मानवीयता की हवा खिलाफ है

 आज की रचना में आपको राजनीतिक, सामाजिक और पारिवारिक रंगों का मिश्रण मिलेगा.. मतलब थ्री इन वन.. बस शर्त यह है की मेरे लफ़्ज़ों की गहराई को समझें..!


चंद खोटे सिक्के जो कभी भी चल ना सके बाजार में..!

वो भी आज कमी निकाल रहे हैं हर एक के किरदार में..!


गैरों के सामने आईने रखने का यह कैसा चला चलन है..!

जो धोखा फरेब की दुकान है वो खुद को गिनते ना गुनहगार में..!


उजड़ चुकी है सारी बस्तियां जो शुमार थी कभी शरीफों में..!

वो सब बस्तियां आजकल सिर्फ मौकापरस्तों से गुलजार है..!


मानवीयता की हवा खिलाफ है आजकल हर एक शख्स से..!

कभी ये हर एक साथ थी आज दिखती नहीं है दो चार में..!


अदब की ज़मीन बंजर हो चली है अब बेअदबी का आलम है..!

अब कहां वो पहले सी मह़क मिलती है आज आदर सत्कार में..!


पत्ते गर पीले पड़ जाते तो डालियां उन्हें दूर छिटक देती है..!

डालियों वाले दस्तूर का चलन है आज बुजुर्गों के संसार में..!


मन्नत पूरी ना हो तो लोग आज भगवान तक को बदल देते हैं..!

हमने देखा लोगों को भटकते अलग-अलग भगवान के दरबार में..!


कमल सिंह सोलंकी

रतलाम मध्यप्रदेश

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