आहिस्ता आहिस्ता
सूरज निकल रहा है, मौसम बदल रहा है
चमकने लगी हैं किरणें ,आहिस्ता आहिस्ता आहिस्ता
किसान हल चलाए ,पसीना वो बहाए
बीज बो दिए हैं , सपनों को वो जगाए
पौंधे निकल रहे हैं, तस्बीर बदल रहे हैं
छाने लगी हरियाली ,आहिस्ता आहिस्ता आहिस्ता
पत्थरों को तोड़े ईंटों को वो जोड़े
दीवार बन रही है, कोई कैसे छोड़े
आकृति बन रही है, बजरी छन रही है
भवन बन रहा है ,आहिस्ता आहिस्ता आहिस्ता
नदी बह रही है, आवाज कर रही है
तेज बहुत वेग है ,साँस थम रही है
डोलती है नैय्या ,बचालो मुझे भैय्या
पार हमको जाना ,आहिस्ता आहिस्ता आहिस्ता
खड़ी है चढ़ाई ,बहुत है ऊंचाई
संभल कर चलना ,हो जाती है विदाई
कदमों का ये खेल ,हिम्मत का ये मेल
चोटी पर पहुँचना ,आहिस्ता आहिस्ता आहिस्ता
हर बूँद को बचाना ,कहता है जमाना
जीवन है इसी से ,व्यर्थ ना गंवाना
धैर्य रखो मन में , दूर तुमको जाना
मंज़िल करीब होगी , आहिस्ता आहिस्ता आहिस्ता
आती जब जवानी ,हो जाती है दिवानी
जोश होता बढ़कर ,लिखे नई कहानी
होश न गंवाएं , कभी न पछताएँ
आग का ये दरिया , आहिस्ता आहिस्ता आहिस्ता
खाना पीना चलना , धीरे धीरे करना
मुश्किल हैं राहें ,कहीं न फिसलना
बुद्धि का तू मालिक, सोचना समझना
दवा असर करती ,आहिस्ता आहिस्ता आहिस्ता
श्याम मठपाल ,उदयपुर
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