अतीत के विकृत संकल्पो,
की मिथ्या परछाई ने,
उन्नति के पथ पर रोडे अटकाए,
जाने क्यों ? स्त्री थोथे नियमो की सीमा को
लांघ ना पाए ।
ब्रह्मांड में जो कुछ भी चलायमान,
उत्पत्ति निर्माण में स्त्री का योगदान
उपलब्धियों पर हीन दृष्टि पाए
जाने क्यों ? स्त्री अपनी शक्ति को,
पहचान न पाए ।
शून्य जगत का हर कोना
गति पाता स्त्री के तप से
वही जगत से हेय दृष्टि पाए
जाने क्यों ? स्त्री अभिमानियों के मिथ्या दम को
मिटाना चाह ना पाए।
नियम वर्जनाओ की बेड़ियों मे भी
सृजन व पालन की ताकत,
मानस पटल पर भय शंका बढ़ाएं,
जाने क्यों ? स्त्री अपनी पीड़ा को,
बतला न पाए ।
जग स्त्री उपलब्धियों को पचाना पाए,
कमी निकालने से बाज ना आए,
टूटता स्त्री मनोबल षड्यंत्रों में फंस जाएं,
जाने क्यों ? स्त्री अपनी विवशता को
समझ न पाए ।
प्रश्न गरिमा का प्राणी मात्र से
क्यों सृजन शक्ति के मत्सर (जलन )
अवहास की आदत अपनाएं
जाने क्यों ? संसार की सृजन शक्ति
सम्मान न पाए ।
गरिमा खंडेलवाल
उदयपुर
No comments:
Post a Comment