-स्वयं को...

 

स्वयं की प्रतिद्वंदी जब हो जाती हूं

स्वच्छंदता की जिज्ञासा होती है ।

 

अनेकों जिजीविषा और स्पृहा ,

मेरे सन्मुख आने लगते हैं तत्क्षण ।


स्वयं को निर्निमेष सी निहारती हूं तो,

किंकर्तव्यविमूढ़ सी महसूस होती है।


दिवास्वप्न के भांति अलौकिक सी

सुललित -ओज सी दृश्य सन्मुख होती है।


जैसी स्वयं को मैं क्षितिज पर पाती हूं,

दृढ़ मंतव्य का भान होता है मुझे ।


कभी-कभी उर्मिला सी हो जाती हूं

और स्वयं को अंकोर में भर लेती हूं।


तब कोई भी कार्य क्लिष्ट नहीं लगता है,

अभ्यस्त सी होने लगती हूं मैं।


जैसे-जैसे घोर निद्रा में स्पंदन होता है,

एहसास होता है मैं आपेक्षिक नहीं हूं।


जब अपने अस्तित्व का ज्ञान होता है,

ईश्वर के निर्दिष्ट का भी पहचान होता है।


- पूजा भूषण झा, वैशाली, बिहार।

 श्रुत सेवा न्यास द्वारा सम्मान

सुहाग के शहर फीरोजाबाद में श्रुत सेवा निधि न्यास द्वारा अक्षराभिषेकोत्सव 2022 के आयोजन के अवसर पर  श्री नेमीचंद विशन देवी आरोग्य भर्ती सम्मान  और दिल्ली की विदुषी और साहित्य को समर्पित व्यक्तित्व डॉ प्रभाकिरण जैन को श्रीमती शांति देवी श्रुत सेवा अलंकरण सम्मान से सम्मानित किया गया।इस अवसर पर अंगवस्त्र,प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह और 25000 की राशि सम्मानस्वरूप भेंट किया गया।फीरोजाबाद क्लब में कार्यक्रम आयोजित था।इस अवसर पर शहर के प्रतिष्टित,विद्वतजनों की अमूल्य उपस्थिति थी।न्यास के निदेशक,एवं ऊर्जा से ओतप्रोत श्री अनूप चंद जैनजी तथा अजय कुमार जैन जी का संचालन अभूतपूर्व था।प्राचार्य नरेंद्र प्रकाश जी जैन की स्मृति को नमन जिनके द्वारा यह न्यास स्थापित हुआ।वे बहुत ही प्रभावशाली शास्त्रज्ञ थे।दिल्ली से श्री दिगंबर जैन महासमिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष का नही आ पाना सभी को बहुत खला ।डॉ चंद्रवीर जैन,डॉ अशोक बंसल तथा डॉ संध्या द्विवेदी को उनकी रचनात्मक कृतियों के लिए सम्मानित किया गया।


 ☝️जैन धर्म के मुख्य प्राचीन ग्रंथ ( मुख्य मूल शास्त्र ) 2000 वर्ष पूर्व से लेकर 100 वर्ष पूर्व तक के‌ प्रमुख जैन ग्रंथाधिराज और उनके रचयिता 📖


1. षट्खंडागम - आचार्य पुष्पदंतजी, आचार्य भूतबलिजी


2. समयसार - आचार्य कुंदकुंदजी


3. नियमसार - आचार्य कुंदकुंदजी


4. प्रवचनसार - आचार्य कुंदकुंदजी


5. अष्टपाहुड़ - आचार्य कुंदकुंदजी


6. पंचास्तिकाय - आचार्य कुंदकुंदजी


7. रयणसार - आचार्य कुंदकुंदजी

8. दश भक्ति - आचार्य कुंदकुंदजी


9. वारसाणुवेक्खा - आचार्य कुंदकुंद


10. तत्त्वार्थसूत्र - आचार्य उमास्वामीजी


11. आप्तमीमांसा - आचार्य समन्तभद्रजी


12. स्वयंभू स्तोत्र - आचार्य समन्तभद्रजी


13. रत्नकरण्ड श्रावकाचार - आचार्य समन्तभद्रजी


14. स्तुति विद्या - आचार्य समन्तभद्रजी


15. युक्त्यनुशासन - आचार्य समन्तभद्रजी


16. तत्त्वसार - आचार्य देवसेनजी


17. आराधना सार - आचार्य देवसेनजी


18. आलाप पद्धति - आचार्य  देवसेनजी


19. दर्शनसार - आचार्य  देवसेनजी


20. भावसंग्रह - आचार्य  देवसेनजी


21. लघु नयचक्र - आचार्य  देवसेनजी


22. इष्टोपदेश - आचार्य पूज्यपादजी (देवनन्दी)


23. समाधितंत्र - आचार्य पूज्यपादजी (देवनन्दी)


24. सर्वार्थसिद्धि - आचार्य पूज्यपादजी (देवनन्दी)


25. वैद्यक शास्त्र - आचार्य पूज्यपादजी (देवनन्दी)


26. सिद्धिप्रिय स्तोत्र - आचार्य पूज्यपाद जी (देवनन्दी)


27. जैनेन्द्र व्याकरण - आचार्य पूज्यपाद जी (देवनन्दी)


28. परमात्म प्रकाश - आचार्य योगीन्दु देवजी


29. योगसार - आचार्य योगीन्दु देवजी


30. नौकार श्रावकाचार - आचार्य योगीन्दु देवजी


31. तत्त्वार्थ टीका - आचार्य योगीन्दु देवजी


32. अमृताशीति - आचार्य योगीन्दु देव


33. सुभाषित तंत्र - आचार्य योगीन्दु देवजी


34. अध्यात्म संदोह - आचार्य योगीन्दु देवजी


35. सन्मति सूत्र - आचार्य सिद्धसेन दिवाकरजी


36. कल्याण मंदिर - आचार्य सिद्धसेन दिवाकरजी


37. अष्टशती - आचार्य अकलंकदेवजी


38. लघीयस्त्रय - आचार्य अकलंकदेवजी


39. न्यायविनिश्चय सवृत्ति - आचार्य अकलंकदेवजी


40. सिद्धिविनिश्चय सवृत्ति - आचार्य अकलंकदेवजी


41. प्रमाण संग्रह सवृत्ति - आचार्य अकलंकदेवजी


42. तत्त्वार्थ राजवार्तिक - आचार्य अकलंकदेवजी


43. हरिवंश पुराण - आचार्य जिनसेनजी (प्रथम)


44. आदिपुराण - आचार्य जिनसेनजी


45. उत्तरपुराण - आचार्य गुणभद्रजी


46. आत्मानुशासन - आचार्य गुणभद्रजी


47. अष्टसहस्री - आचार्य विद्यानंदजी


48. श्लोक वार्तिक - आचार्य विद्यानंदजी

49. आप्तपरीक्षा - आचार्य विद्यानंदजी

50. प्रमाणपरीक्षा - आचार्य विद्यानंदजी

51. पत्र परीक्षा - आचार्य विद्यानंदजी

52. क्षत्रचूड़ामणि -- आचार्य वादीभसिंह सूरिजी

53. गद्यचिंतामणि -- आचार्य वादीभसिंह सूरिजी

54. कार्तिकेयानुप्रेक्षा -- आचार्य कार्तिकेय स्वामीजी

55. तत्वार्थसार -- आचार्य अमृतचंदजी

56. पुरुषार्थसिद्धिउपाय -- आचार्यअमृतचंद्रजी

57. आत्मख्याति टीका -- आचार्य अमृतचंद्रजी

58. लघुतत्त्वस्फोट -- आचार्य अमृतचंद्रजी

59. तत्त्वप्रदीपिका टीका -- आचार्य अमृतचंद्रजी

60. वरांग चरित्र - श्री जटासिंह नन्दिजी

61. चन्द्रप्रभ चरित्र -- आचार्य वीरनन्दीजी

62. कषाय पाहुड -- आचार्य गुणधरजी

63. गोम्मटसार -- आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्तीजी

64. पाषणाहचरिउ -- मुनि पद्मकीर्तिजी

65. त्रिलोकसार -- आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्तीजी

66. लब्धिसार -- आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्तीजी

67. क्षपणासार -- आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धांत चक्रवर्तीजी

68. तिलोयपण्णत्ति --  आचार्य यतिवृषभजी

69. जम्बूद्वीप पण्णत्ति - आचार्य यतिवृषभजी

70. धवला टीका - आचार्य वीरसेनजी

71. यशस्तिलक चंपू -- आचार्य सोमदेवजी

72. नीतिवाक्यामृत -- आचार्य सोमदेवजी

73. अध्यात्मतरंगिणी -- आचार्य सोमदेवजी

74. सिद्धिविनिश्चय टीका -- बृहद् अनंतवीर्यजी

75. प्रमाणसंग्रहभाष्य -- बृहद् अनंतवीर्य जी

76. शाकटायन शब्दानुशासन -- आचार्य शाकटायनजी

77. केवली भुक्ति -- आचार्य शाकटायनजी

78. लघु द्रव्य संग्रह -- आचार्य नेमिचन्द्रजी

79. वृहद् द्रव्य संग्रह -- आचार्य नेमिचन्द्रजी

80. प्रमेय-कमल-मार्तण्ड -- आचार्य प्रभाचंद्रजी

81. न्याय कुमुदचन्द्र -- आचार्य प्रभाचंद्रजी

82. तत्वार्थ-वृत्तिपद-विवरण -- आचार्य प्रभाचंद्रजी

83. शाकटायन-न्यास -- आचार्य प्रभाचंद्रजी

84. शब्दाम्भोज भास्कर -- आचार्य प्रभाचंद्रजी

85. गद्यकथाकोष -- आचार्य प्रभाचंद्रजी

86. प्रद्युम्नचरित्र -- आचार्य महासेनजी

87. भक्तामर स्तोत्र -- आचार्य मानतुंगजी

88. पद्मनंदी पंचविंशतिका - आचार्य पद्मनंदी जी (द्वितीय)

89. मूलाचार - आचार्य वट्टकेर स्वामीजी

90. ज्ञानार्णव  - शुभचन्द्राचार्य जी

91. भगवती आराधना - आचार्य शिवार्य जी(शिवकोटिजी)

92. अमितगति श्रावकाचार - आचार्य अमितगतिजी

93. धर्म परीक्षा - आचार्य अमितगतिजी

94. सुभाषित रत्न संदोह - आचार्य अमितगतिजी

95. तत्त्व भावना - आचार्य अमितगति

96. पंच संग्रह - आचार्य अमितगतिजी

97. भावना द्वात्रिंशतिका - आचार्य अमितगतिजी

98. नियमसार टीका -- आचार्य पद्मप्रभमलधारिदेवजी

99. पार्श्वनाथ स्तोत्र -- आचार्य पद्मप्रभमलधारिदेवजी

100. धर्मामृत - आचार्य नयसेन जी

101. समयसारतात्पर्यवृत्तिटीका -- आचार्य जयसेन जी(द्वितीय)

102. नियमसारतात्पर्यवृत्तिटीका -- आचार्य जयसेन जी(द्वितीय)

103. पंचास्तिकायतात्पर्यवृत्तिटीका -- आचार्य जयसेन (द्वितीय)

104. तत्त्वानुशासन -- आचार्य रामसेन जी

105. प्रमेयरत्नमाला -- आचार्य लघु अनंतवीर्य जी

106. सिद्धांतसार संग्रह -- आचार्य नरेंद्रसेन जी

107. परीक्षामुख - आचार्य माणिक्यनंदी जी

108. न्यायदीपिका - आचार्य धर्मभूषण यति जी

109. द्रव्य प्रकाशक नयचक्र - आचार्य माइल्ल धवल जी

110. पद्मपुराण - आचार्य रविषेण जी

111. मूलाचार - आचार्य वट्टकेर स्वामी जी

112. गणितसार संग्रह -- आचार्य महावीर जी

113. श्रीपाल चरित्र  - आचार्य सकलकीर्ति जी

114. शांतिनाथ चरित्र  - आचार्य सकलकीर्ति जी

115. वर्धमान चरित्र  - आचार्य सकलकीर्ति जी

116. मल्लिनाथ चरित्र  - आचार्य सकलकीर्ति जी

117. यशोधर चरित्र  - आचार्य सकलकीर्ति जी

118. धन्यकुमार चरित्र  - आचार्य सकलकीर्ति जी

119. सुकमाल चरित्र  - आचार्य सकलकीर्ति जी

120. सुदर्शन चरित्र  - आचार्य सकलकीर्ति जी

121. जम्बूस्वामी चरित्र  - आचार्य सकलकीर्ति जी

122. मूलाचार प्रदीप - आचार्य सकलकीर्ति जी

123. पार्श्वनाथ पुराण - आचार्य सकलकीर्ति जी

124. सिद्धांतसार दीपक - आचार्य सकलकीर्ति जी

125. तत्त्वार्थसार दीपक - आचार्य सकलकीर्ति जी

126. आगमसार - आचार्य सकलकीर्ति जी

127. मेरु मन्दर पुराण - श्री वामन मुनि जी

128. प्रमाण ग्रंथ - आचार्य वज्रनन्दि

129. चौबीसी पुराण  - आचार्य शुभचन्द्रजी

130. श्रेणिक चरित्र  - आचार्य शुभचन्द्रजी

131. श्री पांडव पुराण - आचार्य शुभचन्द्रजी

132. श्री श्रेणिक चरित्र - आचार्य शुभचन्द्रजी

133. चन्द्रप्रभ चरित्र - आचार्य शुभचन्द्रजी

134. करकण्डु चरित्र - आचार्य शुभचन्द्रजी

135. चन्दना चरित्र - आचार्य शुभचन्द्रजी

136. जीवंधर चरित्र - आचार्य शुभचन्द्रजी

137. अध्यात्मतरंगिणी - आचार्य शुभचन्द्रजी

138. प्राकृत लक्षण - आचार्य शुभचन्द्रजी

139. गणितसार संग्रह - आचार्य श्रीधरजी

140. त्रिलोकसारटीका - आचार्य माधवचन्दजी

141. योगसार प्राभृत - आचार्य अमितगतिजी


142. बृहत्कथाकोश - आचार्य हरिषेणजी


143. आराधनासार - आचार्य रविभद्रजी


144. आचारसार - आचार्य वीरनन्दी जी


145. वर्धमान चरित्र - आचार्य असग जी


146. सुदंसण चरिउ - आचार्य नयनन्दि जी


147. एकीभाव स्तोत्र - आचार्य वादिराज जी


148. पुराणसार संग्रह - आचार्य श्रीचन्द जी


149. वसुनन्दी श्रावकाचार - आचार्य वसुनन्दी जी


150. भावना पद्धति - आचार्य पद्मनन्दि जी


151. अनगार धर्मामृत - पंडित आशाधर जी


152. सागार धर्मामृत - पंडित  आशाधर जी


153. भरतेश वैभव - महाकवि रत्नाकर जी


154. समयसार नाटक - पण्डित बनारसीदास जी


155. ब्रह्म विलास - भैया भगवतीदास जी


156. छहढाला - पंडित द्यानतराय जी


157. क्रिया कोश - पंडित दौलतरामजी (प्रथम)


158. भाव दीपिका - पंडित दीपचन्द जी


159. चिद विलास - पंडित दीपचन्द जी


160. पार्श्व पुराण  - पंडित भूधरदास जी


161. जिन शतक - पंडित भूधरदास जी


162. मोक्षमार्ग प्रकाशक - पंडित टोडरमल जी


163. गोम्मटसार टीका - पंडित टोडरमल जी


164. लब्धिसार टीका - पंडित टोडरमल जी


165. क्षपणासार टीका - पंडित टोडरमल जी


166. त्रिलोकसार टीका - पंडित टोडरमल जी 


168. पुरुषार्थसिद्धिउपाय टीका - पंडित टोडरमल जी


169-जैन सिद्धांत प्रवेशिका - पं गोपालदासजी बरैया


170. छहढाला - पं. दौलतरामजी (द्वितीय)


171. रत्नकरंड वचनिका - पं. सदासुखदास जी


172. समयसार वचनिका - पं. जयचन्द छावड़ा जी


173. छहढाला - पंडित बुधजन जी


174. महावीराष्टक स्तोत्र - पंडित भागचन्द जी


175. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश - क्षुल्लक जिनेन्द्र वर्णी

आओ मिलकर साथ चलें



राहें इतनी सरल नहीं हैं,

अभी चुनौती शेष है |

आओ मिलकर साथ चलें,

युग का ये संदेश है ||


इक इक तिनका लाकर पंछी,

करता घर निर्माण है |

सतत परिश्रम और लगन का,

देता हमें प्रमाण है ||

इक दूजे से हिम्मत मिलती,

संतों के उपदेश हैं |

आओ मिलकर साथ चलें,

युग का ये संदेश है ||


राम अकेले लड़ सकते थे,

रावण अत्याचारी से |

कौरव पल में मिट सकते थे,

सिर्फ सुदर्शन धारी से ||

पर देना संदेश यही था,

व्यक्ति नहीं विशेष है |

आओ मिलकर साथ चलें,

अभी चुनौती शेष है ||


त्यागें अपनी अपनी इच्छा,

करें समर्थन जन गण का |

निहित स्वार्थ की तोड़ दीवारें,

हल खोजें विपति निवारण का ||

सहज समस्या हल होती है,

परहित में नहीं क्लेश है |

आओ मिलकर साथ चलें,

अभी चुनौती शेष है ||


           संजय तिवारी सरोज

 कविवर संतलाल जी  और सिद्धचक्र विधान का संक्षिप्त परिचय

जन्म एवं जन्म स्थान

कविवर संतलालजी का जन्म सन् 1834 में नकुड(सहारनपुर,उ.प्र.) निवासी लाला शीलचंद जी के परिवार में हुआ।

देहपरिवर्तन

कविवर संतलाल जी का देहपरिवर्तन सन् 1886 में 52 वर्ष की आयु में समाधि -भावना पूर्वक हुआ ।

शिक्षा

आरंभिक शिक्षा नकुड (सहारनपुर) में की, बाद में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए रूड़की (उत्तराखंड) के थामसन कालेज में अध्ययन किया।

स्वत: स्वाध्याय के बल से शास्त्र अभ्यास में विशेष दक्ष थे, वे अल्प आयु में ही जिनागम के मर्मज्ञ बन गये थे। जिनागम के गहन अध्ययन से वे अध्यात्मविद्या में विशेष पारंगत हो गये थे।

कृतित्व

उन्होंने अनेकों बार अन्य मतावलंबियों के साथ शास्त्रार्थ किया और जिनधर्म की सत्यता /महत्ता को उत्तर भारत में सब जगह प्रचारित किया। उनके सत्य संभाषण से सभी जगह जिनधर्म का प्रचार-प्रसार हुआ। उन्होंने जैन धर्मावलंबियों में प्रचलित अनेकों कुरीतियों को समाप्त किया।

उस समय उत्तर भारत में प्राय: हिंदू रीति-रिवाज से विवाह आदि संस्कार किए जाते थे, उन्होंने जैन विधि-विधान से विवाह आदि संस्कार प्रारंभ किए और भी अनेकों  गृहीत मिथ्यात्व पोषक कार्यों से समाज को मुक्त कराया।

बचपन से असत्य भाषण न करने तथा शुभ कार्यों में ही रत रहने का संकल्प होने से इनका संतलाल नाम प्रचलित हो गया।

कृति

हिंदी (पद्यमय )भाषा में लिखा गया सिद्धचक्र विधान आपकी सर्वोत्कृष्ट रचना है।

यह सभी विधानों का राजा है।यह अष्टान्हिका पर्व पर विशेष रूप से किया जाता है,पर इसे अन्य शुभ अवसर पर भी किया जा सकता है।अष्टान्हिका के आठ दिन,मैनासुंदरी-श्रीपाल कथा और विधान की आठ पूजाओं के संयोग जुड़ने से यह विधान विशेष रूप से अष्टान्हिका पर्व पर किया जाता है।

 संतलाल जी का नाम छहढाला के रचनाकार कविवर दौलतराम जी की तरह अमर हो गया। अद्भुत भेंट उन्होंने जैनसमाज को प्रदान की, जिसका उपकार जैनसमाज कभी भी सदियों तक विस्मृत नहीं कर सकता।

उन्हें अमर बनाने वाली यह महान रचना है।

सिद्धचक्र विधान की विशेषताएँ

1️⃣यह आपकी स्वतंत्र रचना है, जो कि किसी की नकल नहीं है।

2️⃣इसके पहले सिद्धचक्र विधान संस्कृत भाषा में भट्टारक शुभचंद और ललितकीर्ति ने लिखें थे। जिसमें पूजन के जलादि अष्टक छंद  संस्कृत भाषा में है पर अर्घावली के मंत्र तो द्विगुणित रूप में है पर छंद किसी भी अर्घावली के साथ नहीं है।

हर पूजा की अर्घावली में दूने-दूने अर्घों/गुणों का विकास देखने में आता है, जो अन्य किसी भी  विधान में नहीं है। इसके पीछे यही अभिप्राय है कि प्रतिदिन भावों की विशुद्धि दूनी-दूनी बढ़ती जाए तभी उत्कृष्ट विशुद्धि लब्धि से जीव करणलब्धि का उद्यम कर सकेगा।

संस्कृत भाषा रचित (भट्टारक शुभचंद्र) सिद्धचक्र विधान का संक्षिप्त प्रभाव इस विधान में देखा जाता है।

3️⃣एक विधान में अनेक विधानों का समावेश हुआ है।

प्रथम, द्वितीय और तृतीय पूजा में सिद्ध परमात्मा की विशेष आराधना के बाद चतुर्थ पूजा में गणधर वलय के 48 अर्घों के माध्यम से चौषठ ऋद्धि विधान समाहित है और सिद्धों का गुणगान है।

पंचम पूजा में पापदहन विधान के माध्यम से पापाश्रव के 108 भेदों का दहन करने का उपाय बताया है और छठवीं पूजा कर्मदहन विधान के रूप में प्रसिद्ध है। सातवीं पूजा पंचपरमेष्ठी विधान के रूप में विख्यात है और अंतिम पूजा सहस्रनाम विधान के रूप में है। सहज ही एक विधान में अनेक विधानों का लाभ भव्यजीवों का उपलब्ध होता है- जो इस विधान को सर्वोत्तम विधान सिद्ध करता है।

4️⃣

अध्यात्म का दिशाबोध कराने वाला यह हिंदी का समयसार है।

संतलाल जी अध्यात्म के विशेष ज्ञाता थे,इसी कारण विधान में अशुद्ध आत्मा को शुद्ध आत्मा बनाने का सरल उपाय भक्ति परक छंदों में निबद्ध किया है।

संसारी से सिद्ध होने का संविधान जिनागम में क्या है?

इसका सरलता से विधान/उपाय प्रथमपूजा की जयमाला से समझाया गया है। 

विधान की आठों जयमालायें सिद्ध परमात्मा के स्वरूप, महिमा और उसे प्राप्त करने का सुगम विधान बता रही हैं, जो मूलतः पठनीय है।

प्रथम गुणस्थान से गुणस्थानातीत होने की सरल विधि क्या हो सकती है?

यह यदि जानना/समझना हो तो विधान का पूजन के साथ-साथ स्वाध्याय भी कीजिए। 

5️⃣

इस कृति में भक्ति और अध्यात्म का अनूठा संगम है।

6️⃣

छंदशास्त्र की दृष्टि से भी यह विधान विशिष्ट स्थान रखता है। 48 विशिष्ट छंदों का प्रयोग इस विधान में है।

7️⃣

सिद्धभक्ति से आत्मशक्ति और आत्मशक्ति से मुक्ति का संविधान इसी कृति में उद्घाटित किया गया है।

8️⃣

इस विधान की अद्भुत महिमा है। इसे श्रीपाल के कुष्ठ -रोग निवारण और मैनासुंदरी की भक्ति तक सीमित नहीं किया जा सकता है।यह विधान भवरोग के निवारण में पूर्णतः समर्थ है। अशरीरी होने का विधान है। 

सिद्धचक्र विधान के अलावा पद्यमय 'संतविलास' नाम से आपकी अन्यकृति भी उपलब्ध है। जो 2272 पद्यमय छंदों में निबद्ध है। जिसमें स्तुति,पद,भजन आदि गर्भित हैआज संपूर्ण भारतवर्ष में हजारों सिद्धचक्र विधान अष्टान्ह्रिका पर्व हो रहे हैं, सिद्ध परमात्मा की आराधना  हम सभी मनोयोग से करें ही पर जिन्होंने हमें सिद्ध परमात्मा से मिलने का संविधान बताया है,उन कविवर संतलाल जी को भी स्मरण करते रहें।


टूटे नहीं मनोबल अपना

 टूटे नहीं मनोबल अपना 


कंटीले पथ हमें मिलेंगे ,

नहीं हमें इनसे डरना । 

कदम अपने नहीं रुकेंगे ,

टूटे नहीं मनोबल अपना।। 


जीवन भर चलना हमको ,

धूप छाँव है आती-जाती। 

हार जीत का खेल यहाँ पर  ,

ये जीवन है दीया-बाती । 

मेहनत से घबराना कैसा ,

पूरा होगा देखा सपना। 

वीर निडर रहते सदा ही ,

टूटे नहीं मनोबल अपना।। 


निराशा छायेगी मन में ,

तन थक कर चूर होगा। 

साथ नहीं देगा कोई ,

लक्ष्य कहीं दूर होगा। 

निंदा होगी कहीं हमारी ,

भूलेंगे नहीं हम हँसना। 

घाव तन-मन पर होंगे ,

टूटे नहीं मनोबल अपना।। 


हानि होगी कितनी हमको ,

फिसलेंगे हम बारम्बार । 

धोखे हमको कई मिलेंगे ,

कई होंगे हम पर वार। 

कायर बन कर जीना कैसा ,

अग्नि पथ पर हमको चलना। 

सफलता का स्वाद निराला ,


भाग्य भरोसे बैठें कैसे ,

आँधी और तूफान होंगे। 

भूखे-प्यासे रहना होगा ,

डगर सारे अंजान होंगे । 

अपना कहें आज किसको ,

कितना पड़ेगा हमको सहना।  

रात-दिन तो आते -जाते ,

टूटे नहीं मनोबल अपना ।। 


श्याम मठपाल  ,उदयपुर

 कुंडलपुर कला उत्सव


कुंडलपुर पंच कल्याणक  व मस्तकाभिषेक महामहोत्सव के अवसर पर इंदौर की वरिष्ठ चित्रकार, रंगकर्मी, समाजसेवी, लेखिका श्रीमती पुष्पा पांड्या द्वारा कला उत्सव का आयोजन किया गया। 


"72 कला के प्रणेता प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ जी( बड़े बाबा) की छत्रछाया में, कला प्रेमी, परम श्रद्धेय आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शुभ आशीर्वाद से व अनेक मुनिराज व आर्यिका माताजी के सानिध्य में आयोजित “कुंडलपुर“कला उत्सव” में देश भर के जाने माने चुनिंदा चित्रकारों ने कुंडलपुर की पावन धरा के प्राकृतिक सौंदर्य तथा वहां की कथाओं को अपनी तूलिका से केनवास पर उकेरा।


श्री सिद्ध क्षेत्र कुंडलपुर समिति द्वारा आयोजित निर्यापक मुनि श्री संभव सागरजी महाराज की प्रेरणा, आईआईटी इंजीनियर मनीष भैया जी के अथक प्रयासों से संयोजित कला उत्सव की संयोजिका  एम. ए.फाइन आर्ट्स में स्वर्ण पदक प्राप्त श्री मती पुष्पा  पांड्या ने कहा कि चित्रकला प ढ ने और सुनने की अपेक्षा जल्दी समझ में आने वाली कला  है ।साथ ही धर्म ,संस्कृति और संस्कार के प्रचार प्रसार का सबसे अच्छा माध्यम है।

पांच दिवसीय कला शिविर का शुभारंभ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ससंघ के  सानिध्य में त्तथा म. प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवरजसिंह जी चौहान, श्री मती साधना जी चौहान , पूर्व मंत्री जयंत जी मलेया आदि अनेक मंत्रियों के समक्ष पुष्पा पांड्या ने मंच पर अनूठा प्रयोग करते हुए ब् बड़ी श्रद्धा 

भक्ति के साथ केसर से कुंडलपुर मंदिर की  पेंटिंग बना कर की।

फोना टेक के ceo रजत पांड्या के निर्देशन में मधय प्रदेश , कर्नाटक , महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश राजस्थान आदि से आए कलाकारों ने कुण्डलाकार पर्वत की छटा को बिखेरते हुए सरोवर में प्रति बिंबित होती मंदिरों की शृंखला को बहुत ही सुंदर तरीके से उकेरा पुना से आए अतुल गेंदले  नागेश हंकारे,  रमन लोहार,   माने ने।ग्वालियर के उमेन्द्र वर्मा ने भगवान आदिनाथ (बड़े बाबा) का चित्र  और ,आचार्य श्री विद्यासागर जी व सुधा सागर जी महाराज के चरण पखारते हुए बनाया, ।नसीराबाद के शाम कुमावत ने सरस्वती जी का सुंदर चित्रण किया ग्वालियर के मनीष ने नीले रंग में बड़े बाबा को दर्शाते हुए पूजा भक्ति करते  श्रावकों का चित्रण किया।अजंता के सुभाष पवार ने अजंता शैली में पेंटिंग बनाई ।आजमगढ के अर्जुन सिह जी ने बड़े बाबा के प्रकट होने की कथा को निरूपित किया।

अनेक कला शैलियों में पेंटिंग्स को बनते हुए देखने का अभूत पूर्व आनन्द  यहां था। इस अनूठे कार्यक्रम को देख कर लोग बहुत खुश हो रहे थे। कोई  फोटो के रहे थे तो कई  की उत्सुकता वश कई जिज्ञासा थी ये क्या बनाया है, ये कोनसा मन्दिर है आदि यह सब देख कलाकारो को भी आनन्द आ रहा था।

सौम्य सागरजी महाराज, विनम्र सागरजी महाराज आदि कई मुनिराज व आर्यिका माताजी ने कला उत्सव का अवलोकन किया ।उत्तम सागर जी महाराज ने जो स्वयं चित्रकार रहे हैं , कलाकारों को मार्ग दर्शन भी दिया

             पांच दिन तक चले इस कला शिविर का शुभारंभ मंगल ‘कला यात्रा’ (आर्ट वाक) से किया  जिसमें सर्व प्रथम बड़े बाबा के दर्शन, पर्वत वंदना , और मुनिराजो के आशीर्वाद लेकर कलाकारों ने कार्य प्रारम्भ किया।

पुष्पा पांड्या ने इस अवसर पर जैन धर्म ,कुंडलपुर  का इतिहास यहां की कथाओं व मुनिराज की तपस्या, साधना व चर्या आदि के बारे में जानकारी दी जिससे कलाकार भाव से अभिव्यक्ति कर सके।

सभी कलाकारों ने jain धर्म के अनुसार आचरण करते हुए पेंटिंग्स बनाई। उन्होंने कहा कि

हमारे धार्मिक व सामाजिक कार्यक्रमों में रात्रि में होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में नृत्य, नाटक कवि सम्मेलन आदि कार्यक्रम तो होते हैं परन्तु कला का कोई कार्यक्रम नहीं होता जबकि कला के द्वारा धर्म  ओर संस्कृति के प्रचार प्रसार के साथ ही युवा पीढ़ी को जोड़ने का भी अच्छा माध्यम है  ।कला आर्ट गैलरी तक ही  सीमित न होकर सब की लिए हो  इसी उद्देश्य को लेकर आपने उपाध्याय गुप्ति सागर जी महाराज के सानिध्य में 2008 में “बावनगजा कला महोत्सव, “स्वस्ति  चारुकिर्ती भट्टा रक स्वामीजी के आशीर्वाद से2018 में भगवान बाहुबली महामतस्कभिशेक के अवसर पर “श्रवनबलगोला आर्ट फेस्टिवल” , परम श्रद्धेय आचार्य विद्या सागर जी महाराज के सानिध्य में 2018  में खजुराहो में  आचार्य श्री के जन्म दिवस शरद पूर्णिमा के अवसर पर “खजुराहो कला महोत्सव “का आयोजन किया । जिसे हजारों लोगों ने देखा और सराहा। उनके उपरोक्त कार्यों को देखते हुए कुंडलपुर  महामहोत्सव के अवसर पर विशेष रूप से “कुंडलपुर कला उत्सव “के लिए आमन्त्रित किया गया था।

कार्यक्रम को सफलता पूर्वक सम्पन्न करने में मुंबई के C.A. हर्षित जैन   व बंगलुरू के इंजीनियर रोहित जैन का  विशेष सहयोग रहा।

श्रीमती पुष्पा पांड्या 


'स्त्रीत्व"



'स्त्रीत्व"

स्त्रि जब तक 

ना मिले 

इंतजार का 

सूरज न डूबे 

बेताबी बेकरारी 

सुंदरता अक्षुण?

औरत एक रात हैं

जिसमे छुपे है असंख्य

 तारो से चमकते गुण 

एक चाँद सा दिल 

लिए बिखेरती हैं

 चाँदनी बना,

खुद  का कतरा- कतरा 

प्रेम  में निरुपित कर,

खुद को

चन्द्रकलाओ सी

कभी घटती  

कभी बढ़ती सी

जहाँ में चाँदनी, 

जीवन के पखवाड़े 

बदलती रहती हैं 

एक दिन दूज का चाँद

होती हैं 

एक दिन ईद का चाँद 

एक दिन 

पूर्णिमा बन 

रोशनी से भर देती हैं 

कायनात का

 कतरा- कतरा 

तब,

निशा हसीन हो 

सुराही से प्याले दर प्याले 

ढलकाती

इठलाती 

रूमानियत भर

यौवन के

नशे में चूर, 

रवि का रस पान कर लेती हैं

ओस की बूंदे 

भले ही

स्वागत में चमक उठती हैं 

अरूणादयो की प्रथम किरण से

तारे अपना अस्तित्व खोते 

ओझल हो 

चले जाते हैं दूर कही

 शीतल चाँदनी 

गर्माहट में बदल जाती हैं 

न जाने कब

सन्नाटे में महकती

 रात रानी की

सुगंध 

न जाने कहा खो जाती हैं

औरत का  स्त्रीत्व खोने के

 साथ हीअस्तित्व 

भी खो जाता हैं ....।


मंजू किशोर "रश्मि"

"कोटा राजस्थान "


🙏🙏 समणं सुत्तं/श्रमण सूत्र 🙏🙏

 🙏🙏 समणं सुत्तं/श्रमण सूत्र 🙏🙏


24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की 2500 वें जन्मकल्याणक पर 1975 में दिगम्बर और श्वेतांबर मुनियों की प्रेरणा मूल ग्रन्थों से जैन विद्वानों द्वारा 756 प्राकृत गाथाएं संकलित करके समणं सुत्तं ग्रन्थ की रचना की गई। जिसे जैन धर्म का सार ग्रन्थ कहा जा सकता है। 


जैन आचार्य विद्यासागर जी ने " समणं सुत्तं " की सभी गाथाओं का काव्यानुवाद करके " जैन गीता " नामक काव्य की रचना की है।


मूल प्राकृत गाथाएं, भावार्थ सहित  काव्यानुवाद प्रस्तुत है।


प्राकृत गाथा


जेण विणा लोगस्स वि, ववहारो सव्वहा न निव्वहइ।


तस्स भुवणेक्कगुरुणो, णमो अणेगंतवायस्स।। १६६ ।।


भावार्थ - 


जिसके बिना लोक का व्यवहार बिल्कुल नहीं निभता है, उस मनुष्यों के केवल मात्र गुरु अनेकान्तवाद को नमस्कार।। १६६ ।।


काव्यानुवाद


जो विश्व के विविध कार्य हमें दिखाते,


भाई, बिना जिसके चल वे न पाते।


अनेकान्तवाद वह है जगदेक स्वामी,


बन्दू उसे विनय से शिव पन्थगामी।। १६६ ।।


प्रस्तुति - सुमेर चन्द जैन प्राकृताचार्य

किस्मत का क्या रोना


लिखा हुआ प्रारब्ध में,

मंजूर वही जो होना ।

कर्म है वश में तेरे फिर,

किस्मत का क्या रोना ।।

सोच सकारात्मक रख,

माला जप हरि-नाम की ।

निस्वार्थ भाव से कर्म कर,

चाह न कर परिणाम की ।।

परहित हेतु करो सदा,

न कोई उससे उत्तम ।

नेक भाव मन में तेरे,

काया हो सर्वोत्तम ।।

ईश-भजन और मृदु वचन,

ही एक सच्चा सोना ।

कर सकता न असर कोई,

कैसा भी जादू टोना ।।

मन-निर्मल-निश्छल रख,

बीज खुशी के बोना ।

कर्म है वश में तेरे फिर,

किस्मत का क्या रोना ।।

लिखा हुआ प्रारब्ध में,

मंजूर वही जो होना ।

कर्म है वश में तेरे फिर,

किस्मत का क्या रोना ।।


 बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज"

     कोटा (राजस्थान)

लम्हें ज़िन्दगी के - "ईश्वर है यहीं - कहीं"



मैं हनुमान जी कि अनन्य भक्त हूँ | मैं एक पूजा करती हूँ जिसमें 108 बत्ती ऊपर लेकर जाती हूँ और फिर वापस लेकर आती हूँ | मुझे पूरा विश्वास है कि इस पूजा के सार्थक परिणाम हैं | 


हम और हमारे सम्धी जी परिवार के साथ श्रीलंका दौरे पर जाने वाले थे | यह 8 - 10 दिन का दौरा था | मेरी 105 बत्ती हो चुकी थी | मुझे लग रहा था कि अगर पूजा  खंडित होगी तो उसके नकारात्मक परिणाम होंगे और अगर मैंने किसी और यह पूजा बीच में दी तो शायद इसका फल उसी को मिल जायेगा इसलिए हमने यह निर्णय किया कि मैं अपना दीया और बाती साथ लेकर ही श्रीलंका जाऊँगी, क्यूंकि मुझे पूर्ण विश्वास था कि मुझे इस पूजा का फल दादी बनने के रूप में ही मिलेगा | सो हम श्रीलंका पहुँच गये | 


वहाँ ऊँचे पहाड़ पर हनुमान जी का मंदिर था | वहाँ से पूरी श्रीलंका नज़र आ रही थी | मैं हनुमान जी के मंदिर को देखकर गदगद हुई और मेरे मुँह से निकला कि - अरे ! मेरे हनुमान जी तो यहाँ बैठे हुए हैं | उसी दिन मेरी 108 बत्ती भी पूरी होने वाली थी | परन्तु समय निकलने के कारण हमें वहाँ दर्शन नहीं मिल पाये | हालाँकि हम मिन्नते करके पीछे के दरवाज़े से अंदर गये, परन्तु मुख्य द्वार बंद होने के कारण हम दर्शन से वंचित रह गए | मुझे बहुत दुःख हुआ, मुझे ऐसा लगने लगा जैसे किसी ने मेरे अरमानों पर पानी फेर दिया हो | मेरे मुँह से तत्काल निकला कि अगर मैंने सच्चे मन से पूजा की है तो आप मुझे दर्शन अवश्य देंगे और मैं एक सवा रूपये का टोटका बोलती हूँ, मैंने वह भी बोल दिया | 


अब हम वहाँ से निकलकर 6 - 7 किलोमीटर दूर एक झरने पर पहुँच चुके थे परन्तु मेरा मन बहुत बेचैन था, मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था | और देखिये ईश्वर का चमत्कार - जैसे ही हमने खाने का प्रयास किया तो वहाँ नॉनवेज खाना मिल रहा था और वहाँ हनुमान जी के मंदिर पर वेज, तो यह निर्णय लिया गया कि हम हनुमान जी के मंदिर पर ही वापस चलेंगे | मेरी तो ख़ुशी के मारे बांछे खिल रही थी | मेरे हनुमान जी की रहमत मुझ पर बरस रही थी | हम हनुमान जी के मंदिर पर वापस आये और हम सबने नतमस्तक होकर वहाँ दर्शन किये | हमें पंडित जी द्वारा एक फल भी दिया गया | मेरी ख़ुशी का पारावार नहीं था | मुझे लग रहा था कि यह मेरी पूजा सार्थक होने के संकेत हैं | मैं नतमस्तक हुए जा रही थी और देखिये करिश्मा कि जैसे ही मैं वहाँ से लौटी तो मैं दादी बनने की ख़ुशी से सराबोर थी | 


मुझे ईश्वर ने वहीं विश्वास करा दिया था कि तुम्हारीं खुशियों सी झोली भरने वाली हैं | ईश्वर हमें संकेत मात्र देते हैं कि मैं तेरे आस - पास ही हूँ | तू मुझ पर विश्वास कर "शकुन " और अपनी सब चिंताओं का भार मुझ पर छोड़ दे | बस अपना कर्म करता रह बन्दे, मैं तेरे साथ हूँ | मैं इन्हीं चमत्कारों की वज़ह से कहती हूँ कि - "ईश्वर है यहीं - कहीं" | 


- शकुंतला अग्रवाल, जयपुर

 अथ श्री जूता कथा   (व्यंग्य) 


गर्मियों की छुट्टी हुई तो जैसे सभी बच्चे अपने रिश्तेदारों के यहां जाते हैं तो हम भी अपनी नानी के घर गुना गए जूते पहनकर। एक दिन हमने देखा कि नानाजी जी अपने पैर की मरहम-पट्टी कर रहे हैं। तो हमने पूछा क्या हुआ? 


बोले जूते ने काट लिया। 


हम हैरान परेशान... तो जूता 'काटता भी है'। 


अगली छुट्टियों में फिर मामा के घर गए तो उन्हें जूते में तेल लगाते पाया। हमने पूछा क्या हुआ? 


बोले ये चूं चूं करता है। 


अच्छा बोलता है... कमाल है 'जूता बोलता भी है'। 


फिर अगली छुट्टियों में चाचा के घर गए तो उन्हें कहते सुना कि फ़लांना तो जूते का यार है... 


ओह तो 'जूते दोस्ती भी करते हैं'। 


उससे अगली छुट्टियों में भुआजी जी के यहां गए तो फूफाजी  किसी के बारे में कह रहे थे कि वह तो जूते खाये बिना मानेगा नहीं। 


अरे वाह... 'जूते खाये भी जाते हैं' मने भूख मिटाते हैं। 


फिर अगली होली में देखा कि एक आदमी को गधे पर बैठाया गया है और उसके गले में जूते पड़े हैं और लोग नाच गा रहे हैं। हमने अपने पापा जी से पूछा कि ये क्या है? 


तो बोले कि इस आदमी को इस साल मूर्खाधिराज चुना गया है और इसके गले में जूतों का हार पहना कर सम्मानित किया गया है। 


कमाल है .... 'जूते सम्मान प्रदान करने के काम भी आते हैं'। 


थोड़ा और बड़े हुए और फुटबॉल मैच देखने का चस्का लगा तो पता चला कि सबसे अधिक गोल स्कोर करने वाले खिलाड़ी को 'गोल्डन बूट' दिया जाता है। 


वाह.... पुरस्कार में सोने का जूता दिया जाता है।


फिर थोड़ा और बड़े हुए तो पता चला कि वेस्टर्न टेलीविज़न और मूवीज इंडस्ट्री में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता को 'गोल्डन बूट अवार्ड' दिया जाता है। 


कमाल है.... सम्मान अभिनेता का हो रहा है कि जूते का!!!


एक दिन देखा कि एक आदमी बेहोश पड़ा है। शायद उसे मिर्गी का दौरा आया था। उसके चारों तरफ भीड़ लगी थी। तभी भीड़ में से एक बुजुर्ग ने फरमाया... जूता मंगवाओ और इसे जूता सुंघाओ। अभी ठीक हो जाएगा। 


अरे वाह... 'जूता तो औषधी भी है'। 


फिर एक शादी में गये तो वहां देखा कि वर और वधु पक्ष में कुछ सौदेबाजी हो रही है। हमने अपने मम्मी जी से पूछा कि यह क्या हो रहा है? 


उन्होंने बताया कि बेटा ये दूल्हे की सालियों ने दूल्हे के जूते चुरा लिए और अब उन्हें वापस करने के लिए रुपये मांग रही हैं। 


ओह नो... जूते का 'अपहरण भी हो जाता है'। 


जूता काटता है, जूता बोलता है, जूता दोस्ती यारी करता है, जूता खाया जाता है। जूता सम्मान प्रदान करता है। जूता औषधी है और तो और जूते के अपहरण का भरा-पूरा व्यवसाय है। 


फिर तलेन वाले पंडित जी ने याद दिलाया कि श्री राम चन्द्र जी के वनगमन पर श्री भरत जी ने उनके जूते अर्थात खड़ाऊँ को राजगद्दी पर विराजमान करके चौदह वर्षों तक अयोध्या का राजकाज चलाया। 


तो 'जूता महाराज भी है'। 


कुल मिलाकर मुझे तो लगता है कि 'जूते में जीवन' है। 

अथ श्री जूता कथा इति समाप्त। 

बोलिये जूताधिराज की जय।

अज्ञात 

धन्यवाद

श्रीमती राजकुमारी वी.अग्रवाल शुजालपुर मंडी मध्य प्रदेश

राम लक्ष्मण बन को ना जाओ


 राम लक्ष्मण बन को ना जाओ 

 सीया तुम ही राम को समझाओ! 

   सीया बोली पत्नी धर्म निभाउंगी !!

में भी राम के संग जाउंगी!

 थाम कर लाये मेरा हाथ 

कैसे छोड़ दु मे राम का साथ !!

    दशरथ राम ही राम पुकारें !

बन को जब राम सिधारे !!  

कौशल्या सुमित्रा बिलख ती जाय !

दशरथ को जब मुर्छित  पाये !!  

राम लक्ष्मण जब बन को जाये !!

कैकई मन ही मन मुस्कुराए!

मेरे भरत को जल्दी बुलवाओ !!

 भरत का राज तीलक करवाओ !

अयोध्या के नर नारी अंसुवन निर बहाये

राम लक्षमण जब बन को जाओ !!


 गायत्री देवी संगेलिया

आओ मिलकर साथ चलेंगे

   "आओ मिलकर साथ चलेंगे"

कठिन डगर होती जीवन की,

कहीं फूल कहीं शूल मिलेंगे,

चाहे आंधी तूफान आए,

विपदा से हम नहीं डरेंगे,

मन में है मजबूत इरादे,

कहीं राह में नहीं रुकेंगे।

आओ मिलकर साथ चलेंगे।

----

आओ अपना बाग संवारे

मिलकर खरपतवार हटा दें,

सुंदर-सुंदर इस क्यारी को,

गुड़ाई कर जल से हम भर दे

हरियाली होगी जीवन में,

सुंदर-सुंदर सुमन खिलेंगे।

आओ मिलकर साथ चलेंगे।

-----

नई पीढ़ी को आओ मोड़ें,

इन्हे संस्कारों से जोड़ें,

पश्चिम की आंधी में उड़ कर,

यह अपनों से मुख ना मोड़े,

संस्कृति अपनी सिखलाएं हम,

तब यह अपने संग ढलेंगे।

आओ मिलकर साथ चलेंगे।

------- उर्मिला औदीच्य भवानीमंडी राजस्थान

ये दुनिया तो गूंगी बहरी है..!

 रखना हर एक क़दम संभल कर ज़िंदगी खाई गहरी है..!

कोई बचाने नहीं आएगा बंदे ये दुनिया तो गूंगी बहरी है..!


उसे मिली है मुकम्मल मंज़िल जो संभल कर चला है..!

अंधेरों का जिसे खौंफ नहीं और जो धूप में जला है..!

आसान नहीं है सफ़र जिंदगी का यह कांटो की डगर है..!

कभी तूफान के दौर आते हैं तो कभी आता जलजला है..!

हौसलों के आगे यह मुश्किलें कब कहां ठहरी है..!

रखना हर कदम संभल कर..


तू शोहरतो की चाहत रखता है तो मेहनत से जी ना चुराना..!

ज़ख्म कितने भी गहरे मिले तुझे सदा ही मुस्कुराना..!

अश्क भरी आंखों से तो मंजिल धुंधली दिखती है..!

अकेले में रो लेना पर महफिल में कभी अश्क ना बहाना..!

जो मुस्कुराता हुआ चला उसी की ज़िंदगी सुनहरी है..!

रखना हर कदम संभल कर


कमल सिंह सोलंकी

रतलाम मध्यप्रदेश

रंगों से सजी रंगोली




 रंगों से सजी रंगोली 

समरसता है रंगों की

तू भी मिल मैं भी मिलु

ये सरसता हमजोली की।

            2

तन - मन का मेल हो जाए

जीवन एक स्वप्न खेल हो जाए

भावना भांग - सी घुल जाए

मन-प्रेम का नशा चढ़ जाए।

              3

शब्दों की पिचकारी मिले

हर मन नहलाए हम सब

साफ करे जाति भेद- पंक को

कुछ रंग अलग चढा़ये सब।

                4

राग द्वेष का कपूर बनाकर

होम करेंगे होली में 

स्वच्छ बनेगे भाव-गगन के 

हिंदू संस्कृति झोली में। 

               5

मृदंग बने फागुन की मस्ती

भंवरों का उसमें गान हो जाए

नव पल्लव नव कुसुम भी नाचे

बसंती बहारों का जाम हो जाए। 

                6

नीली पीली हरी गुलाल का

सतरंगी सुबह शाम हो जाए

मै भी मिलु तू भी मिले 

ये चर्चा चहुँ आम हो जाए। 


                     रूपनारायण'संजय

                     कोटा, राजस्थान

डॉ श्रेयशी "निशंक" को कल 8 मार्च के दिन सेना की "मेडिकल कोर" में "मेजर" का रैंक

 


                     अपनी सुपुत्री के कंधे पर मेजर के स्टार लगाते हुए एक "गर्वित और हर्षित" पिता 


 देवभूमि उत्तराखण्ड के यशस्वी पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय शिक्षा मंत्री रहे वरिष्ठ राजनेता डॉ रमेश पोखरियाल "निशंक" की सुपुत्री डॉ श्रेयशी "निशंक" को कल 8 मार्च के दिन सेना की "मेडिकल कोर" में "मेजर" का रैंक मिला है। डॉ "निशंक" की तीन बेटियाँ हैं, जिनमें सबसे बड़ी प्रिय आरुषि "निशंक" फ़िल्म-निर्माण के क्षेत्र में सक्रिय है और उसने डॉ "निशंक" के उपन्यास "मेजर निराला" पर फ़िल्म बनाई है, जो बहुत चर्चित हुई है। डॉ श्रेयशी ने जौलीग्रांट की स्वामी राम हिमालयन मेडिकल यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस करने के बाद आर्मी मेडिकल कोर में सेवा देने का निश्चय किया और सबसे छोटी प्रिय विदुषी ने एमिटी यूनिवर्सिटी से स्वर्ण पदक लेकर एलएलबी किया और लंदन से एलएलएम करने के बाद "मानवाधिकार" पर हार्वर्ड विवि के एक प्रोजेक्ट पर कार्य कर रही है। कल "विश्व महिला दिवस" पर बेटी के कंधे पर "मेजर" के स्टार सजाने वाले डॉ "निशंक" जी को डॉ नीलम जैन संपादिका एवं श्री देशना पत्रिका परिवार की ओर से शत-शत बधाइयाँ।

सोगरिया-नई दिल्ली एक्सप्रेस ट्रेन का श्रीमहावीरजी में ठहराव🙏👏🏳️‍🌈

 सोगरिया-नई दिल्ली एक्सप्रेस ट्रेन का  श्रीमहावीरजी में ठहराव


श्रीमहावीरजी से दिल्ली के लिए मिलेगी पांचवीं ट्रेन

श्रीमहावीरजी रेलवे स्टेशन पर वर्तमान में एक्सप्रेस व पैसेंजर ट्रेन मिलाकर कुल 8 ट्रेनों का ठहराव हो रहा है। जिनमें चार ट्रेन दिल्ली की तरफ जाती है। नई ट्रेन का संचालन शुरु होने से श्रीमहावीरजी नई दिल्ली के लिए पांचवी ट्रेन मिल जाएगी। वर्तमान में श्रीमहावीरजी में ठहराव वाली गोल्डन टेंपल मेल, जनशताब्दी एक्सप्रेस, मेवाड़ एक्सप्रेस व देहरादून एक्सप्रेस ट्रेन दिल्ली की तरफ जाती है।


करवाना होगा रिजर्वेशन

कोविड के कारण सभी ट्रेनें स्पेशल के रुप में संचालित हो रही है और सोगरिया से नई दिल्ली सुपरफास्ट ट्रेन (20451 और 20452) में भी सफर करने से पहले रिजर्वेशन कराना होगा। श्रीमहावीरजी से नई दिल्ली का रिजर्वेशन किराया 215₹ व सिटिंग किराया 125₹ होगा।

 सचिन जैन, बड़ौत, उप्र



"निस्वार्थ सेवा"



श्रीमती कमला जैन के पति दिवाकर जी अस्पताल में भर्ती थे। दिवाकर जी को रिटायर हुए कुछ साल हो गए हैं उनका एक ही बेटा है जो विदेश में है। कुछ दिन से जैन साहब को पेट दर्द की शिकायत हो रही थी पिछली रात दर्द बढ़ने से उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। इतना समय नहीं था कि उनके बेटे को बुलाया जा सके इत्तेफाकन कोई रिश्तेदार भी शहर में नहीं रहता था, उनकी किडनी में स्टोन था ऑपरेशन टाला नहीं जा सकता था। ऑपरेशन हो गया और सफल रहा।

श्रीमती कमला परेशान थी  कि ऐसी मुश्किल घड़ी में कोई अपना पास में सेवा करने वाला नहीं। लेकिन वहां एक शख्स वार्ड में जरूरत मंदों की निस्वार्थ सेवा किया करता है जिसका नाम किशना था। जब दिवाकर जी को वार्ड में लाया गया तब किशना वहीं था, उसने कमला जी से  पूछा कि आपके  साथ कौन है अम्मा कमला जी ने कहा कोई नहीं बेटा। किशना ने उनके दुःख को समझा और कहने लगा अम्मा आप चिंता ना करें मैं बाबा की सेवा करूंगा। कमला जी कि आंखों में पानी बहने लगा ये सोच कर कि अभी भी दुनिया में ऐसे लोग हैं ।सच में जितने दिन वह अस्पताल रहे किशना पूरी तरह उनकी देखभाल करता रहा। अब कमला जी निश्चिंत हो एक दो बार घर भी हो आईं। जब दिवाकर जी को छुट्टी मिली तो वो किशना की सेवा देख गदगद हो उठे और उसे अपने गले लगा लिया, कहने लगे बेटा तुमने जो निस्वार्थ सेवा की है मेरी उसका कोई मोल नहीं। किशना ने कहा बाबा आपने मुझे बेटा कहा बस मुझे मेरी सेवा का फल मिल गया। इसे कहते हैं निस्वार्थ और सच्ची सेवा।


रमा भाटी


लम्हें ज़िन्दगी के - "ईश्वर है यहीं - कहीं"



मैं हनुमान जी कि अनन्य भक्त हूँ | मैं एक पूजा करती हूँ जिसमें 108 बत्ती ऊपर लेकर जाती हूँ और फिर वापस लेकर आती हूँ | मुझे पूरा विश्वास है कि इस पूजा के सार्थक परिणाम हैं | 


हम और हमारे सम्धी जी परिवार के साथ श्रीलंका दौरे पर जाने वाले थे | यह 8 - 10 दिन का दौरा था | मेरी 105 बत्ती हो चुकी थी | मुझे लग रहा था कि अगर पूजा  खंडित होगी तो उसके नकारात्मक परिणाम होंगे और अगर मैंने किसी और यह पूजा बीच में दी तो शायद इसका फल उसी को मिल जायेगा इसलिए हमने यह निर्णय किया कि मैं अपना दीया और बाती साथ लेकर ही श्रीलंका जाऊँगी, क्यूंकि मुझे पूर्ण विश्वास था कि मुझे इस पूजा का फल दादी बनने के रूप में ही मिलेगा | सो हम श्रीलंका पहुँच गये | 


वहाँ ऊँचे पहाड़ पर हनुमान जी का मंदिर था | वहाँ से पूरी श्रीलंका नज़र आ रही थी | मैं हनुमान जी के मंदिर को देखकर गदगद हुई और मेरे मुँह से निकला कि - अरे ! मेरे हनुमान जी तो यहाँ बैठे हुए हैं | उसी दिन मेरी 108 बत्ती भी पूरी होने वाली थी | परन्तु समय निकलने के कारण हमें वहाँ दर्शन नहीं मिल पाये | हालाँकि हम मिन्नते करके पीछे के दरवाज़े से अंदर गये, परन्तु मुख्य द्वार बंद होने के कारण हम दर्शन से वंचित रह गए | मुझे बहुत दुःख हुआ, मुझे ऐसा लगने लगा जैसे किसी ने मेरे अरमानों पर पानी फेर दिया हो | मेरे मुँह से तत्काल निकला कि अगर मैंने सच्चे मन से पूजा की है तो आप मुझे दर्शन अवश्य देंगे और मैं एक सवा रूपये का टोटका बोलती हूँ, मैंने वह भी बोल दिया | 


अब हम वहाँ से निकलकर 6 - 7 किलोमीटर दूर एक झरने पर पहुँच चुके थे परन्तु मेरा मन बहुत बेचैन था, मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था | और देखिये ईश्वर का चमत्कार - जैसे ही हमने खाने का प्रयास किया तो वहाँ नॉनवेज खाना मिल रहा था और वहाँ हनुमान जी के मंदिर पर वेज, तो यह निर्णय लिया गया कि हम हनुमान जी के मंदिर पर ही वापस चलेंगे | मेरी तो ख़ुशी के मारे बांछे खिल रही थी | मेरे हनुमान जी की रहमत मुझ पर बरस रही थी | हम हनुमान जी के मंदिर पर वापस आये और हम सबने नतमस्तक होकर वहाँ दर्शन किये | हमें पंडित जी द्वारा एक फल भी दिया गया | मेरी ख़ुशी का पारावार नहीं था | मुझे लग रहा था कि यह मेरी पूजा सार्थक होने के संकेत हैं | मैं नतमस्तक हुए जा रही थी और देखिये करिश्मा कि जैसे ही मैं वहाँ से लौटी तो मैं दादी बनने की ख़ुशी से सराबोर थी | 


मुझे ईश्वर ने वहीं विश्वास करा दिया था कि तुम्हारीं खुशियों सी झोली भरने वाली हैं | ईश्वर हमें संकेत मात्र देते हैं कि मैं तेरे आस - पास ही हूँ | तू मुझ पर विश्वास कर "शकुन " और अपनी सब चिंताओं का भार मुझ पर छोड़ दे | बस अपना कर्म करता रह बन्दे, मैं तेरे साथ हूँ | मैं इन्हीं चमत्कारों की वज़ह से कहती हूँ कि - "ईश्वर है यहीं - कहीं" | 


- शकुंतला अग्रवाल, जयपुर

प्रेम भाव मय रूप मधुरतम,

 जिनके रूपों से शोभित है,

   सबका घर, आँगन, चौबारा,

उन बेटी,माँ,बहिन, भार्या, 

   महिलाओं को नमन हमारा।


अन्नपूर्णा देवी बनकर जो

     जग की है भूख मिटाती,

सबकी क्षुधा पूर्ति करके ,

    बचे शेष,उसको ही खाती,

जो संयम, संतोष की देवी,

    प्रेम मूर्ति, वात्सल्य रूपिणी,

दुखमय क्षण में जगत हेतु जो,

    निज स्मित से रंज तारिणी,

जो संतति की सतत् रक्षिका,

   करती सतत् विकास हमारा,

अन्नपूर्णा देवि स्वरूपा,

   महिलाओं को नमन हमारा।


जिनसे लक्ष्य सुगम हो जाता,

   जिनसे जीवन पथ आलोकित,

जिनसे मन मंदिर दीपित है,

  जिनसे वैचारिकता धूपित,

जिनसे चार पदार्थ सुलभ हैं,

  जिनसे जन्मा त्याग, समर्पण, 

जिनसे हृदय का प्रक्षालन,

  जिनसे संभव जीवन कण कण,

जिनसे पल पल सीख रहा है,

   अब तक मानवता जग सारा,

विश्व सृजन करने वाली उन,

   महिलाओं को नमन हमारा।


जिनके पावनतम रिश्ते से, 

    चमक रहा है हाथ हमारा, 

जिनके रोली औ चावल से, 

    दमक रहा है माथ हमारा, 

जिनके कोमल प्यार हेतु, 

    दरवाजे खुले हुए पीहर के, 

जिनके आने जाने ही से , 

    उत्सव पर्व महकते घर के,

अपना सबकुछ वार जिन्होंने , 

    भैया का घरवार सँवारा, 

सृजनात्मक विचार वाली उन 

     महिलाओं को नमन हमारा। 


जो हमको आदर्श समझ कर, 

   पिता मान कर मान दे रहीं, 

मान हमें सर्वज्ञ, स्वयं अल्पज्ञ, 

    जो हमसे ज्ञान ले रहीं, 

जो वट जान हमें, लघु लतिका 

    सी है गले लिपटती जातीं, 

पा आश्रय आबद्ध हमारा, 

    बन आश्रित बेटी कहलातीं, 

इनका अनुशासित हँसना ही, 

    होता है घर का उजियारा, 

जनक नंदिनी सी ऐसी इन, 

    महिलाओं को नमन हमारा। 


गुण से ओतप्रोत हैं नारी, 

   तब ही इनका नाम सुशीला, 

किंतु अगर दुर्गा बन जाती, 

   तो फिर होती, अलग ही लीला, 

शिशु रक्षा को सदा सिंहिनी, 

   और समर्पण में कोमलतम, 

जगजननी संग कालरात्रि भी, 

    प्रेम भाव मय रूप मधुरतम, 

जिनके ज्योतिर्मय हृदय से,

    होता नहीं रंज अँधियारा, 

ऐसी पालनहारी महिलाओं 

    को शत शत नमन हमारा। 


 ज्ञानेश कुमार मिश्र अजमेर 


मुहब्बत चाहिए अगर तो नफरत ना फैलाओ



मुहब्बत चाहिए अगर तो 

नफरत ना फैलाओ

मिलेगा अमन तुम्हे 

शांति से बात समझाओ


ये कौन सा रास्ता तुमने अपनाया है

तीसरी पारी का विश्व युद्ध खेल कर

तुमने इतिहास के पाठ को भुलाया है। 


सियासी राजनेता के लिए 

सिर्फ अंकड़ो के खेल हुए 

युद्ध में मरने वालो के कभी  

निश्चित आंकड़े नहीं हुए। 


पहले भी विश्व युद्ध की चिट्टिया सुनाई थी

शांति के लिए हो रहा ये कैसा युद्ध भाई 

धरा गगन के बीच खालीपन  छोड़ जाएगी 


सैनिक अपाहिज बन 

जीने को मजबूर हो जाएंगे 

कुछ मर जायेंगे तो 

कुछ अपनो को खो जायेंगे 


मातृ भूमि से पलायन का दर्द  झेलेंगे

औरतों और बच्चों पर क्या क्या गुजरेगी 

सहोदर रहे दो मुल्क शत्रुता झेलेंगे। 


कीमतों में इजाफा

महंगाई बोझ बढ़ते जाएंगे 

पटरी से उतरती अर्थव्यवस्था

रास्ते पर वापस कैसे लायेंगे।


दुनियाभर की अर्थव्यवस्था पर ये युद्ध संकट है 

युद्ध से होता रहा है सदा विनाश मेरे भाई 

मिलेगा अमन तुम शांति से बात समझाओ


मुहब्बत चाहिए अगरतो नफरत ना फैलाओ

मुहब्बत चाहिए अगर तो नफरत ना फैलाओ


गरिमा खंडेलवाल 

उदयपुर  राजस्थान


महिलाओं को नमन हमारा


महिलाओं को नमन हमारा,

गुलशन जिनसे चमन हमारा ।

शक्ति का भण्डार अनूठा,

ममता का वो भवन हमारा ।।

महिलाओं को नमन हमारा,

गुलशन जिनसे चमन हमारा ।

स्वर्णिम युग की यही धरोहर,

करतब इनके बड़े मनोहर ।

चुनौतियों पर रहती तत्पर,

कर्म-कला ही उनके जौहर ।।

धैर्यपूर्वक हवन सँवारा,

महिलाओं को नमन हमारा,

गुलशन जिनसे चमन हमारा ।

माँ-बहिन का रूप है जिनमें,

लक्ष्मी का स्वरूप है जिनमें ।

महाशक्ति संघर्षमयी जो,

दुर्गा का एक रूप है जिनमें ।।

किया मिथ्या का दमन सारा,

महिलाओं को नमन हमारा,

गुलशन जिनसे चमन हमारा ।

जीवन के हर मोड़ मोड़ पर,

सर्वगुणों का बिगुल बजाया,

रंग बिखेरे खूबी के नित,

जिनसे सारा बाग़ सजाया,

नित्य-निरंतर इस वसुधा पर 

मंगलमय आगमन तुम्हारा,

महिलाओं को नमन हमारा,

गुलशन जिनसे चमन हमारा ।

शक्ति का भण्डार अनूठा,

ममता का वो भवन हमारा ।।

महिलाओं को नमन हमारा,

गुलशन जिनसे चमन हमारा ।

(स्वरचित/मौलिक/अप्रकाशित)

(रचनाकार: बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज")

     कोटा (राजस्थान)

अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस पर सभी महिलाओं को

 1. महिला= मही(पृथ्वी) पर ला(लानेवाली)। {इसका अभिप्राय 'जन्मदात्री' है, न कि धरती पर पटकनेवाली} 

      सृष्टिकर्त्ता के रूप में ब्रह्मा जी का स्मरण वैदिक-संस्कृति में किया गया है, यह सत्य है, किन्तु वर्तमान में हमारी दैहिक-सृष्टि का कर्त्री यदि कोई है, जिसे हम साक्षात् जानते हैं, तो वह 'महिला' ही है, जो मातृत्व के द्वारा 'निर्मात्री' भी होती है और 'जननी' भी है। 

 'मह् पूजायाम्' धातु से निष्पन्न होने के कारण भारतीय संस्कृति में 'महिला' शब्द स्वाभाविक रूप से समादृत-व्यक्तित्व के लिये ही प्रयुक्त होता है। 

2. गृहणी= 'गृह' (पूरा परिवार) हो जिसके अवदानों का 'ऋणी'। यद्यपि यह अर्थ भले ही व्यंग्यार्थ के रूप में ग्रहण किया जाता हो, परन्तु यह सुनिश्चित है कि 'गृह' की पूर्णता व सार्थकता तो गृहिणी के आधान से ही जीवन्त होती है। 

3. स्त्री =  'स्त्यै शब्द-संघातयोः' धातु/क्रिया के अर्थ के अनुसार जिसके निमित्त से शब्दों का सृजन प्रारंभ होता है (ज्ञातव्य है कि विश्वस्तरीय अध्ययन से यह ज्ञापित होता है कि कोई भी शिशु अपने जीवन का प्रथम-शब्द 'माँ' का वाचक ही बोलता है और उस बालक की प्रथम-शिक्षिका भी उसकी माँ ही होती है।) अतः शब्द-प्रक्रिया के जन्म/आविष्कार एवं विकास में स्त्री-सत्ता का अनन्य-योगदान होने से उन्हें 'स्त्री' कहा गया है। 

     तथा 'परिवार' नामक प्राथमिक-संघटन का आधार भी स्त्री ही होती है। यदि स्त्री न हो, तो व्यक्ति कभी संघटित होने की मानसिकता में ही नहीं आयेगा। दूसरे शब्दों में कहा जाये तो मनुष्य को 'सामाजिक-प्राणी' कहा तो जाता है, किन्तु उसकी संघटनात्मक-सामाजिकता की सूत्रधार यही 'स्त्री' होती है। 

4. वनिता= "यूनां परिणता तपस्येति मतं मम"-- यह परिचय कोशग्रन्थों में 'वनिता' शब्द का दिया गया है। इसका अर्थ है कि जो युवजनों को तपस्या/मेहनत में परिणत कर दे, वह 'वनिता' है। इसे मोटिवेशन/संप्रेरक अर्थ में लिया जाना चाहिये। 

5. नारी= यह शब्द भले ही 'नर' का स्त्रीत्वबोधक रूप है, परन्तु 'नर' शब्द के जो अर्थ श्रेष्ठ, शौर्यवान्/पुरुषार्थी आदि किये जाते हैं, तो वे सभी अर्थ स्वाभाविक रूप से 'नारी' शब्द में परिगृहीत हो ही जाते हैं, क्योंकि यह नर शब्द का ही रूप है। 'नर' तो अकेला 'अवघड़' (बिना शरीर-संस्कारों के) ही रह जाता, उसे 'सुघड़' बनने की प्रेरणामूर्ति तो 'नारी' ही होती है। 

     'नारी' शब्द के विषय में कुछ लोग 'न+अरि=नारि' व्याख्या भी करते हैं, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि 'नारी के समान नर का कोई शत्रु/अरि नहीं है', बल्कि 'नारी नर की अरि' नहीं है-- यह लिया जाना चाहिये, क्योंकि वही नारी तो उसके हृदय में अनुराग का अंकुरण करती है। 

6.भामा/भामिनी= यह सौन्दर्य एवं आभा/चमक का वाचक शब्द है। वे स्वयं भी आभावती होतीं हैं और पुरुषों के चेहरों की आभा को बढ़ा भी सकतीं हैं और प्रतिकूल होने पर उस चमक को गायब भी कर सकतीं हैं-- ऐसी विशिष्ट-क्षमता के कारण उन्हें 'भामा/भामिनी' कहा गया है। 

7. भार्या= जो 'भवन' को 'घर' बना दे, और जो घर में समृद्धि की कारण बने, इस अर्थ में 'भार्या' शब्द का प्रयोग है। व्यंग्य-कवि इसे 'भार/भारी' के अर्थ में कहकर अपनी भड़ास निकालते अवश्य हैं, किन्तु यह तथ्य से परे है। 

8. मादा= यह 'नर' के विपरीत-लिंगी के रूप में समझा जानेवाला वैदेशिक शब्द है, किन्तु भारत की प्राचीन जनभाषा प्राकृत में माँ/माता को ही 'मादा' कहा गया है-- "मादा दे पुज्जा जादा" कहकर उसे स्वाभाविक रूप से 'आदरणीया' कहा है।


*सभी महिलाओं को उनकी अन्तरराष्ट्रीय महिमा के स्वीकार-दिवस पर हार्दिक बधाई। यह एक दिन आपकी महिमा का विश्वस्तर पर मनाया जाता है, किन्तु हमारे देश में तो हर दिवस ही 'महिला-दिवस' होता है।

 प्रो. सुदीप कुमार जैन, नई दिल्ली


भारतनामा पुस्तक पर केंद्रित भारतीय ज्ञानपीठ के वाक् कार्यक्रम के अंतर्गत दूसरी वेबीनार परिचर्चा

 भारतनामा पुस्तक पर केंद्रित भारतीय ज्ञानपीठ के

     वाक् कार्यक्रम के अंतर्गत दूसरी वेबीनार  परिचर्चा  5/3/2022   को सम्पन्न हुई। चर्चा का विषय था कौन से भरत के नाम पर हमारे देश का नामकरण भारत हुआ।  इस विषय में क्या कहते हैं पुरातात्त्विक, ऐतिहासिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक प्रमाण? क्या दुश्यंत शकुन्तला पुत्र भरत वास्तव में हमारे देश के नामकरण का हेतु हैं या फिर  प्रामाणिक जानकारियां आदि पुरुष आदिनाथ ऋषभदेव पुत्र भरत को हमारे देश का नामकरण भारत होने का हेतु बताती हैं।

                    डॉ मैन्युअल जोजे़फ के सांनिध्य में   आयोजन की अध्यक्षता  डॉ श्रीनेत्र पांडेय ने की। डॉ करुणशंकर शुक्ल ,डॉ जितेन्द्र बी शाह ,डॉ. रिजवाना जमाल ,डॉ. नवीन श्रीवास्तव एवं श्री शैलेन्द्र जैन ने अपने अपने ढंग से प्रस्तुत विषय पर प्रमाण सहित वक्तव्य दिए एवं अनेक नए प्रमाणों की भी जानकारी दी। सभी ने कर्मयुग के अधिष्ठाता ऋषभदेव के पुत्र भरत को ही ऐतिहासिक, साहित्यिक एवं पुरातात्त्विक दृष्टि से दुश्यंत पुत्र से पूर्व होना स्वीकार किया।

                     डॉ मैन्युअल जोजे़फ ने ऋषभदेव को केशी, आदिनाथ, आदिदेव ,शिश्नदेव,महादेव बताते हुए धोलावीरा की खुदाई से प्राप्त दिगम्बर एवं केशी रुप ऋषभदेव की मूर्तियों के अवशेषों के चित्र एवं रिपोर्ट साझा की। डॉ श्रीनेत्र पांडेय ने कहा कि इस विषय पर और चर्चाएं होनी चाहिएं क्योंकि विषय की महत्ता इतनी अधिक है कि सत्य की प्रतिष्ठा होना आवश्यक है।

           संचालन प्रो. जसविंदर कौर बिंद्रा‌ ने किया। पुस्तक की संपादक डॉ प्रभाकिरण जैन ने कहा कि सत्य को भले ही ढांपा जाए या झुठलाया जाए उसके अवशेष कभी खत्म नहीं होते। भारतनामा को उन्होंने सत्यान्वेषी अध्येताओं एवं विचारकों के लिए विनम्र प्रस्तुति बताया एवं शोध को जारी रखने पर बल दिया । इसके साथ ही उन्होंने सबका आभार व्यक्त किया।

           आयोजन में देश दुनिया से जू़म के माध्यम से अनेक सत्यान्वेषी श्रोताओं ने चर्चा में भाग लिया। साहू अखिलेश जैन, राकेश मेहता, डॉ डी सी जैन, सुनीता तिवारी, चंद्रकांत पाराशर, आकाश जैन, अदिति माहेश्वरी, कमल कुमार, मनीष रावत, माधुरी काले,सम्मेद कुमार पाटील,प्रभु ठक्कर,राजन वैशम्पायन, साधना द्विवेदी, डॉ नीलम जैन,शिव विष्णु, डॉ रवि शर्मा, राहुल जैन, सोनू रावत, राहुल तिवारी,कोइजम किरण कुमार सिंह , डॉ शैलेन्द्र सिंह एवं अनेक अन्य गणमान्य महानुभावों ने अपनी भागीदारी से आयोजन को सफल बनाया।


जी हां मैं एक नारी हूं...,

 

बेटी हूं मैं भारत माता की  , दिव्य भारत की भव्य भारत की मैं एक नारी हूं।

कलियों जैसी कोमल हूं पर कोई कंटक बनकर आए तो चिंगारी हूं।

जी हां मैं एक नारी हूं।


साथ देना हैं तो दिजीए, वर्ना रहने दिजीए। 

बाधक ना बनिए मेरे पथ में , मुझे अपना काम करने दिजीए। 

मैं अपने पथ आगे बढती रहूंगी , हर बाधा से लडती रहूंगी।

हर चोंटी पर चढती रहूंगी , गीत खुशी के गढती रहूंगी। 

ना तो हिम्मत हारी मैंने और ना हिम्मत हारूंगी।

भारत माता की सेवा में तन मन धन सबकुछ वारूंगी। 

विश्व पटल पर यशगान करूंगी भारत का ।

नभ-जल-थल में गुणगान करूंगी भारत का।

जय हिंद जय हिंद सदा ऊचारूंगी। 

बगिया हूं में रंग - बिरंगे फूलों की मैं केशर की क्यारी हूं।

जी हां मैं एक नारी हूं।


निरीह नहीं हूं निर्बल नहीं हूं , सबल और  सशक्त हूं।

व्यक्त में अव्यक्त हूं और अव्यक्त में भी  व्यक्त हूं।

कोमल हूं मैं जितनी , उतनी ही सख्त हूं।

हर मौसम में ममता और स्नेह देने वाला सदाबहार दरख्त हूं।

समय के सूरज के साथ चलने वाली दुश्मनों की छाती पर मूंग दलने वाली।

आंधी तूफानों में भी जलने वाली , अभावों में भी पलने वाली।

भारत माता की बेटी बडी दुलारी हूं।

जी हां मैं भारत की एक नारी हूं।

मधु मंगलम जबलपुर

Featured Post

महावीर तपोभूमि उज्जैन में द्वि-दिवसीय विशिष्ट विद्वत् सम्मेलन संपन्न

उज्जैन 27 नवम्बर 2022। महावीर तपोभूमि उज्जैन में ‘उज्जैन का जैन इतिहास’ विषय पर आचार्यश्री पुष्पदंत सागर जी के प्रखर शिष्य आचार्यश्री प्रज्ञ...

Popular