मैं हनुमान जी कि अनन्य भक्त हूँ | मैं एक पूजा करती हूँ जिसमें 108 बत्ती ऊपर लेकर जाती हूँ और फिर वापस लेकर आती हूँ | मुझे पूरा विश्वास है कि इस पूजा के सार्थक परिणाम हैं |
हम और हमारे सम्धी जी परिवार के साथ श्रीलंका दौरे पर जाने वाले थे | यह 8 - 10 दिन का दौरा था | मेरी 105 बत्ती हो चुकी थी | मुझे लग रहा था कि अगर पूजा खंडित होगी तो उसके नकारात्मक परिणाम होंगे और अगर मैंने किसी और यह पूजा बीच में दी तो शायद इसका फल उसी को मिल जायेगा इसलिए हमने यह निर्णय किया कि मैं अपना दीया और बाती साथ लेकर ही श्रीलंका जाऊँगी, क्यूंकि मुझे पूर्ण विश्वास था कि मुझे इस पूजा का फल दादी बनने के रूप में ही मिलेगा | सो हम श्रीलंका पहुँच गये |
वहाँ ऊँचे पहाड़ पर हनुमान जी का मंदिर था | वहाँ से पूरी श्रीलंका नज़र आ रही थी | मैं हनुमान जी के मंदिर को देखकर गदगद हुई और मेरे मुँह से निकला कि - अरे ! मेरे हनुमान जी तो यहाँ बैठे हुए हैं | उसी दिन मेरी 108 बत्ती भी पूरी होने वाली थी | परन्तु समय निकलने के कारण हमें वहाँ दर्शन नहीं मिल पाये | हालाँकि हम मिन्नते करके पीछे के दरवाज़े से अंदर गये, परन्तु मुख्य द्वार बंद होने के कारण हम दर्शन से वंचित रह गए | मुझे बहुत दुःख हुआ, मुझे ऐसा लगने लगा जैसे किसी ने मेरे अरमानों पर पानी फेर दिया हो | मेरे मुँह से तत्काल निकला कि अगर मैंने सच्चे मन से पूजा की है तो आप मुझे दर्शन अवश्य देंगे और मैं एक सवा रूपये का टोटका बोलती हूँ, मैंने वह भी बोल दिया |
अब हम वहाँ से निकलकर 6 - 7 किलोमीटर दूर एक झरने पर पहुँच चुके थे परन्तु मेरा मन बहुत बेचैन था, मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था | और देखिये ईश्वर का चमत्कार - जैसे ही हमने खाने का प्रयास किया तो वहाँ नॉनवेज खाना मिल रहा था और वहाँ हनुमान जी के मंदिर पर वेज, तो यह निर्णय लिया गया कि हम हनुमान जी के मंदिर पर ही वापस चलेंगे | मेरी तो ख़ुशी के मारे बांछे खिल रही थी | मेरे हनुमान जी की रहमत मुझ पर बरस रही थी | हम हनुमान जी के मंदिर पर वापस आये और हम सबने नतमस्तक होकर वहाँ दर्शन किये | हमें पंडित जी द्वारा एक फल भी दिया गया | मेरी ख़ुशी का पारावार नहीं था | मुझे लग रहा था कि यह मेरी पूजा सार्थक होने के संकेत हैं | मैं नतमस्तक हुए जा रही थी और देखिये करिश्मा कि जैसे ही मैं वहाँ से लौटी तो मैं दादी बनने की ख़ुशी से सराबोर थी |
मुझे ईश्वर ने वहीं विश्वास करा दिया था कि तुम्हारीं खुशियों सी झोली भरने वाली हैं | ईश्वर हमें संकेत मात्र देते हैं कि मैं तेरे आस - पास ही हूँ | तू मुझ पर विश्वास कर "शकुन " और अपनी सब चिंताओं का भार मुझ पर छोड़ दे | बस अपना कर्म करता रह बन्दे, मैं तेरे साथ हूँ | मैं इन्हीं चमत्कारों की वज़ह से कहती हूँ कि - "ईश्वर है यहीं - कहीं" |
- शकुंतला अग्रवाल, जयपुर
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