बदलता है यहां मौसम
रहे बेचैन सा ये मन।
तपे है धूप ये हिय
कभी तो भीगता यह तन।
पता भी है नहीं किस ओर जा बैठे यहां मौसम।
पलों में है बदलते लोग
कर लो लाख तुम जतन।
न यूं मुरझा तू अपने को
भरोसा रख तू अपने पर ।
बने कंचन कनक भी तो
अनल में है लाख तपने पर।
यहां मौसम बदलते हैं
बदलती है कई सूरत।
न बरसा भी अभी आंसु
बरसेंगे लोग सपने पर।
सर्दी में सर्द सा मौसम
कुहासा छा रहा घन मन।
दिखे हैं दर्द बरसाते
बन सजलता छा रहा घन तन।
न पूछो तुम उदासी है चमन में
छा गई कैसी।
किसी ने दे दिए हैं घाव
बहता है लहू मधुबन।
चंद्र किरण शर्मा,
भाटापारा छत्तीसगढ़।
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