अजब-गजब कारोबार हो रहा है

 अजब-गजब कारोबार हो रहा है भगवन तेरे जहान में..!

फूलों की चाहत रखता है मानव कांटे लिए घूमता ज़ुबान में..!

हर एक को दरकार है की ज़माना उससे मोहब्बत करें..!

पर हर एक ने नफ़रत सजा रखी है दिल की दुकान में..!

रिश्तों में भी आजकल नफा नुक़सान देखने लगे हैं लोग..!

बड़ा दर्द दिखाई देता है आजकल रिश्तों की दास्तान में..!

चोंट है जख्म है तोहमतें है आजकल दोस्ती की राहो में..!

हर कोई नकारा साबित हो रहा दोस्ती के इंम्तिहान में..!


तुझसे शिकायत नहीं बस छोटी सी विनती है मेरे मालिक..!

थोड़ी सी इंसानियत भर दे तू तेरे बनाएं इन साहिबान में..!


कमल सिंह सोलंकी

रतलाम मध्यप्रदेश

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