खैर खुशी से दिन बीते थे,
गम का नाम निशान नहीं।
बेफिकरी का आलम रहता,
दुःख का कोई काम नहीं।
चिन्ता से था दूर का नाता,
मस्ती भरा जमाना था।
बचपन था अनमोल खजाना,
हर गम से बेगाना था।
नज़र लगी ना जाने किसकी,
बीता बचपन चढ़ी जवानी।
धीरे धीरे उमर बीतती,
पहले जैसी कहाँ रवानी ।
बचपन तुझको आज पुकारुँ,
दौलत शोहरत वापस जा।
बिछुड़ गया तू जालिम मुझसे,
मेरे बचपन वापस आ।
पदम प्रवीण
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