कितना बदल गया है जीवन,

 मेरे बचपन वापस आजा

तुझे भुला ना पाऊँगी।

गाँव-गांव में गली-गली में,

तुझ संग दौड़ लगाऊँगी।।



 कितना बदल गया है जीवन,

 लेकिन तू मुझमें बसता है ।

 हर-पल उछल कूद मैं करती,

 एहसास तेरा हरदम रहता है ।।


 जी भरके जिया मैंने बचपन,

 वो मधुर यादें भुला ना पाऊँगी।

 कितना नटखट था वो बचपन,

 क्या वापस मैं तुझको पाऊँगी।।


मेरे बचपन तू दूर न जाना ,

हर पल मुझमें ही रहना ।

तेरे संग ही जीना मुझको,

 तेरे संग ही मर जाना।।


 बचपन में वह सब कुछ पाया, 

 जो कुछ मैंने चाहा था।

 हर पल अपने संग लेकर,

 बचपन मुझमें जिया था ।।


गाँव मेरा बहुत बड़ा था, 

लेकिन तू मुझमें जीता था।

 एक छोर से दूजी छोर तक,

 संग- संग मेरे चलता था।।


बचपन मेरे लौट के आजा,

 तुझ संग जीना चाहती हूँ।

 जीवन के अंतिम पड़ाव पर,

जी भर कर जीना चाहती हूँ।।


सरला विजय सिंह 'सरल' चेन्नई

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