श्रीमती कमला जैन के पति दिवाकर जी अस्पताल में भर्ती थे। दिवाकर जी को रिटायर हुए कुछ साल हो गए हैं उनका एक ही बेटा है जो विदेश में है। कुछ दिन से जैन साहब को पेट दर्द की शिकायत हो रही थी पिछली रात दर्द बढ़ने से उन्हें तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। इतना समय नहीं था कि उनके बेटे को बुलाया जा सके इत्तेफाकन कोई रिश्तेदार भी शहर में नहीं रहता था, उनकी किडनी में स्टोन था ऑपरेशन टाला नहीं जा सकता था। ऑपरेशन हो गया और सफल रहा।
श्रीमती कमला परेशान थी कि ऐसी मुश्किल घड़ी में कोई अपना पास में सेवा करने वाला नहीं। लेकिन वहां एक शख्स वार्ड में जरूरत मंदों की निस्वार्थ सेवा किया करता है जिसका नाम किशना था। जब दिवाकर जी को वार्ड में लाया गया तब किशना वहीं था, उसने कमला जी से पूछा कि आपके साथ कौन है अम्मा कमला जी ने कहा कोई नहीं बेटा। किशना ने उनके दुःख को समझा और कहने लगा अम्मा आप चिंता ना करें मैं बाबा की सेवा करूंगा। कमला जी कि आंखों में पानी बहने लगा ये सोच कर कि अभी भी दुनिया में ऐसे लोग हैं ।सच में जितने दिन वह अस्पताल रहे किशना पूरी तरह उनकी देखभाल करता रहा। अब कमला जी निश्चिंत हो एक दो बार घर भी हो आईं। जब दिवाकर जी को छुट्टी मिली तो वो किशना की सेवा देख गदगद हो उठे और उसे अपने गले लगा लिया, कहने लगे बेटा तुमने जो निस्वार्थ सेवा की है मेरी उसका कोई मोल नहीं। किशना ने कहा बाबा आपने मुझे बेटा कहा बस मुझे मेरी सेवा का फल मिल गया। इसे कहते हैं निस्वार्थ और सच्ची सेवा।
रमा भाटी
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