करे भले कोई निन्दा-चुगली
कितनी भी वो उठाले उंगली
हरक़त करे चाहे जो कैसी
लत उसकी जैसी की तैसी
"एक चुप सौ चुप बराबर"
यही मानता है सन्तोषी
स्वच्छान्दित-आनन्दित हृदय,
दर्शा देता है खामोशी
कुविचार मन में न आऐं
सकारात्मक ऊर्जा लाऐं
इन्द्रियों पर भी पड़े प्रभाव
स्थिर सदा रहे सद् भाव
नजर में है कोई न दोषी ।
स्वच्छान्दित-आनन्दित हृदय,
दर्शा देता है खामोशी ।।
( बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज"
कोटा (राजस्थान)
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