मायका

   कविता

मायके के प्यार पर ,ये सारी नारी वारी है|
कुछ दिन को जाती है ,साल भर का प्यार लाती है|
उसी प्यार से खुद को, ऊर्जावान बनाती है|
ससुराल के छप्पन भोग भी ,मां  की रोटी पर बलिहारी हैं|
मायके के प्यार पर,  ये सारी नारी वारी हैं|
मायके में जाती है तो खुद बच्ची बन जाती हैं|
छोटी-छोटी यादों को डिब्बों में  भर  लाती है|
 वापस आते आंसुओं से  भीगी  इनकी साड़ी है|
मायके के  प्यार पर ,ये  सारी नारी वारी है|
मां ओ भाभी कहती  , सब सामान बांध लो
 पापा कहते कुछ भूल ना जाना बेटा|
 सब सामान  समेटती हूं,   बस छूटती यादों की गठरी  है|
मायके के प्यार पर  ,ये सारी नारी वारी है|
 मायके को कभी गाली पड़े, तो तन बदन जल जाते हैं|
 बड़े लोग सही कहते हैं, मायके की तो लकड़ी भी प्यारी है|
मायके के प्यार पर , यह सारी नारी वारी है
  वर्षा शर्मा दिल्ली



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