता ,  नित नवीन ये करता चिंतन 


कोई पाने लगता मंजिल , कोई कहीं हो जाता गुम

सूरज कभी बन जाता साथी , कभी उसे छूता तम


गुरु किशोर का हाथ पकड़ ले ,हो जाता फिर बेड़ा पार 

सोहबत बुरी जो मिल जाए ,खो जाता जीवन आधार 


नज़रें बदल जाती दुनियाँ की , दिक्कत आती बेशुमार 

शंकाएं कई उठती  मन में ,  जाने होता कौन सवार 


श्याम मठपाल, उदयपुर

ऐसा भी होना चाहिए

 ऐसा भी होना चाहिए

फकत चंदन सा महके जो 

चमन ऐसा भी होना चाह

जिसमें कांटे एक  ना हो

ऐसा उपवन भी होना चाहिए

मीठी नदियाँ सागर में मिल

खुद भी खारी  हो जाती हैं

गजब  की बात  कह  दु  तो

सागर को मीठा होना चाहिए

हज़ार काटे हो जग में हर

 पौधे पर खिले हुए है गुल

इन गुलो  से  मेरा  तुम्हारा

करीबी रिश्ता होना चाहिए

पूर्णिमा पाठक शर्मा

      अजमेर

केवल ज्ञान महोत्सव पर पूजन

 सराक क्षेत्र के विकास में संलग्न भारतवर्षीय दिगंबर जैन सराक ट्रस्ट के केंद्रीय भवन रघुनाथपुर में भगवान नेमिनाथ के केवल ज्ञान महोत्सव पर  पूजन की और  निर्वाण लड्डू समर्पित किया रघुनाथपुर केंद्र में निरंतर धार्मिक सामाजिक और शैक्षणिक गतिविधियां क्षेत्र वासियों के लिए चलती हैं



तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ

 तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ

सिंह की सवार बनकर

रंगों की फुहार बनकर

पुष्पों की बहार बनकर

सुहागन का श्रंगार बनकर

तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ

खुशियाँ अपार बनकर

रिश्तों में प्यार बनकर

बच्चों का दुलार बनकर

समाज में संस्कार बनकर

तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ

रसोई में प्रसाद बनकर 

व्यापार में लाभ बनकर 

घर में आशीर्वाद बनकर 

मुँह मांगी मुराद बनकर 

तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ

संसार में उजाला बनकर 

अमृत रस का प्याला बनकर 

पारिजात की माला बनकर 

भूखों का निवाला बनकर 

तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ

शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी बनकर 

चंद्रघंटा, कूष्माण्डा बनकर 

स्कंदमाता, कात्यायनी बनकर 

कालरात्रि, महागौरी बनकर 

माता सिद्धिदात्री बनकर 

तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ

तुम्हारे आने से नव-निधियां 

स्वयं ही चली आएंगी 

तुम्हारी दास बनकर

तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ

🚩🐅🚩🐅🚩🐅🚩

तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ
सिंह की सवार बनकर
रंगों की फुहार बनकर
पुष्पों की बहार बनकर
सुहागन का श्रंगार बनकर
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ
खुशियाँ अपार बनकर
रिश्तों में प्यार बनकर
बच्चों का दुलार बनकर
समाज में संस्कार बनकर
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ
रसोई में प्रसाद बनकर 
व्यापार में लाभ बनकर 
घर में आशीर्वाद बनकर 
मुँह मांगी मुराद बनकर 
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ
संसार में उजाला बनकर 
अमृत रस का प्याला बनकर 
पारिजात की माला बनकर 
भूखों का निवाला बनकर 
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ
शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी बनकर 
चंद्रघंटा, कूष्माण्डा बनकर 
स्कंदमाता, कात्यायनी बनकर 
कालरात्रि, महागौरी बनकर 
माता सिद्धिदात्री बनकर 
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ
तुम्हारे आने से नव-निधियां 
स्वयं ही चली आएंगी 
तुम्हारी दास बनकर
तुम्हारा स्वागत है माँ तुम आओ

* मधुबाला दुबे *

अतिशयकारी होम्बुज देवी

 धार्मिक संस्कृति से ओत-प्रोत भारत संसार का ऐसा देश है जहां सभी धर्मों के पर्व और त्यौंहार एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। सभी धर्मों के त्यौंहार और पर्व यहां बड़े उल्लास, उमंग और श्रद्धा से मनाए जाते हैं। नवरात्रि जैसा त्यौंहार तो सभी को आन्तरिक शक्ति से परिपूर्ण कर देता है। इस लेख में हम जानेंगे जैन धर्मावलम्बियों के प्रमुख तीर्थ होम्बुज देवी मंदिर के बारे में जानेंगे जहां नवरात्रि का पर्व बहुत ही उल्लास के साथ मनाया जाता है और यह प्रमाणित करता है कि जैन धर्म में नवरात्र कितना महत्वपूर्ण अनुष्ठान व पर्व है –

अतिशयकारी होम्बुज देवी

देश-विदेश से भक्तगण माता होम्बुज पद्मावती के दर्शनों के लिए आते हैं। होम्बुज पद्मावती कर्नाटक के मनोरम तीर्थ स्थलों में से एक है। यह मंदिर चमत्कारी प्रभावों से आज भक्तों में बड़ा ही प्रसिद्ध हो गया है। सातवीं सदी में उत्तर मथुरा के उग्रवंशी जिनदत्त राय ने यहां अपने राज्य की स्थापना की थी। यह राजा जैन धर्मावलम्बियों की यक्षिणी पदमावती देवी के परम भक्त थे। यहां पर कुल दस मंदिर हैं, परन्तु मुख्य मंदिर अतिशयकारी पद्मावती जैन मंदिर है जो भगवान पार्शवनाथ मंदिर के साथ स्थित है।

मनोरथ होते हैं यहां पूर्ण

यहां बड़ी संख्या में भक्त आते हैं और देवी के वर प्रसाद से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। कहा जाता है कि यहां से आज तक कोई भक्त खाली हाथ नहीं गया और नवरात्रों में तो यहां देवी के दर्शनों के लिए भक्त उमड़ पड़ते हैं। माता की मू्र्ति जितनी मनोहारी है उतनी ही उनकी ख्याति है। यहां देवी पदमावती अपने चैतन्य और जीवन्त रूप में उपस्थित हैं।

राजवंश को मिली श्रेष्ठ महिला शासक

माता की भक्ति और शक्ति का ही प्रताप है कि इस राजवंश में श्रेष्ठ महिला शासकों चाकल देवी, कालल देवी और शासन देवी आदि जैसी कई शक्तिशाली महिला शासक मिली जिन्होंने शासन की बागडोर संभाली। होम्बुज की गुरुपरंपरा कुन्दकुन्दानवयांतर्गत नंदी संघ से सम्बन्धित है। इसके भट्टारक स्वामी देवेन्द्र कीर्ति के नाम से जाने जाते हैं जो समस्त क्षेत्र की व्यवस्था का प्रबन्धन करवाते हैं तथा साथ ही अनुष्ठान, धार्मिक कार्य और समारोह उन्हीं के सानिध्य में आयोजित होते हैं।



बदलता है यहां मौसम


 बदलता है यहां मौसम

 रहे बेचैन सा ये  मन।

 तपे है धूप ये हिय 

 कभी तो भीगता यह तन।

 पता भी है नहीं किस ओर जा बैठे यहां मौसम।

 पलों में है बदलते लोग

 कर लो लाख तुम जतन।

न यूं  मुरझा तू अपने को 

भरोसा रख तू अपने पर ।

बने कंचन कनक भी तो 

अनल में है लाख तपने पर।

 यहां मौसम बदलते हैं 

बदलती है कई सूरत।

 न बरसा भी अभी आंसु 

बरसेंगे लोग सपने पर।

सर्दी में सर्द सा  मौसम 

कुहासा छा रहा घन मन।

 दिखे हैं दर्द बरसाते 

बन सजलता छा रहा घन तन।

 न पूछो तुम उदासी है चमन में

 छा गई कैसी।

 किसी ने दे दिए हैं घाव 

बहता है लहू मधुबन।

चंद्र किरण शर्मा,

 भाटापारा छत्तीसगढ़।

होता समय महान है

 


  समय-समय की बलिहारी है,

 होता समय महान है ।

    समय के आगे सब झुकते हैं ,

      समय बड़ा बलवान है।।

जो नर लड़ता देख समय से,

   सदा पराजय होती है ।

    साथ-साथ जो चले समय के,

      विजय उसी की होती है।।


 समय देखकर करे कृत्य जो,

   उसे सफलता मिलती है,

     खाद, बीज, जल समय पै दे जो

      बगिया उसकी खिलती है।।


 चक्र समय का कभी न रुकता,

   देखे नित्य जहान है।

     समय के आगे सब झुकते हैं,

       समय बड़ा बलवान है।।1।।


समय ने सब को सबक सिखाया,

   समय किसी का दास नहीं। 

    समय-समय पर समय सदा ही,

      करवाता आभास सही।।


 जो सुनता आवाज़ समय की,

    समय सदा उसकी सुनता।

      जो नर सुनता नहीं समय की,

        वह पछताता सिर धुनता।।


 रावण कितना बलशाली था,

   बचा न एक निशान है।

     समय के आगे सब झुकते हैं ,

      समय बड़ा बलवान है।।2।।


पांडव बलशाली थे फिर भी,

  चीर लुटा पांचाली का

   अर्जुन का गांडीव मौन था,

      समय रहा बदहाली का।।


 श्री कृष्ण थे  साथ किन्तु वे ,

नहीं युद्ध को टाल सके।

     माने हार समय के आगे,

      बड़े -बड़े थे वीर थके।।


समय समस्या का हल बनता,

  बने समय व्यवधान है।

     समय के आगे सब झुकते हैं,

       समय बड़ा बलवान है।।3।।

🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

जिसने दुख झेले हैं भारी,

 सुख भी उसको आएंगे।

  समय बदलता रहता सबका,

    दुख पीछे रह जाएंगे।।


     बात समय की जिसने मानी,

      वह तो मालामाल हुआ।

         सुनकर भी जो बहरे बन गए,

          बाधक उनको काल हुआ।


क़द्र समय की नहीं करें जो ,

   वह मूरख इन्सान है।

     समय के आगे सब झुकते हैं ,

       समय बड़ा बलवान है।।4।।

🌹🌹🌹🌹🌹🌹ऊ🌹🌹

ज्यों वाणी से शब्द निकल कर,

   वापस कभी न आते हैं।

     धनु से छूटा तीर कभी क्या,

        वापस तुम ला पाते हैं।।


 क्षण-क्षण है अनमोल समय का,

  बीता समय न आ सकता।

    जो करता है मान समय का,

       वही लक्ष्य को पा सकता।। 


 समय की सत्ता जिसने जानी,

  "सुमनेश" वही महान है।

     समय के आगे सब झुकते हैं ,

        समय बड़ा बलवान है।।5

डॉ. सुरेश चतुर्वेदी "सुमनेश"

नमक कटरा भरतपुर राज.


नई बालिकाओं का स्वागत

  मुनि पुंगव पूज्य श्री सुधासागर जी महाराज जी के आशीर्वाद से संचालित बालिका छात्रावास सांगानेर का नया सत्र प्रारंभ हो चुका है बालिकाओं ने प्रवेश ले लिया है नई बालिकाओं के स्वागत हेतु गांधी जयंती 2 अक्टूबर को कार्यक्रम का आयोजन किया गया  सभी बालिकाओं को श्रीमती सुशीला जी पाटनी श्रीमती शांता जी पाटनी तारिका जी पाटनी बीना जी पहाड़िया रजनी जी काला मुंबई श्रीमती शीला जी डोडिया डॉ वंदना जैन  का आशीर्वाद मिला.

 अधिष्ठात्री श्रीमती शीला डोडिया जी द्वारा संस्थान की सभी गतिविधियों का परिचय दिया गया तथा बालिकाओं को छात्रावास के नियम भी समझा गए

 उल्लेखनीय है कि छात्रावास  का नया भवन भी निर्माणाधीन है और छात्राएं कीर्तिमान भी बना रही हैं उनकी प्रतिभा का भी विधिवत विकास हो रहा है

डॉ0 ममता जैन  संपादक श्री  देशना पुणे

सासूमाँ का लाड

            सासूमाँ  का लाड

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वैसे तो हमारे द्वारा जैन समाज मे सर्वपितृ अमावस्या का कोई दिन नहीं मनाया जाता।किन्तु मैं ये जरूर कहूँगी की जीतेजी घर के हर बुजुर्गों की सेवा सम्मान के साथ कर ली ,वही सच्ची श्रधांजलि अर्पण दिन है।

        मेरी दादी,ससुरजी, सासूमाँ ,नानी,,पापा सभी की कोई न कोई याद मेरे पूरे जेहन में है।फिरभी सबसे ज्यादा सासूमाँ  के साथ रही।उनका आशीर्वाद रूप घर कार्य सिखाना आज मुझे बहुत मददगार है।हर कार्य को सलीके से करना ,कम खर्च में ये सबकुछ मुझे सीखने को मिला।जब जुवार की रोटी हाथ से बनती तो वे हमें बहुत प्यार से माँ की तरह बनाकर खिलाती।क्योंकि उनकी मास्टरी थी और हम नही बना पाते।घर बाहर मैनेजमेंट कैसे करना वे हमारी गुरु रहीं।जाते जाते एडवांस में अपनी   पुश्तैनी वस्तुएं हमें प्यार से दे गईं ।आशीर्वाद के साथ।मुझे आज भी याद है हमें मंदिर ले जातीं विधिपूर्वक  पूजन ,अर्चन, स्वाध्याय करती और सीखाती।जरूरतमंदों की सेवा के लिए तत्पर कैसे रहना,क्या खुशी मिलती है वो सभी सद्भावना पाठ  ,जो कि मुझे जीवन मे आत्मसात करने में मेरी गुरु रहीं।ऐसी प्यारी आदरणीय सासूमाँ को नमन करते हुए श्र्द्धांजलि।वे जँहा भी हैं जिस  भव में हैं अवश्य देव गति से हमें आशीर्वाद दे रही होंगी।सादर प्रणाम🙏🏻🎊

:प्रभा जैन इन्दौर

"कुछ टूट रहा परिवारों में

पश्चिमी संस्कृति ने ऐसा रंग दिखाया,

बिखराव हो रहा संस्कारों में,

हँसी खो गई, ख़ुशी खो गई,

कुछ टूट रहा परिवारों में,

मान - मर्यादा सभी खो गई,

युवा पीढ़ी वाचाल हो गई,

आँखों की शर्म - लाज़ खो गई,

हया का पल्लू सरक गया है,

रही न वो बात नज़ारों में,

कुछ टूट रहा परिवारों में,

जिन्होंने तुमको पाला - पोसा,

सिसक रहें अंधकारों में,

हँसी खो गई, ख़ुशी खो गई,

कुछ टूट रहा परिवारों में,

माता - पिता जो मेढ़ थे घर के,

सुबक रहें सिर छुपा दीवारों में,

जीवन की खुशियाँ बेरंग हो गई,

क्या कमी रह गई संस्कारों में,

कुछ टूट रहा परिवारों में,

एक कमाता, दस खाते,

होली - दिवाली खूब मनातें,

दस - दस बच्चों को पाला,

रखी न कसर हज़ारों में,

एक को रखना भारी पड़ गया,

बँटवारें किये दीवारों में,        

कुछ टूट रहा परिवारों में,

चिता सँस्कारों की सजी है,

चिंगारी मत दिखलाओ तुम,

सुनों अब भी बाज़ आ जाओ,

भूली संस्कृति अपनाओ तुम,

न मानी बुज़ुर्गों की बातें,

सुनों मुँह की खाओगे,

हमने जैसे - तैसे काट दी,

तुम न काट पाओगे,

एक साँस भी दूभर होगी,

सिसकोगे दर - दीवारों में,

"शकुन" कुछ टूट रहा परिवारों में | 


- शकुंतला अग्रवाल

"दर्पण झूठ नहीं कहता"

 "दर्पण झूठ नहीं कहता"


झूठी माया, झूठी काया,

झूठा है सब संसार,

झूठे बँधनों में बँधकर,

बन्दे, ईश्वर को नहीं पहचाना,

हंस तन के जब उड़ेगा,

कुछ भी साथ नहीं जाना,

ये सच्चाई है जग की,

कोई झूठ नहीं कहता,

मन के शीशे को निहारकर,

दर्पण झूठ नहीं कहता,


खाली हाथ आया जग में,

ईश्वर ने सब इंतज़ाम किया,

रिश्तें बनायें आते ही सारे,

धन - शौहरत से भी नवाज़ दिया,

भूला तू उसी को बन्दे,

जिस शिल्पकार ने तुझे आकार दिया,

मन शरीर का दर्पण हैं,

दर्पण झूठ नहीं कहता,

क्षण - भंगुर ये दुनिया सारी,

पल - भर का ये खेल है,

भाई - बंधु कुटुंब - कबीला,

दो - पल का मेल है,

कौन आया तेरे संग में,

कौन संग तेरे जायेगा,

उड़न - खटोला जब आयेगा,

अपने - आप को अकेला पायेगा,

"शकुन" तुझे ये बार - बार समझाये,

नादान प्राणी अब भी समझ ले,

मन शरीर का दर्पण हैं,

दर्पण झूठ नहीं कहता।

- शकुंतला अग्रवाल

ग्लोबल वुमन फ़ोरम की मीटिंग संपन्न

6 अक्तूबर 2021 दोपहर 1.30 को 

श्री दिगंबर जैन ग्लोबल महासभा के तत्वावधान में   ग्लोबल वुमन फ़ोरम की मीटिंग वर्चुअल  का आयोजनहुआ

*दिगंबर जैन समाज में आर्थिक रुप से कमजोर व विधवा महिलाओं को रोज़गार के लिए *

जैन महिलाओं के उत्थान पर  एवं समाज के विकास हेतु चर्चा करने के लिए देश भर की कुछ विशेष प्रतिष्ठित महिला जूम मीटीग में उपस्थित  रही

 श्री  दिगंबर जैन ग्लोबल महासभा द्वारामहासभा के नवनिर्वाचित अध्यक्ष श्री जमनालाल जैन हपावत ग्लोबल  ने महिलाओं को  उनकी प्रतिभा को विकसित करने का पूर्ण आश्वासन दिया और महिलाओं से सहयोग के लिए भी कहा....  महिलाएं समाज की प्रगति का आधार हैं  महिलाओं  समाज का विकास महिलाओं द्वारा कि संभव है सभी को मिलकर समाज के लिए कार्य करना है

 हमारे जैन समाज की आर्थिक रुप से कमजोर महिलाओं के परिवार को हम किस प्रकार से रोज़गार दिला कर आत्मनिर्भर बनाने के साथ शिक्षा व चिकित्सा (स्वास्थ्य)मे  सहयोग कर सकते हैं  व समाज को हर क्षेत्र में आगे बढ़ाने में क्या-क्या काम कर सकते हैं उसकी चर्चा हुई . उन्होंने ग्लोबल महासभा के उद्धेशय पर भी प्रकाश डाला 

  उत्तर से दक्षिण व पूर्व से पश्चिम पूरे देश के दिल्ली महाराष्ट्र गुजरात उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र आसाम बंगाल बिहार राजस्थान आदि अनेक राज्यों की लगभग 42 प्रतिष्ठित परिवारों की महिलाओं ने इस मीटिंग  में समाज उत्थान में सहयोग देने के लिए अपनी  राय रखी  श्री मति रीता जी धर्म पत्नी श्री प्रदीप जी जैन आदित्य झाँसी पूर्व केंद्रीय मंत्री ने  महिलाओं व समाज उत्थान के लिए सेवा भाव से अपनी ओर से साथ व सहयोग केलिये स्वीकृति प्रदान की है महिलाओं ने श्री जमनालाल जैन हपावत मुंबईको  पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया ..

 डॉ0 ममता जैन

  संपादक श्री  देशना पुणे

क्या आप नवरात्र साधना के लिए तैयार हैं ?

 क्या आप नवरात्र साधना के लिए तैयार हैं ?

[  कमलेश कमल]


दुर्गोत्सव आरंभ होने को है । इससे जुड़ी तमाम उद्भावनाओं, स्थापनाओं एवं अवधारणाओं  के बीच यह प्रश्न विद्यमान है कि क्या हम सच ही जागरण के लिए तैयार हैं ? आइए कुछ विचार करें !


क्या माता का जगराता (जागरण की रात्रि का अपभ्रंश) कर आप भी माता को जगाने वाले हैं ? अवश्य करें ! पर यह ध्यान रहे कि माता आदि शक्ति है जो हम सबके अंदर है, उस शक्ति का अर्थात्  अपना जागरण करना है। 


दस दिन बाद जब हम विजयादशमी मना रहे होंगे,  तो शब्दों की कम समझ रखने वाले भोले-भाले आम जनों की तरह  आप भी इसे किसी घटना या किसी चीज के उपलक्ष्य में मना कर इतिश्री कर लेंगे ,  या इसे समझेंगे कि यह दुर्गोत्सव हमारे अपने ही दुर्ग पर विजय का उत्सव है??


तो, अगर जीत गए, स्वयं से ही जीत गए, स्वयं का ही जागरण हो गया तभी विजयादशमी सार्थक है। जिस पराम्बा,  चिन्मात्र, अप्रमेय, निराकार,  मंगलरूपा,  आराधिता, मोक्षदा, सर्वपूजिता, सर्व सिद्धिदात्री, नारायणी शक्ति की हम आराधना करते हैं, वे  हमारे अंदर ही अवस्थित हैं। इसे समझकर ही हम अपनी संकल्पित इच्छाशक्ति से उस शिवा (शिव या कल्याण को उपलब्ध कराने वाली) को महसूस कर आगे बढ़ सकेंगे, अपनी ही वासनाओं, इच्छाओं पर विजय प्राप्त कर सकेंगे जिससे कि  कर्म के बंधन कटेंगे।


700 श्लोकों से युक्त दुर्गा सप्तशती के पाठ को हम आँख और दिमाग दोनों खोल कर पढ़ें,  इनसे जुड़ी पूजा-पाठ की पद्धतियों को वैज्ञानिकता की कसौटी पर कसने की कोशिश करें! 


जब हम आचमण करें - “गंगे च यमुना चैव गोदावरी  सरस्वती नर्मदा सिंधु कावेरी जलेस्मिन् सन्निधिं कुरु” पढ़ते समय यह ध्यान हो कि ये पवित्र नदियों के नाम हैं जिनसे हमारी आस्था जुड़ी है, जो हमारे संस्कार में हैं। हम इनका पवित्र जल अत्यंत अल्प मात्रा में पी रहे हैं। यह भी ध्यान रहे कि आचमन में चम् धातु है जिसमें पीना और गायब होना दोनों शामिल है। अस्तु, यह जल इतना ज्यादा नहीं है कि आंतों तक जाए। यह हृदय के पास ज्ञान चक्र जाते-जाते गायब हो जाता है, अर्थात् यह ज्ञान की तैयारी का प्रतीक है।


जब अर्घ्य दें तो पता हो कि जो अर्घ के योग्य है , वही अर्घ्य (अर्घ् +यत्) है... या जो बहुमूल्य है और देने के योग्य है वही अर्घ्य है। तो, पूजा-पाठ की सामग्री के साथ अपने मन के आदर और श्रद्धाभाव को भी मिलाएँ जिससे  वह देने योग्य हो जाए।


जब हम संकल्प करें तो तो अपनी वासनाओं, बुराइयों पर विजय का संकल्प करें। जब हम शुद्धि करें (कर शुद्धि, पुष्प शुद्धि, मूर्ति एवं पूजाद्रव्य शुद्धि , मंत्र सिद्धि शरीर-मन की शुद्धि ) तो यह ख्याल रहे कि यह साधना है, कोई आडंबर नहीं ।


तदुपरांत दिव्या: कवचम्, अर्गलास्तोत्रम् ,  कीलकम्,  वेदोक्तं रात्रिसूक्तम्  से लेकर त्रयोदश अध्याय तक पाठ करते समय हमें शब्दों के महत्व पर विचार अवश्य कर लेना चाहिए  यथा कवच अपने सदविचारों और संकल्प का है , और जो हम पढ़  रहे हैं ,उसका कुछ ऐसा ही प्रतीकात्मक अर्थ है। 


अंत में क्षमा प्रार्थना, श्रीदुर्गा मानस पूजा, सिद्ध कुंजिकास्तोत्रम्,  आरती आदि के पाठ के समय हर समय यह ध्यान रहे कि हमें अपनी ही आंतरिक शक्ति को जगाना है, अपने ही सत्त्व, रज और तम वाली त्रिगुणात्मक प्रकृति पर विजय पाना है, किसी बाहरी व्यक्ति या वस्तु पर नहीं।


अगर हम ऐसा कर सके तो हमारी यह शक्ति नित्या (“जो नित्य हो, विनष्ट न हो)  सत्या (सत्यरूपा) और शिवा (सर्वसिद्धिदात्री)  हो जाएगी और हम पुलकित भाव से अपनी साधना को फलीभूत होते देख सकेंगे और हमारा सर्वविध अभ्युदय हो सकेगा -


ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां यशांसि  न च सीदति धर्मवर्ग: ।

धन्यास्त एव निभृतात्मजभृत्यदारा 

येषां सदाभ्युदयदा भगवती प्रसन्ना ।

कमल

{कल पढ़ें माँ शैलपुत्री के बारे में !}

नवरात्र की पूर्व संध्या पर कुछ सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर शब्दों का शब्द गुच्छ !

 नवरात्र की पूर्व संध्या पर कुछ सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर शब्दों का शब्द गुच्छ !


ग़म के अंधेरे में जो उम्मीद का उजाला साथ रखते हैं..!

वो ही तो अक्सर ज़माने से हटकर कुछ बात रखते हैं..!


बदलियाॅं बारिश की हो या ग़म की छट ही जाती हैं..!

रात कितनी भी घनेरी हो आखिर कट ही जाती है..!


एक उम्मीद ही है जो मानव को सदा ही उर्जा देती है..!

जो हिम्मत ना हारता जिंदगी उसे हटकर दर्जा देती है..!


मुश्किल वक़्त भी तो एक ना एक दिन गुजर जाता है..!

कोयले की कोख से जन्म लेता वो पत्थर हीरा कहलाता है..!


कमल सिंह सोलंकी

रतलाम मध्यप्रदेश

श्री सिद्धांत तीर्थ क्षेत्र पर अति भव्य णमोकार मंत्र जाप्यानुष्ठान

 श्री सिद्धांत तीर्थ क्षेत्र पर अति भव्य णमोकार मंत्र जाप्यानुष्ठान 

 समिति ने सभी से अधिक से अधिक संख्या में जाप कर पुण्यार्जन की भावना अभिव्यक्त की है 

विस्तृत कार्यक्रम संलग्न पोस्टर में है



मुनिश्री प्रमाण सागरजी की जीवनी, उन्हीं की जुबानी।



विश्वप्रसिद्ध जैन संत मुनिश्री प्रमाण सागरजी की जीवनी, उन्हीं की जुबानी। वाह ज़िन्दगी की अद्भुत प्रस्तुति "एक दिन गुरुदेव के साथ" में 30 सितम्बर को पारस टी वी पर प्रसारित हुई जिसे ऐतिहासिक रूप से लाखों लोगों ने देखा।

अगर किसी कारण से आप नहीं देख पाये तो यूट्यूब की  लिंक के द्वारा इस ऐतिहासिक प्रस्तुति को जरूर देखें।

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हुमंचा माँ पद्मावती अतिशय क्षेत्र सर्वोदय तीर्थ धारूहेड़ा

  धारूहेड़ा में हुमंचा  पद्मावती माता का सुंदर मंदिर हैमाँ पद्मावती के करोड़ो अनुयायी है और उनके अलग अलग स्थान पर अनेकों मन्दिर बने   धारूहेड़ा के अतिशय क्षेत्र सर्वोदय तीर्थ में अपूर्व आनंद की अनुभूति होती है | इसके बहुत से मुख्य कारण हैं एक तो ये हुमंचा के बाद दूसरा मन्दिर है जहाँ माता जी के भवन में शिखर बना हुआ है वह भी 108 कमल पुष्पो एवँ स्वर्ण से बने कलश एवँ स्वर्ण से बनी ध्वजा से सुशोभित । इसी के साथ आप यहाँ पर माँ पद्मावती जी की परिक्रमा भी कर सकते हैं और सबसे विशेष बात आप यहाँ अपने पूरे परिवार के साथ माता का 108 चांदी के कलशों से अभिषेक एवँ शांतिधारा और दिव्य श्रृंगार कर सकते हैं और अच्छी बात ये है कि यहाँ महिलाओं को भी पुरुषों के समान अवसर दिया जाता है । 

 यदि आप भी माँ पद्मावती के भक्त हैं तो अपने पूरे परिवार के साथ इस धारूहेड़ा में स्थित सर्वोदय तीर्थ पर एक बार अवश्य जायें । नवरात्रों के समय आपका ये आनन्द 9 गुणा बढ़ जायेगा क्योंकि यहाँ होगी माँ की संगीतमय भक्ति जिसमे आपको 108 चाँदी के कलशों द्वारा माता का अभिषेक करने का अवसर मिलेगा, साथ ही 1008 सामग्री से माता रानी का दिव्य श्रंगार किया जायेगा, रत्नों द्वारा पुष्प वृष्टि होगी और 1008 दिव्य मन्त्रों से माता का कुमकुम का अभिषेक करने का आपको नवरात्रों में सौभाग्य प्राप्त होगा । आपको अपने पास से कुछ लाने की आवश्यकता नही है, आपके रुकने, खाने-पीने और सभी सामग्री की आवश्यकता धारूहेड़ा की कमेटी आपके लिये करके रखेगी तो आज ही सम्पर्क करें - भाई प्रद्युमन जैन (ट्रस्टी) अतिशय क्षेत्र सर्वोदय तीर्थ धारुहेड़ा- 9811221008


गरीब घरों की लड़कियां

 गरीब घरों की लड़कियां

"अरे ! सुधा !!  सुनती हो?" घर में घुसते हुए नमिता ने अपनी सहेली सुधा को आवाज लगाते हुए कहा। आवाज सुनकर सुधा  किचन से बाहर निकली और बोली, अरे ! नमिता !! आओ, आओ । क्या हुआ ?  नमिता ने बड़े रहस्य का  उद्घाटन करते हुए कहा, ध्यान हैं गली के कॉर्नर पर जो लड़की ,,,,,,,, अपनी बूढ़ी मां के साथ !" सुधा ने हां में हां मिलाते हुए कहा, " हां हां, जानती हूं बहुत नाज नखरे बाज। उसके लक्षण तो मुझे कभी ठीक नहीं लगे। जब देखो पढ़ाई के बहाने किताब लेकर इधर-उधर..... ।" सुधा ने  मन ही मन कुछ अनहोनी का अंदेशा लगाते हुए किंचित प्रसन्न होते हुए कहा। नविता बोली , "हां -हां । वही मैंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि वह  ......।" उसकी बात को बीच मे ही  काटते हुए सुधा बोली, " ऐसे घरों की लड़कियां ऐसी ही होती हैं।"  नमिता ने कहा,  अरे !!!  सुना है वह आर ए एस बन गई है !" 

सुधा का मुंह खुला का खुला रह गया।

  शबनम भारतीय

सिद्धांत तीर्थ क्षेत्र शिकोहपुर में महामस्तकाभिषेक




  02.10.2021 समाधि सम्राट आचार्य  रत्न 108 श्री बाहुबली जी महाराज   की पावन प्रेरणा से निर्मित सिद्धांत तीर्थ क्षेत्र शिकोहपुर में वर्ष में एक बार होने वाले महामस्तकाभिषेक में भगवान बाहुबली के प्रथम अभिषेक का सौभाग्य श्री रमेश चंद संदीप कुमार जैन गुडगांव वालों को प्राप्त हुआ । महामस्त काभिषेक  के भव्य आयोजन को परम पूज्य मुनि श्री 108 प्रभाव सागर जी एवं  गणिनी आर्यिका 105 श्रुतदेवी माता जी एवं 105  सुज्ञानी मति माताजी ससंघ का मंगल सानिध्य प्राप्त हुआ समारोह में आसपास के क्षेत्र के सैकड़ों भक्तो ने उपस्थित होकर पुण्य  लाभ लिया सभी को मुनि संघ का  का मंगल आशीर्वाद प्राप्त हुआ

एक पुनर्विचार' पर राष्ट्रवादी लेखक संघ की साहित्यिक वैचारिकी

राष्ट्रवादी लेखक संघ के तत्वावधान में गांधी पर एक साहित्य वैचारिकी का आयोजन किया गया जिसमें देश-विदेश से वक्ता और लेखक जुड़े।

'गांधी : एक पुनर्विचार' कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए लंदन के श्री नीलेश जोशी ने कहा कि गांधी-मत में प्रमुखता पाने वाले सत्य और अहिंसा का विचार यों तो अच्छा है, लेकिन क्या भेड़िए के समक्ष भी हम अहिंसक ही रहेंगे? अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई केवल अहिंसा के बल पर नहीं जीती जा सकती थी। देश की आजादी के लिए नेताजी के नेतृत्व मे लड़ते हुए आजाद हिंद फौज के 26 हजार से अधिक सैनिक बलिदान हो गए थे। ऐसे मे देश को आजादी दिलाने का क्रेडिट नेताजी को भी उतना ही मिलनी चाहिए। प्रथम विश्व युद्ध में गांधी के समर्थन से कुल 9 लाख भारतीय अंग्रेजों की तरफ से लड़े थे, जिसमें लगभग 48000 सैनिक शहीद और 50,000 से अधिक सैनिक घायल हुए थे। गांधी अगर राष्ट्रवादी और अहिंसावादी थे, तो देशवासियों को शहीद होने के लिए लड़ने क्यों भेज दिया? 



गंगा महासभा के श्री गोविंद शर्मा ने कहा कि गांधी प्रैक्टिसिंग हिंदू थे। शुद्ध शाकाहारी, व्रतधारी, पूजाकर्ता, गीतापाठी और वर्णाश्रम  पालक व्यक्ति थे। देश के बंटवारे के दौरान जितनी भी गलतियां हुई, निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि सारी गलतियां गांधी की ही देन है। जिन लोगों ने दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए, वे सभी जिम्मेदार है। यह सत्य है कि गांधी हमें विभाजित भारत दे गए, जनसंख्या के संतुलन को बिगड़ने दिया, लेकिन सोचने की बात है कि हम एक नागरिक के रूप में अखंड भारत के लिए क्या कर रहे हैं? सनातन संस्कृति की रक्षा के लिए हम कितने संकल्पित हैं। अब कोई दूसरा बटवारा ना हो, इसके लिए हम किस तरह की जिम्मेदारियां निभा रहे हैं, इस पर भी विचार करना होगा।

               

युवा अधिवक्ता श्री कौस्तुभ त्रिपाठी ने कहा कि गांधी को आज ऐसा स्थान हासिल हो चुका है कि उनकी शान में गुस्ताखी करने की जुर्रत नही होती। अब जरूरत इस बात की है कि नए परिवेश में गांधी और उनकी विचारधारा को नए सिरे से परखा जाय कि क्या वास्तव में देश के हीरा अकेले वही थे? क्या केवल गांधी के दम पर ही देश को आजादी मिल पाई? उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में देखा जाए तो गांधी एक असफल पुत्र, असफल पिता और असफल पति रहे हैं, फिर  आजादी की लड़ाई में कैसे सफल हो गये? देश के लिए गांधी के योगदान की जहां तक बात है, उन्होंने भारत लौटने के बाद एक भी क्रांतिकारी और सेनानी के पक्ष में मुकदमा नहीं लड़ा, क्यों ? मात्र एक केस लिया भी था लेकिन उसे भी पूरा नहीं लड़ा? गांधी द्वारा स्वामी श्रद्धानंद के हत्यारे को भाई कहना और उसे सही ठहराना तथा श्रद्धानंद के समर्थन में एक शब्द नहीं बोलना गांधी की राष्ट्रभक्ति पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है। बंटवारे के बाद देश छोड़ने वाले मुस्लिमों की संपत्ति पर उनके मालिकाना हक  और मुस्लिमों की सुरक्षा का दबाव बनाने वाले गांधी सरहद-पार हिंदुओं के कत्लेआम पर चुप रहे। तो क्या ईश्वर अल्लाह तेरो नाम कहना एक नाटकमात्र था? उन्होंने बल दिया कि प्रत्येक प्रयोग का कोई न कोई परिणाम निकलता है। 


गांधी  के ब्रम्हचर्य के प्रयोग का परिणाम भी सामने आना चाहिए। संस्थापक न्यासी श्री आदित्य विक्रम श्रीवास्तव ने कहा कि सत्य और अहिंसा का आज भी कोई विकल्प नहीं है, लेकिन यह समझने की जरूरत है कि गांधीजी का सत्य वस्तुतः क्या था? उनकी अहिंसा किस तरह की थी? सन  1915 में  अफ्रीका से भारत लौटने पर कांग्रेस गरम दल के अवसान के नाते उन्हें उभरने का मौका मिल गया तो उन्होंने  असहयोग आंदोलन छेड़ दिया, लेकिन यह असहयोग आंदोलन भारत की आजादी के लिए नहीं, दर असल तुर्की के खलीफाओं के समर्थन में था, जिसे खिलाफत आंदोलन नाम दिया गया। लेकिन जब उन्हें पता चला कि आंदोलन का नेतृत्व राष्ट्रवादियो के हाथ में जा रहा है, तब पता नहीं किसके दबाव में आकर उन्होंने असहयोग आंदोलन को अचानक बीच में ही रोक दिया। उनके इस तुष्टिपरक फैसले से कांग्रेस के अंदर और बाहर भी असंतोष फैल गया। उन्होंने कहा कि देश के बंटवारे के फलस्वरुप ₹55 करोड़ पाकिस्तान को देने के लिए गांधीजी का अनशन पर बैठना, जामा मस्जिद प्रकरण पर मुस्लिमों का पक्ष लेना, पाकिस्तान के पूर्वी और पश्चिमी भाग को जोड़ने वाला गलियारा भारत के बीचो बीच से देने के लिए जिद करना, और तो और, इस्लाम व तलवार के बीच के संबंध को प्रतिकूल परिस्थितियों  की देन मानना गांधी के मुस्लिम तुष्टिकरण का अकाट्य प्रमाण है। इस तरह की मानसिकता के व्यक्ति को पंथनिरपेक्ष भारत  का पिता कहा जाना कहाँ तक संगत है। 

               

'गांधी: एक पुनर्विचार' शीर्षक से संपन्न साहित्य वैचारिकी में तमाम विद्वानों के बीच विषय प्रवेश करते हुए राष्ट्रवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव श्री अनूप नवोदय ने कहा कि गांधी के प्रयोग में आया सत्य और अहिंसा तो वास्तव में जीवन का अंग, बुद्ध का पथ, शांति की दिशा है ; लेकिन 1906 मैं जुलू विद्रोह को अंग्रेजों ने बलपूर्वक दबाया तब गांधी जी अंग्रेजी सेना में सार्जेंट के रूप में कार्य कर रहे थे। प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में भी  देशवासियों के विरोध के बावजूद गांधी अंग्रेजों के पाले में खड़े हो गए और भारतीयों को अंग्रेजों की तरफ से युद्ध में लड़ने के लिए कहने लगे। गांधी का यह दोहरा आचरण कहीं न कहीं उनकी भूमिका पर पुनर्विचार करने को उद्यत करता है। 


राष्ट्रवादी लेखक संघ के अध्यक्ष श्री कमलेश कमल की अध्यक्षता में संपन्न इस गोष्ठी में पूर्व राजभाषा अधिकारी श्री राजेश्वर उनियाल ने बड़े तर्कपूर्ण शब्दों में गांधी के व्यक्तित्व और कृतित्व के अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम की सफलता पर संस्थापक न्यासी श्री अखिलेश्वर मिश्र, श्री रघुनाथ पाण्डेय, श्री भावेश जाधव, श्री कुणिक तोमर, श्री अन्वेष सहित देश भर के राष्ट्रवादी लेखकों ने बधाई प्रेषित की।


रघुनाथ पाण्डेय 

संस्थापक न्यासी

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