मन का दीप
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मन मंदिर का दीप न जलाएं, बाहर दीप जलाते हो।
अंधकार है अपने मन मंदिर में, बाहर ज्योति दिखाते हो।।
दीप जलाने का शाब्दिक अर्थ यह है ,की आपके अंदर खुशी विराजमान है।आपको किसी प्रकार का गम नहीं है ।आप शांति सुख समृद्धि से परिपूर्ण है। आप सकारात्मक विचार धाराओं से परिपूर्ण है। सकारात्मक विचारधारा की रोशनी आपके अंदर जब फैलती है, तब नकारात्मकता रूपी अंधकार समाप्त हो जाता है या मिट जाता है। दीप सकारात्मक विचार का सूचक है। हमारे पूर्वज इतने दूरदर्शी, प्रियदर्शी और समदर्शी थे ,कि वे
समझ गए थे, हमारे आगे आने वाली पीढ़ी आपस में टकराएगी। अपने स्वार्थ में, अपने अहंकार में मानवता का विनाश हो जाएगा। और अपनी नकारात्मक विचार धाराओं से मानव जगत और प्राणी जगत पर एक दुष्प्रभाव चक्र का बीजारोपण होने की संभावना बन जाएगी ।इसलिए हमारे पूर्वजों ने दीप सकारात्मक विचारधारा को प्रतीक मानते हुए मानवता का अस्तित्व को कायम करने के लिए ,दीप जलाने और एक होकर भावनाओं की माला पीरोए ,एक साथ होकर प्राणी जगत एवं मनावता को बचाने का संदेश दिया ।अवर समझाया कि जिस तरह एक छोटा दीप अंधकार को मिटा देता है ।उसी तरह छोटा सकारात्मक विचार नकारात्मक विचार को समाप्त कर देता है ।यदि यह छोटे-छोटे दीप, दीपमाला का रूप ले ले तो बड़ा से बड़ा नकारात्मकता रूपी अंधकार समाप्त हो जाएगा। यह हमारे पूर्वजों की आत्मा की आवाज है। उनका यह एक संदेश है। अपने अंदर फैला नकारात्मक अन्धकार स्वार्थ, ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार, लालच को हम नम्रता, सहयोग, त्याग, दया, क्षमा ,और अपनी आत्मिक भावनाओं का सकारात्मक दीप जला कर मिटा सकते हैं।
यहां एक बात और मैं कहना चाहूंगा की दीप जलाने का अर्थ विजय को प्राप्त करना है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से या वैज्ञानिक दृष्टिकोण से दीप जलाना और दीपों की माला बनाना स्वछता ,सद्भावना और प्रेम का प्रतीक है।
व०च०_दीनानाथ
मु०+पो०_रूपसागर, बक्सर
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