ये दुनिया तो गूंगी बहरी है..!

 रखना हर एक क़दम संभल कर ज़िंदगी खाई गहरी है..!

कोई बचाने नहीं आएगा बंदे ये दुनिया तो गूंगी बहरी है..!


उसे मिली है मुकम्मल मंज़िल जो संभल कर चला है..!

अंधेरों का जिसे खौंफ नहीं और जो धूप में जला है..!

आसान नहीं है सफ़र जिंदगी का यह कांटो की डगर है..!

कभी तूफान के दौर आते हैं तो कभी आता जलजला है..!

हौसलों के आगे यह मुश्किलें कब कहां ठहरी है..!

रखना हर कदम संभल कर..


तू शोहरतो की चाहत रखता है तो मेहनत से जी ना चुराना..!

ज़ख्म कितने भी गहरे मिले तुझे सदा ही मुस्कुराना..!

अश्क भरी आंखों से तो मंजिल धुंधली दिखती है..!

अकेले में रो लेना पर महफिल में कभी अश्क ना बहाना..!

जो मुस्कुराता हुआ चला उसी की ज़िंदगी सुनहरी है..!

रखना हर कदम संभल कर


कमल सिंह सोलंकी

रतलाम मध्यप्रदेश

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