जूली की सास अक्सर बीमार रहती थी। जूली उनकी देखभाल करती थी। उन्हें समय से दवाई देना, और खाना खिलाने की जिम्मेदारी को भली भांति निभाती थी।यह सब उसके बच्चे देखते रहते थे । जब उसकी सास सो जाती थी , तब उन्हें वह चद्दर ओढा देती थी,और बच्चों से कहती थी कि, शोर मत मचाना, दादी सो रही है। यह सब बच्चों के दिमाग़ में बैठा गया था,कि सोयै इंसान को कभी भी परेशान नहीं करना चाहिए। यह उन्हें समझ में आता था।रंजना बहुत ही मेहनती महिला थी। सारा दिन घर में काम करती रहती थी। झाड़ू, पोछा, बर्तन, कपड़ा करते-करते कब समय निकल जाता था, उसे पता ही नहीं चलता था। उसने बच्चों में दूसरों के प्रति प्यार सम्मान आदर व समर्पण की भावना कूट-कूट कर भरी थी ।बच्चे भी उसकी हर बात मानते थे। वे बहुत ही आज्ञाकारी थे। एक दिन प्रेस करते-करते रंजना को टेबल पर ही नींद आ गई। वह कपड़े को पकड़ कर हाथ में वही बैठे-बैठे टेबल पर सो गई ,तभी बच्चे खेलते हुए बाहर से आए, उन्होंने देखा मम्मी टेबल पर थक कर सो गई है। यह देखकर 5 साल का छोटा बेटा दौड़ कर चद्दर ले आया और अपनी मां को ओढ़ाने की कोशिश करने लगा पर रंजना टेबल पर बैठी थी ,अतः उसका हाथ नहीं पहुंच पा रहा था ,तब उसे एक तरकीब सूझी, दूसरी टेबल को खींच कर धीरे से अपनी मां के समीप लाया, और उस पर चढ़कर ,अपनी मां को चद्दर ओढ़ाने की कोशिश करने लगा। इधर 3 साल की छोटी बेटी भी दौड़ कर एक कंबल ले आई। जूली को एहसास हुआ कि बच्चों ने उसे चादर उढाई है, वह सोए सोए सोचने लगी कि मेरे बच्चे भी मेरा कितना ध्यान रखते हैं । मैं इन्हें हमेशा अच्छे संस्कारों से ही सिंचित करूंगी, इस तरह सोए सोए रंजना के मन में अपने बच्चों के प्रति प्रेम उमड़ रहा था।। ।
शिक्षा
जैसे बीज हम बच्चों में बोएंगे वही पाएंगे ।
इसीलिए बच्चों में हमेशा प्रेम, समर्पण, त्याग ,आदर अच्छी शिक्षा और व्यवहार के बीज ही बोने चाहिए। तभी अच्छे संस्कारों का पौधा हमारे घर आंगन में फलेगा और लहलहायेगा।।।
नीता गुप्ता
रायपुर छत्तीसगढ़
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