जैनों की जनसंख्या बढ़ाने के कुछ उपाय


1. सभी जैन अपने नाम के साथ जैन अवश्य लिखें  । गोत्र लिखते हैं तो उसके साथ भी जैन अतिरिक्त रूप से जोड़ दें ।


2. जब भी जनसंख्या गणना हो तो जाति और धर्म के कॉलम में मात्र ' जैन ' लिखें और भाषा के कॉलम में प्राकृत लिखें ।


3. जिस परिवार में अधिक संतान हों उन्हें सार्वजनिक रूप से सम्मानित करें । उनकी आर्थिक स्थिति के अनुसार उनकी आर्थिक मदद करें । उन्हें रोजगार दें । संयुक्त परिवार को प्रोत्साहित करें ।


4.सभी जैन अपने बच्चों के विवाह में खुद देर न करें । 18-21 वर्ष होते ही विवाह कर दें । विवाह संस्था को बहुत सहज चलने दें । पढ़ाई विवाह के बाद भी चलने दें और जॉब ऐच्छिक रहने दें ..बंधन न रखें । दुर्भाग्य से विधवा या विधुर होने पर पुनर्विवाह की स्वतंत्रता और पर्याप्त अवसर रखें ।


5.समाज में ऐसे कार्यक्रम अधिक संख्या में चलाएं जिसमें नए जैन  युवक युवतियों के आपस में परिचय बढ़ें और वे अन्य धर्म समाज में प्रेम विवाह करने की अपेक्षा अपनी समाज में बॉय फ्रेंड/ गर्ल फ्रेंड तथा जीवन साथी  प्राप्त कर सकें । 


6.उनमें जैनत्व के संस्कार इतनी दृढ़ता से रखें और उन्हें जैन समाज में इतना अपनत्व दें कि वे अपनी समाज से जुड़ें और उन्हें अन्य समाज की संस्कृति,खानपान रास ही न आये ।


7. छोटे छोटे नगर,गांव और कस्बों में हज़ारों अनाथालय खोलें और सभी जाति और धर्म के बच्चों को उसमें बचपन से रखें ,उनकी शिक्षा दीक्षा सभी जैन धर्म दर्शन के अनुकूल दृढ़ता पूर्वक दें । उन्हें जैन धर्म का कट्टर भक्त बना दें । उनकी उनके परिवार की आर्थिक और सामाजिक मदद करें । 


8. कोई अन्य संप्रदायों की उपेक्षित समाज हो तो मात्र मद्य मांस और मदिरा - इन तीन मकारों का त्याग करवा कर तथा देव दर्शन का संकल्प करवाकर उन्हें श्रावक दीक्षा दें और उन्हें गोत्र दान करें ।


9. अल्पसंख्यक मान्यता वाले उच्च स्तरीय स्कूल जो समाज द्वारा संचालित हैं उनमें जो नाम के साथ जैन लिखे उनकी फीस माफ कर दें तथा प्रोत्साहित करें कि वे जैन आचार का पालन करें । 


10. निःसंतान जैन दंपति संतानों को कानूनी रूप से गोद अवश्य लें । जिनके एक संतान हैं और वे यदि आर्थिक रूप से सम्पन्न हैं तो वे भी संतानों को गोद लें । इससे अनाथ बच्चों को सहारा मिलेगा और उन्हें जैन संस्कार मिलने से उसका भी कल्याण होगा । 

11. अपनों को भटकने से रोकें और दूसरों को अपना बनाएं  - इस मिशन पर कम से कम 25 वर्ष की योजना,बड़ा बजट और टीम बनाकर कार्य करें । 

इन उपायों के विपरीत अति आदर्शवादी होने से पहले 

बस इतना ध्यान रखिएगा - 

अगर अब भी न संभले तो मिट जायेंगे खुद ही ।

दास्तां तक भी न होगी फिर दस्तानों में ।।

डॉ अनेकान्त जैन ,नई दिल्ली

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