रावण
वेद-शास्त्रों का मर्मज्ञ
सर्वज्ञाता–
पूछ रहा बेदर्द दुनिया के
बाशिंदों से यह
क्यों उसे जलाया जाता हर वर्ष
आश्चर्य होता है
पराली जलाने पर जेल व ज़ुर्माना
परंतु ऊंचे से ऊंचा पुतला
जलाए जाने पर वाह-वाही
क्या पर्यावरण-प्रदूषण नहीं होता
उस विषैले धुएं से
वह जन-सामान्य से प्रश्न करता
मैंने तो सीता का हरण कर
उसे अशोक-वाटिका में रखा
और छुआ तक नहीं
परंतु आज हर चौराहे पर
मासूमों की लुटती अस्मत देख
क्यों मौन हो तुम
सब रिश्तों को ताक पर रख
हो रहा बालिकाओं का यौन-शोषण
आजकल बालिका भ्रूण रूप में
मां के गर्भ में नहीं सुरक्षित
न ही पिता के सुरक्षा-दायरे में महफ़ूज़
क्यों हर दिन घटित होते हादसों को देख
आहत नहीं होता तुम्हारा मन
ज़रा सोचो!
क्यों नहीं उन दहशतग़र्द
दरिंदों को फांसी पर चढ़ाया जाता
हर वर्ष उनका पुतला जलाया जाता
क्या किसी ने दुष्कर्म-पीड़िता को
बना कर रखा अपना हमसफ़र
दिया अपने घर में आश्रय
क्या उस पीड़िता को सहनी
नहीं पड़ी आजीवन ज़िल्लत
बोलो! क्या उसकी नियति
सीता से अलग है
जिसने झेली निष्कासन की
असहनीय पीड़ा व दु:ख-दर्द
परंतु रावण व सीता की नियति
कभी नहीं बदलेगी
और यह दिखावे का खेल
निरंतर यूं ही चलता रहेगा
नहीं होगा बुराई का अंत
अच्छाई मुंह छिपा कोने में पड़ी रहेगी
बहाती रहेगी अजस्त्र आंसू
जिसमें एक दिन
बह जाएगी सारी क़ायनात
और रावण के प्रश्न का
उत्तर देने का साहस
कोई नहीं जुटा पाएगा
क्योंकि यहां सब भीतर से बौने हैं
मुखौटा धारण कर जीते हैं
●●●डॉ• मुक्ता●●●
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