दर्द को भी दर्द होता है
हकीकत समझो कि अफसाना इसे बेवफा की मोहबत है मुश्किल अब निभाना इसे
खफा है मुझसे अब तन्हाईआं भी मेरी जरुरत नहीं दिल का रास्ता अब बताना इसे
मेरी आँखों में उतर गया है बादल का टुकड़ा शायद मौसम कोई भी हो बरस जाता है
अधूरा प्यार झूठे कौल ओ करार थे उसके दिल ना माने है मुश्किल अब समझाना इसे
अशकों की स्याही से लिखे हैं कुछ शेर मैंने जितने लिखती गयी उतने ही बढ़ते गए
बेवफाई का लगा इलज़ाम कभी दिल लगी से हुए बदनाम भी हुआ मुश्किल अब छिपाना इसे
दर्द को भी दर्द होता है अपनी ही मोहब्बत की कहानी में जब खुद का ही कतल होता है
शायर है ग़ज़ल लिखते है बेवफा को बेवफा लिखा है क्या मुश्किल है अब समझाना इसे
सवाल ही सवाल है कहीं से मिले न कोई जवाब है पाँव में है बेड़िआं एक किस्सा मेरी तन्हाई का
ग़मों की आगा मुसलसल जला रही है मुझे कसूर दिल का है कि खुवाब का अब मुश्किल बताना इसे
पत्थर से हम खुद को पत्थर कर बैठे है वह तो कारीगर था पत्थर से पत्थर की मूर्त हमे बना गया
खुदा हर खुवाहिश उसकी पूरी करे गुज़ारिश है शिकायत नहीं बस मुश्किल है अब दबाना इसे
गुरिंदर गिल
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