किस्मत का क्या रोना


लिखा हुआ प्रारब्ध में,

मंजूर वही जो होना ।

कर्म है वश में तेरे फिर,

किस्मत का क्या रोना ।।

सोच सकारात्मक रख,

माला जप हरि-नाम की ।

निस्वार्थ भाव से कर्म कर,

चाह न कर परिणाम की ।।

परहित हेतु करो सदा,

न कोई उससे उत्तम ।

नेक भाव मन में तेरे,

काया हो सर्वोत्तम ।।

ईश-भजन और मृदु वचन,

ही एक सच्चा सोना ।

कर सकता न असर कोई,

कैसा भी जादू टोना ।।

मन-निर्मल-निश्छल रख,

बीज खुशी के बोना ।

कर्म है वश में तेरे फिर,

किस्मत का क्या रोना ।।

लिखा हुआ प्रारब्ध में,

मंजूर वही जो होना ।

कर्म है वश में तेरे फिर,

किस्मत का क्या रोना ।।


 बृजेन्द्र सिंह झाला"पुखराज"

     कोटा (राजस्थान)

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