उलझन है किशोर वय मन की
कभी मन में तूफान उमड़े , कभी मन बन जाता सागर
कभी मन गगन को छूता, कभी मन बन जाता पत्थर
नित नए परिवर्तन होते , उलझन किशोर वय मन की
ज्वाला सी धधकती मन में , कैसे कहें हम उस तन की
उर में आनंद उमड़ता , नयनों में छा जाता खुमार
हर पल सुगन्धित होता , नित नूतन आते विचार
सपने पंख लगाकर उड़ते , सुन्दर लगता ये संसार
होश कहाँ खोता है मन का, जाने करता कौन पुकार
मोहित करते वन-उपवन , तोड़ देता सारे बंधन
इंद्र धनुष आखों में होता , महक उठे मन में चंदन
लाख कोई इसे समझाए , अपने मन की करता यौवन
अँधा कभी ये हो जाता , नित नवीन ये करता चिंतन
कोई पाने लगता मंजिल , कोई कहीं हो जाता गुम
सूरज कभी बन जाता साथी , कभी उसे छूता तम
गुरु किशोर का हाथ पकड़ ले ,हो जाता फिर बेड़ा पार
सोहबत बुरी जो मिल जाए ,खो जाता जीवन आधार
नज़रें बदल जाती दुनियाँ की , दिक्कत आती बेशुमार
शंकाएं कई उठती मन में , जाने होता कौन सवार
श्याम मठपाल, उदयपुर
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