दोहा क्या है?

हिन्दी साहित्य में जितना दोहों के रूप में लिखा गया है शायद ही किसी अन्य विधा में लिखा गया हो ।

दोहा देखने व कहने में बहुत ही सरल दिखाई देता है किन्तु  इसके विशाल परिवार के वारे में कुछ विद्वानों को छोडकर कम ही लोग जानते हैं ।

इतना सभी को पता है, कि दोहा मात्रिक छंद है,इसमें चार चरण होते हैं, पहले व तीसरे चरण में १३-१३ व दूसरे व चौथे चरण में ११-११ मात्राएँ होती हैं ,इस प्रकार कुल ४८ मात्राएँ तथा अंत में लघु होता है ।

किन्तु कभी-कभी मात्राएँ सटीक होने पर भी दोहे में लयात्मकता नहीं होती, इसका प्रमुरव कारण गणों का सही स्थान पर न बैठ पाना है ।

नवोदित रचनाकारों के लिये यह बताना आवश्यक है ।

दोहों के प्रकार --

दोहों के वारे में ऐ उत्सुकता रही कि ऐसी जानकारी दी जाय कि लोग आसानी से समझ सकें, दोहों के प्रकार के साथ उनके उदाहरण भी स्वरचित हैं ,जो कि आसानी से समझे जा सकते हैं ।

दोहा मात्रिक छंद है,पिंगल के अनुसार ।

विद्वानों ने लिख दिये, तेइस प्रमुख प्रकार ।

दोहों के तेईस प्रकार ये हैं --


भ्रमर,सुभ्रामर, सरभ,नर, कच्छप,पान गयन्द ।

हंस ,श्येन, मंडूक, वल, मर्कट  दोहा  छंद ।

त्रिकल,पयोधर,करभ अरु,अहिवर,उदर विडाल ।

सर्प, श्वान, शार्दुल सहित, मच्छ अंत महुँ व्याल ।


१ -भ्रामर ÷

इस दोहे में चार लघु और बाईस गुरू होते हैं, उदाहरण --

नारी-नारी का रटै, नारी छूटी जात ।

नारी जो छूटी भला,तेरी का औकात ।

२-- सुभ्रामर --

( २१ गुरू व ६ लघु)

उदाहरण -

नारी सों नारी करै, मीठी-मीठी बात ।

तो जानो गौने गई, ताको हाल सुनात ।

३ - सरभ ÷

 (२० गुरू ८ लघु)

जोगी - भोगी एक से, खोजें रूप हमेश ।

भोगी  ढूँढें  भोग  को, जोगी जपें महेश ।

४- नर ÷

(१५गुरू व १८लघु)

उदाहरण -

सरित,शस्त्र,नख,कामिनी, रखे श्रंग जो खास ।

कहें  भारती  भूलि कें, करै  नहीं  विश्‍वास ।

५- कच्छप÷

( ८गुरू ३२ लघु)

उदाहरण --

प्रथम सुमिर गुरु के चरण,पद रज सीस लगाय ।

जिनके शुभ आशीष ते, तन - मन कलुष नसाय ।

६-पान ÷

( १० गुरु २८ लघु)

उदाहरण --

सुमिर सदा शिव शारदा, गणपति सीस नबाय ।

नीति शब्द वर्णन करूँ, सुनहु सुजन मन लाय ।

७ -गयन्द ÷

(१३ गुरू २२ लघु) 

उदाहरण ÷

दुख-सुख ,संकट, राज में, अरु अकाल,शमशान ।

संग  न  छाँडे  छऊ  में, वाँधव  सोई  जान ।

८ --हंस ÷

(१४ गुरु२० लघु)

उदाहरण ÷

वंधु न विद्या, जीविका, नहिं आदर जिहिं देश ।

छाँडि  देउ  उस  देश  को, जाय बसो परदेश ।

९-श्येन ÷

(१९ गुरू व १०लघु)

उदाहरण ÷

नारी  पै  नारी  चढी, नारी  खीचें  जात ।

नारी आवत हाथ में,सबकी प्यास बुझात ।

१०-मंडूक ÷

(१८गुरु १२ लघु)

उदाहरण ÷

पी पी पी टेरत सदा, पी तो गये विदेश ।

पी पी कहि पीरी भई, कौन कहै संदेश ।

११- बल ÷

(११ गुरु २६ लघु)

उदाहरण -

पा तन मानुष भजन करि,हरि का मूरखचंद ।

बिना भजन का भव तरै, कटें न दुख के फंद ।

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कुछ ऐसा सृजन करें



आइए मिल बैठकर 

देश हित में चिंतन करें ।

खिल उठे मुरझाए चेहरे

 कुछ ऐसा सृजन करें।।


जहां मयूसी डाले डेरा

उम्मीदों का दीप जलाएं।

चहुंओर बिखरे उजियारा

ऐसा कुछ जुगत लगाएं ।।

घर घर आए खुशहाली

खुशियां का दर्शन करें ।

आइए मिल बैठकर 

कुछ ऐसा चिंतन करें।।


बढ़कर उसे गले लगाए 

जिसका नहीं साथी सहारा।

नहीं भटको सिर अपने ले

दर्दो गम का बोझ यारा।।

थका हारा दिखे जब कोई 

उसका उत्साहवर्धन करें।

चेहरे पर मुस्कान लाए

कुछ ऐसा सृजन करें।।


सरहद पर सीना ताने

खड़े देश के वीर जवान।

हंसते हंसते मर मिटते

होंठों पर रखकर मुस्कान।।

उनके पावन जज्बे को

हृदय तल से नमन करें।

देश प्रेम की बहे बयार

कुछ ऐसा सृजन करें।।

 मीरा सिंह "मीरा"

 ज्ञानोदय तीर्थ नारेली में  दिगम्बर जैन समाज की प्रथम महिला जिला एवम सत्र न्यायाधीश जोकि अभी बीकानेर में नियुक्त है सुश्री मीनाक्षी जी जैन अपने पूज्य माता पिता के साथ आई इस अवसर पर ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र नारेली प्रभारी ब्रह्मचारी भईया श्री सुकान्त जैन के सानिध्य में श्री दिगम्बर जैन महिला महासमिति की राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष श्रीमती मधु पाटनी एवम श्री दिगम्बर जैन महासमिति अजमेर के अध्यक्ष अतुल पाटनी द्वारा माल्यार्पण कर एवम शाल ओढाकर स्वागत करते हुए सम्मान किया


 आहिस्ता आहिस्ता 


सूरज निकल रहा है, मौसम बदल रहा है 

चमकने लगी हैं किरणें ,आहिस्ता आहिस्ता आहिस्ता 


किसान हल चलाए ,पसीना वो  बहाए 

बीज बो दिए हैं ,  सपनों को वो जगाए  

पौंधे निकल रहे हैं, तस्बीर बदल रहे हैं 

छाने लगी हरियाली ,आहिस्ता आहिस्ता आहिस्ता 


पत्थरों को तोड़े  ईंटों को वो जोड़े 

दीवार बन रही है, कोई कैसे छोड़े

आकृति बन रही है, बजरी छन रही है 

भवन बन रहा है ,आहिस्ता आहिस्ता आहिस्ता 


नदी बह रही है, आवाज कर रही है 

तेज बहुत वेग है ,साँस थम रही है 

डोलती है नैय्या ,बचालो मुझे भैय्या 

पार हमको जाना ,आहिस्ता आहिस्ता आहिस्ता 


खड़ी है चढ़ाई ,बहुत है ऊंचाई 

संभल कर चलना ,हो जाती है विदाई 

कदमों का ये खेल ,हिम्मत का ये मेल 

चोटी पर पहुँचना ,आहिस्ता आहिस्ता आहिस्ता 


हर बूँद को बचाना ,कहता है जमाना

जीवन है इसी से ,व्यर्थ ना गंवाना 

धैर्य रखो मन में , दूर तुमको जाना 

मंज़िल करीब होगी , आहिस्ता आहिस्ता आहिस्ता 


आती जब जवानी ,हो जाती है दिवानी

जोश होता बढ़कर ,लिखे नई कहानी 

होश न गंवाएं , कभी न पछताएँ

आग का ये दरिया , आहिस्ता आहिस्ता आहिस्ता 


खाना पीना चलना , धीरे धीरे करना 

मुश्किल हैं राहें ,कहीं न फिसलना 

बुद्धि का तू मालिक, सोचना समझना

दवा असर करती ,आहिस्ता आहिस्ता आहिस्ता 


श्याम मठपाल ,उदयपुर

अजब-गजब कारोबार हो रहा है

 अजब-गजब कारोबार हो रहा है भगवन तेरे जहान में..!

फूलों की चाहत रखता है मानव कांटे लिए घूमता ज़ुबान में..!

हर एक को दरकार है की ज़माना उससे मोहब्बत करें..!

पर हर एक ने नफ़रत सजा रखी है दिल की दुकान में..!

रिश्तों में भी आजकल नफा नुक़सान देखने लगे हैं लोग..!

बड़ा दर्द दिखाई देता है आजकल रिश्तों की दास्तान में..!

चोंट है जख्म है तोहमतें है आजकल दोस्ती की राहो में..!

हर कोई नकारा साबित हो रहा दोस्ती के इंम्तिहान में..!


तुझसे शिकायत नहीं बस छोटी सी विनती है मेरे मालिक..!

थोड़ी सी इंसानियत भर दे तू तेरे बनाएं इन साहिबान में..!


कमल सिंह सोलंकी

रतलाम मध्यप्रदेश

 देव शास्त्र गुरु ही हमारी सबसे बड़ी संपदा है

        श्रमण मुनि विशल्यसागर जी

प. पू. राष्ट्रसंत गणाचार्य श्री विरागसागर जी महामुनिराज के मंगल आशीर्वाद से एवं उनके परम शिष्य जिनश्रुत मनीषी आगमनिष्ठयोगी श्रमण श्री विशल्यसागर जी मुनिराज के ससंघ सानिध्य में झारखण्ड सराकक्षेत्र देवलटाड़ में श्री 1।008 शांतिनाथ महामण्डल विधान एवं जिनबिम्ब स्थापना श्री जी की शोभा यात्रा बड़ी धूमधाम से संपन्न हुआ। इस अवसर पर प.पू.श्रमण मुनि श्री विशल्यसागर जी मुनिराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि ज्ञान तभी पूज्य बनता है जब उसके स़ाथ विरागता और विनम्रता हो,यदि हम अहंकार के गुलाम है तो समझो अज्ञान हम पर हावी है पर यदि हम विनम्रता और विरागता के पुजारी है तो इसका मतलब है कि ज्ञान का प्रकाश हमारे अंदर सुरक्षित है।मुनि श्री ने कहा कि दिगम्बरत्व से समाज की पहचान है दिगम्बरत्व के प्रति सच्ची आस्था और श्रद्धा ही हमारी सबसे बड़ी संपदा है।देव शास्त्र गुरु के प्रति हमेशा श्रद्धावनत रहो इनके प्रति सच्ची आस्था ही हमें पार लगाएगी।कार्यक्रम का आयोजन श्री मान संजय जैन पाटनी परिवार द्वारा किया गया।




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