देव शास्त्र गुरु ही हमारी सबसे बड़ी संपदा है

        श्रमण मुनि विशल्यसागर जी

प. पू. राष्ट्रसंत गणाचार्य श्री विरागसागर जी महामुनिराज के मंगल आशीर्वाद से एवं उनके परम शिष्य जिनश्रुत मनीषी आगमनिष्ठयोगी श्रमण श्री विशल्यसागर जी मुनिराज के ससंघ सानिध्य में झारखण्ड सराकक्षेत्र देवलटाड़ में श्री 1।008 शांतिनाथ महामण्डल विधान एवं जिनबिम्ब स्थापना श्री जी की शोभा यात्रा बड़ी धूमधाम से संपन्न हुआ। इस अवसर पर प.पू.श्रमण मुनि श्री विशल्यसागर जी मुनिराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि ज्ञान तभी पूज्य बनता है जब उसके स़ाथ विरागता और विनम्रता हो,यदि हम अहंकार के गुलाम है तो समझो अज्ञान हम पर हावी है पर यदि हम विनम्रता और विरागता के पुजारी है तो इसका मतलब है कि ज्ञान का प्रकाश हमारे अंदर सुरक्षित है।मुनि श्री ने कहा कि दिगम्बरत्व से समाज की पहचान है दिगम्बरत्व के प्रति सच्ची आस्था और श्रद्धा ही हमारी सबसे बड़ी संपदा है।देव शास्त्र गुरु के प्रति हमेशा श्रद्धावनत रहो इनके प्रति सच्ची आस्था ही हमें पार लगाएगी।कार्यक्रम का आयोजन श्री मान संजय जैन पाटनी परिवार द्वारा किया गया।




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