रंगों से सजी रंगोली
समरसता है रंगों की
तू भी मिल मैं भी मिलु
ये सरसता हमजोली की।
2
तन - मन का मेल हो जाए
जीवन एक स्वप्न खेल हो जाए
भावना भांग - सी घुल जाए
मन-प्रेम का नशा चढ़ जाए।
3
शब्दों की पिचकारी मिले
हर मन नहलाए हम सब
साफ करे जाति भेद- पंक को
कुछ रंग अलग चढा़ये सब।
4
राग द्वेष का कपूर बनाकर
होम करेंगे होली में
स्वच्छ बनेगे भाव-गगन के
हिंदू संस्कृति झोली में।
5
मृदंग बने फागुन की मस्ती
भंवरों का उसमें गान हो जाए
नव पल्लव नव कुसुम भी नाचे
बसंती बहारों का जाम हो जाए।
6
नीली पीली हरी गुलाल का
सतरंगी सुबह शाम हो जाए
मै भी मिलु तू भी मिले
ये चर्चा चहुँ आम हो जाए।
रूपनारायण'संजय
कोटा, राजस्थान
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