इस दुष्ट दुनिया में कुछ भी स्थाई नहीं है.. हमारी परिस्थितियां भी नहीं.. गम खुशी, अश्क हंसी, हार जीत, दुश्मन मीत वक्त के साथ सब बदलते रहते हैं.. जिन्होंने जिंदगी में संघर्ष किया वो इस रचना से इत्तेफाक रखेंगे..!
आज ग़म है कल ख़ुशी होगी फिर ग़म का मातम क्यों करें..!
जिसने जख्म़ दिए इलाज भी वो करेगा हम मरहम क्यों करें..!
ऊपर वाले को सब की फिक्र है सुना है वो बड़ा रहमदिल हैं..!
पतझड़ के बाद बहारें आती ही है फिर आंखें नम क्यों करें..!
कश्ती के नसीब में डूबना लिखा हो तो किनारों पे डूब जाती है..!
साहिल लिखा हो किस्मत में तो फ़िक्र-ए-अलम क्यों करें..!
ज़िंदगी की उलझी जुल्फें संवरती है सदा मेहनत की कंघी से..!
ये बात हर ज्ञानी कह गया फिर अपने हौसले बेदम क्यों करें..!
विश्वास के पहले दो अक्षर से विष बनता है संधि विच्छेद कर लो..!
ख़ुद से ज़्यादा ख़ुद पे विश्वास कर ऐरे गैरे को हमदम क्यों करें..!
कमल सिंह सोलंकी
रतलाम मध्यप्रदेश
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