किसी भी दाम्पत्य जीवन में तलाक शब्द ही तबाही का दूसरा नाम है, यह सिर्फ दो व्यक्ति ही नहीं वरन उनसे जुड़े कई परिवारों को भी अपने अंदर समेट लेता है।



खुशियों की होम डिलीवरी तो अमूमन सभी चाहते हैं मगर तलाक जैसा अनचाहे मेहमान को कौन घर बुलाना चाहे? फिर भी गर नियति को यही मंजूर होता है तो इस पर इंसानों का कोई बस नहीं चलता है। तलाक किसी भी सुखद दाम्पत्य जीवन के प्लानिंग में नहीं होता, जीवन में यह मोड़ जब भी आता है ज़िन्दगी के लिए चुनौतीपूर्ण और पीड़ादायक ही होता है। इसके एक नहीं बहुत सारे कारण हैं, जिसमें कुछ मुख्य कारणों का उल्लेख अवश्य करना चाहूँगी।


प्रथम दृष्टया देखें तो, अब महिलाओं में जागरूकता आ गई है। वह भी अपना अधिकार जानने और मांगने लगीं है। घर हो या दफ़्तर, वह दबकर या फिर अपमानित होकर या फिर यूँ कह लीजिए कि रौब सहकर नहीं रहना चाहती है। आप इसे अहंकार कह लीजिए या फिर आत्मसम्मान। सबको तो नहीं पर कुछ महिलाएं खासकर जो काफी पढ़ी-लिखी महिलाऐं है, जो आत्मनिर्भर हैं उनमें कुछ तो कतई समझौता नहीं करना चाहती। चाहे वो लड़का हो या लड़की। वैसे ज्यादातर तलाक की स्वीकृति लड़कों के तरफ से ही पाया गया है। लड़कियाँ ना स्वयं अपना अपमान बर्दाश्त कर पाती है और ना ही घरेलू झगड़े में उसके परिवार वालों को गाली-गलौज, अपशब्द या अपमान जनक कोई व्यवहार सह पाती है। सामान्य सा मनोविज्ञान है वह जितना प्रेम और परवाह अपनें पार्टनर के लिए करती है, उतना उससे अपेक्षा भी करती है।


विश्वास किसी भी मजबूत रिश्ते के बीच की एक महत्वपूर्ण कड़ी होती है। जहाँ कहीं भी इसकी कमी खटकती है, बस टोक-टाक शुरू हो जाता है, यह परस्पर दोनों तरफ से होता है जो दरार डालने के लिए पर्याप्त होता है।


अगर हम लड़कों की बात करें तो इस भाग-दौड़ भरी जिंदगी में 
लड़के भी अपनी साथी से यही उम्मीद करते हैं। वह भी चाहता है कि उसकी पत्नी बिल्कुल रिजर्व रहे, ज्यादा आज की आधुनिक दुनिया में किसी और पुरूष के संसर्ग में ना आए। मगर आज आलम यह है कि आधुनिकता के इस दौड़ में पच्चीस फीसदी महिलाओं को यह बंधन किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं, तभी दोनों नए रास्ते की तरफ मुड़ना शुरू कर देते हैं।


छोटी-छोटी बातों को मठेर कर रिश्ते निभानी जानी चाहिए, दादी-काकी हमें यही सिखाती है। अब यह सब सहकर जीवन जीने वाली महिलाओं को आज के दौर में गवार और लाचार कहा जाता है। आज किसी भी रिश्ते में समझौता नामक हथियार का धार बहुत मुड़झाया सा लगता है। यही कारण है कि लोग बिना सोचे-समझे फैसले लेने पर अमादा हो जाते हैं।


पति पत्नी के रिश्तों में कम, सही और उचित शब्द ही परोसा जाए तो बेहतर है, पर यह भी मुमकिन तो नहीं जीवन भर के लिए। यह भी बहुत बड़ा कारण है दाम्पत्य के जीवन में मित्रता न होना,
कई बार तो कारण दहेज भी हुई है, वैसे प्रेम विवाह में ज्यादा तलाक पाया गया है। कारण यह है कि प्रेम विवाह में विवाह के बाद प्रेम के अलावे सब कुछ रहता है।


इन्हीं सब वजहों के कारण भारत में प्रतिवर्ष अस्सी हजार से एक लाख के आसपास दाम्पत्य तलाक के लिए अदालत पहुँचते है।


(और आज के समय में सब बिंदास, बे-फिक्र जीना चाहते हैं, कभी-कभी तो अपने दायित्व से परे होकर भी)


जिसका खामियाजा तलाक देकर भरना पड़ता है। स्वयं को तो तकलीफ़ देते ही हैं साथ ही इनके फैसलों में पिसते हैं कभी कोई नौनिहाल तो कभी कोई बुढ़ा माँ-बाप। यह एक अभिशाप की तरह ही है।

©सोनी नीलू झा 

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