किसने कहा था इतना करीब जाने को,
अब क्यूँ दूरियों के दर्द से भरे दिखते हो..
मोहब्बत किस्से कहानियों में ही भली है,
मगर तुम तो इसे हक़ीक़त में लिखते हो...
जिन गमों से गुज़र के भी देख लिया तुमने
क्यों अब तक उन्हें कन्धे पे उठाये फिरते हो...
बड़ी मुश्किल से सम्भले हो गिर के इक बार,
क्यूँ हर बार उल्फत की दलदल में ही गिरते हो...
दर्द मिले हैं जिस शख्स की चाहत से तुम्हे,
उसी से दवा की उम्मीद भी अब करते हो...
न ख्वाइशें ही बची ज़िंदा न ख्वाब ही मरे सब,
पर तुम हो कि आज भी इक नाम पे मरते हो...
होठो पे मुस्कुराहट और पलकों पे नमी रख के,
दिल मे ज़ज़्बात का समंदर छिपाये फिरते हो...
वो तुम्हे अलविदा कह के बढ़ गया कब से आगे,
तुम आज तक भी उसे याद करके आहें भरते हो...!!!
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