संसार असार है अस्थाई है, क्षण भंगुर है, पानी के बुलबुले के समान है, बाहुबली के मन में आया , एक राज्य के लिए क्या लड़ना , सब कुछ हमारे भावों की भावनाओं पर केन्द्रित है , एक पल में विध्वंस , एक पल में आत्म उत्थान, 12 मास तक कायोत्सर्ग ध्यान-साधना में लीन , इतना ऊंचे ध्यान में बस एक छोटी सी कांच के कण की तरह चिंतन में अटकी रही शल्य ने मुक्ति का मार्ग रोक दिया , और हम तो ऊपर से नीचे तक शल्य कषाय में डूबे भटके हुए रहते हैं , बस इस प्रकरण से हम यह सीख ले कि हम अपने मन के अंदर दहकती हुई शल्यताओ से खुद को जीतने का प्रयास व पुरुषार्थ निरन्तर जारी रखेंगे । सब अपने अंदर की आन्तरिक उहापोह से बाहर निकले , साथियों वीतरागता की ओर बढे । सारी दुनिया अकेली है ,हम खुद ही अपना आत्महित कर सकते हैं , आत्महित के लिए खुद को जीतना व तपाना पड़ेगा ,यह कोई विरासत नहीं है कि बाप दादाओं के मरने के बाद गिफ्ट में मिल जाएगी । आओ आत्म कल्याण के लिए आत्म पुरुषार्थ की ओर बढ़े ।
अनिल चेतन जैन दशमेश नगर मेरठ
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