गांधी जयंती पर विशेष ........
महात्मा गांधी का जैन शास्त्र प्रेम
डॉ अनेकान्त कुमार जैन ,नई दिल्ली
मुंबई में आयोजित एक जैन कॉन्फ्रेंस में महात्मा गांधी ने एक व्याख्यान प्रस्तुत किया था, उसमें उन्होंने कहा कि
मेरे लिए तो मुक्ति का दरवाजा अहिंसा धर्म का पलना है । मुझ पर जैन भाइयों की इस कदर कृपा दृष्टि है कि मुझ को उनकी लेना देनी है। भारतवर्ष में एक सगे भाई के समान भाई बंदी के साथ रहने का दावा जैन ही कर सकते हैं।
मेरे परम मित्र डॉक्टर प्राणजीवन जैन है जिनके चरित्र का मुझको सम्मान है । रायचंद भाई मेरे मित्र थे और शहर मुंबई में मेरे रहने का जो स्थान है वह भी एक देवाशंकर जैन भाई का है । सफर के मध्य मुझे बहुत से जैन भाइयों से अक्सर वास्ता पड़ा है और बहुत से उस समय मुझसे पूछते हैं कि क्या आप जैन है? इस प्रश्न के उत्तर में मैं यदि नहीं कहूं तो उनको दुख अनुभव करते देखता हूं इसका मतलब इसके सिवा और कुछ नहीं कि यदि में जैन होता तो ठीक इससे उनका प्रेम मेरी ओर होता ऐसा मैं ख्याल करता हूं क्योंकि जिस बात को वह मानते हैं उस पर मैं अमल करता हूं ।.........
मैं वकील हूं और मैंने जैन शास्त्रों का किसी कदर अभ्यास भी किया है और श्रद्धा भी है।
जब माणिकलाल जेठाभाई ने अहमदाबाद में एक सार्वजनिक पुस्तकालय स्थापित किया तो उसका उद्घाटन महात्मा गांधी जी ने किया उस समय उन्होंने एक मार्मिक भाषण भी दिया था।
इस अवसर पर उन्होंने कहा था कि
गुजरात में जैन धर्म की पुस्तकों के अनेक भंडार हैं परंतु वह वणिकों के घर हो रहे हैं ,वह उन ग्रंथों को सुंदर रेशमी वस्त्रों में लपेट कर रखे हुए हैं ,ग्रंथों की यह दशा देखकर मेरा हृदय आहत हो रोता है ।
पुस्तकालय में जैन धर्म के उपलब्ध जैन ग्रंथ एकत्र हो इतना ही क्यों जब आज किसी भी जैनी को ठीक यह पता नहीं है कि कौन कौन से जैन ग्रंथ विशेष हैं ? तब भला कहिए कि वर्तमान में जैनी अयोग्य हैं या नहीं ? प्रोफेसर हीरालाल जी की योजना जो प्रगट हो चुकी है इस कलंक को मिटाने का ही उपाय बताती है । क्या जैन श्रीमान उस को सफल बनाएंगे ?
यह समाचार उन दिनों के समाचार पत्रों में छपे थे ।
श्री लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय ,नई दिल्ली के जैन दर्शन विभाग द्वारा आयोजित विशिष्ट व्याख्यान माला में डॉ अमित जैन (चाणक्य वार्ता ) द्वारा 'स्वतंत्रता संग्राम में जैन' विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया गया , उस समय उन्होंने अखबार की कटिंग सहित इन तथ्यों को उजागर किया था और मैंने अपनी डायरी में उस समय जो नोट्स बनाये थे उसके कुछ अंश यहां प्रस्तुत किये हैं ।
आज आवश्यकता है कि गांधी जी के ऊपर जैन धर्म के प्रभाव का गहन अनुसंधान हो और उसे प्रामाणिक रूप से सभी के समक्ष प्रस्तुत किया जाय ।
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