सपनों की दुनिया

शिवानी आधुनिक ज़माने की मॉडर्न सोसाइटी की स्वतंत्र विचारों की लड़की थी या यों कहें उसकी परवरिश एक आधुनिक विचारों वाले परिवार में हुई थी। यह उस ज़माने की बात है, जब लड़कियों को ज्यादा आज़ादी नहीं होती थी, उन्हें चूल्हे - चौके तक ही सीमित रखा जाता था। दसवीं पास की, अच्छा परिवार देखा और लड़की को परणा दिया जाता था। लड़की की हाँ या ना कोई मायने नहीं रखती थी। शिवानी कॉलेज में बी - ए सेकण्ड ईयर में पढ़ रही थी।


स्टेज प्रोग्राम, यूथ फेस्टिवल, गायन, नृत्य, स्पोर्ट्स, एन - सी - सी में भाग लेना और कॉलेज की राजनीति में भी उसका अच्छा - ख़ासा वर्चस्व था। घर के साथ - साथ उसके गांव में भी उसका सिक्का चलता था। शिवानी अब शादी लायक हो गयी थी, इसलिए उसके जीवन - साथी की तलाश जारी थी। उसे भी अपने सपनों के राजकुमार का इंतज़ार था कि नीले घोड़े पर सवार होकर, वह उसके अनचाहे सपनों में रंग भरने आएगा। जब भी वह अपने राजकुमार को सपनों में सँजोती, तो उसके ज़हन में मुकेश के गानें की लाइनें कौंधने लगती और वह भी उसके साथ - साथ गुनगुनाने लगती - 


"मैं राम नहीं हूँ, फिर क्यों उम्मीद करूँ सीता की,


इंसानों में क्यों ढूँढूं पावनता गँगा की,


दुनिया में फ़रिश्ता कोई नहीं,


इंसान ही बनके रहना,


मुझे नहीं पूछनी तुमसे बीती बातें-----"


और वह सपनों की हसीन दुनिया में पहुँच जाती कि क्या कोई ऐसा इंसान भी हो सकता है जो इंसानों के रूप में देव स्वरूप होगा। जो मेरी स्वतंत्रता का उतना ही सम्मान करेगा, जितना अपनी का। क्या वह मेरी हर तमन्ना पर खरा उतरेगा ? यही सोचते - सोचते वह सो जाती, अपने हसीन ख़्वाबों की दुनिया को फिर से सँवारने में। आखिरकार वह घड़ी भी आ पहुँची जिसका उसको और उसके घर वालों को बेसब्री से इंतज़ार था।


उसकी सगाई घरवालों की और उसकी इच्छा के अनुरूप अनिल से की गयी। शिवानी की स्वीकृति को भी महत्व दिया गया। जबकि उस ज़माने में लड़की की हाँ - ना का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था, परंतु शिवानी को यह आज़ादी दी गयी थी। सगाई के बाद दोनों तरफ़ से पत्रों का आदान - प्रदान होने लगा। दोनों का दिल मिल गया और भावनायें उड़ान भरने लगी। दोनों अपने भावी दुनिया के ख़्वाबों को सजाने में खोये रहते थे।


अचानक पता चला कि अनिल के घरवालों को किसी ने भड़का दिया। उन्हें शिवानी के बारे में उल्टी - सीधी पट्टी पढ़ा दी गयी। वह यह सगाई रखने के लिये बिल्कुल भी तैयार नहीं थे। उनका कहना था कि शिवानी जैसी लड़की के लिए उनके घर - आँगन में कोई जगह नहीं। इन सब बातों से शिवानी और अनिल का दिल टूट गया था।


परन्तु अनिल के द्वारा लिखी गयी चिट्ठी की इबारत ने शिवानी के मन - मयूर को नाचने पर मजबूर कर दिया था। शिवानी को लगा कि जिस राजकुमार की उसने सपनों में कल्पना की थी वह अनिल ही है। अनिल ने चिट्ठी में लिखा था कि ये जो समाज के ठेकेदार बने फिरते हैं, उन्हें कोई अधिकार नहीं हैं कि वह बिना देखे - जाने किसी लड़की के लिए बिन सर - पैर की बातें करें। ये या तो एक दिन कीड़े - मकौड़े की तरह कुचल जायेंगे या फिर कुचल दिए जायेंगे। इनकी तुच्छ सोच किसी भी लड़की को नापाक साबित नहीं कर सकती।


अगर कोई लड़की आज़ाद ख्यालों की हैं, तो उन्हें इसे कलंकित करने का अधिकार नहीं मिल जाता। इन जैसे तुच्छ प्रवृति वाले लोगों से लड़कियों को अपना करैक्टर सर्टिफिकेट लेने की जरुरत नहीं हैं। इन्हें अपने दकियानूसी विचारों को तिलाँजली देनी होगी। इन चंद समाज के ठेकेदारों को हक़ नहीं हैं कि वह समाज के सामने लड़कियों को नीचा दिखाये। मैं तुम्हारे साथ हूँ और दुनिया की कोई भी ताकत हम दोनों को एक - दूसरे से अलग नहीं कर सकती। दोनों ने एक - दूसरे का साथ निभाने की कसम खायी। और शिवानी और अनिल ने एक स्वस्थ परिवार की नींव डाली और आज उनकी मिसालें दी जाती हैं।


इस दकियानूसी समाज में कुछ अनिल जैसे लोग भी हैं जो लड़कियों को भी अपने समान समझते हैं और उन्हें आगे बढ़ने का मौका देते हैं |


- शकुंतला अग्रवाल

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