मैंने अपनी उंगलियों को धड़कना सिखा दिया है..!
ताकि मेरी क़लम के ये जज़्बात हमेशा ज़िंदा रहे..!
सज़ा मिली देश भक्तों को सदा शातिरों को नजराना मिला है..!
जवां होने से पहले फांसी पे झूले उन्हें नाम दीवाना मिला हैं..!
जो ज्यादा जीएं उन्होंने भारत मां को बड़े ही ज़ख्म दिए..!
अवाम को फाका परस्ती उन्हें भरा हुआ पैमाना मिला हैं..!
उलट-पलट कर देखो इतिहास के पन्नों को समझ जाओगे..!
सर कटाएं गुमनाम रहे चापलूसों को ख़ज़ाना मिला है..!
मुझे किसी से शिक़ायत नहीं पर सच लिखने की आदत है..!
मुझे गर्व हैं वतन पर इसी से ही मुझे आबो दाना मिला हैं..!
कमी नहीं है आज भी भारत मां को जख्म देने वालों की..!
पर कुछ शानदार शख्सियतों से मां को मुस्कुराना मिला है..!
जब तक उंगलियों में जान है मेरी कलम में हिंदुस्तान है..!
नमन क्रांति वीरों को जिनसे हमें बेहतर जमाना मिला है..!
कमल सिंह सोलंकी
रतलाम मध्यप्रदेश
No comments:
Post a Comment