प्रेम भाव मय रूप मधुरतम,

 जिनके रूपों से शोभित है,

   सबका घर, आँगन, चौबारा,

उन बेटी,माँ,बहिन, भार्या, 

   महिलाओं को नमन हमारा।


अन्नपूर्णा देवी बनकर जो

     जग की है भूख मिटाती,

सबकी क्षुधा पूर्ति करके ,

    बचे शेष,उसको ही खाती,

जो संयम, संतोष की देवी,

    प्रेम मूर्ति, वात्सल्य रूपिणी,

दुखमय क्षण में जगत हेतु जो,

    निज स्मित से रंज तारिणी,

जो संतति की सतत् रक्षिका,

   करती सतत् विकास हमारा,

अन्नपूर्णा देवि स्वरूपा,

   महिलाओं को नमन हमारा।


जिनसे लक्ष्य सुगम हो जाता,

   जिनसे जीवन पथ आलोकित,

जिनसे मन मंदिर दीपित है,

  जिनसे वैचारिकता धूपित,

जिनसे चार पदार्थ सुलभ हैं,

  जिनसे जन्मा त्याग, समर्पण, 

जिनसे हृदय का प्रक्षालन,

  जिनसे संभव जीवन कण कण,

जिनसे पल पल सीख रहा है,

   अब तक मानवता जग सारा,

विश्व सृजन करने वाली उन,

   महिलाओं को नमन हमारा।


जिनके पावनतम रिश्ते से, 

    चमक रहा है हाथ हमारा, 

जिनके रोली औ चावल से, 

    दमक रहा है माथ हमारा, 

जिनके कोमल प्यार हेतु, 

    दरवाजे खुले हुए पीहर के, 

जिनके आने जाने ही से , 

    उत्सव पर्व महकते घर के,

अपना सबकुछ वार जिन्होंने , 

    भैया का घरवार सँवारा, 

सृजनात्मक विचार वाली उन 

     महिलाओं को नमन हमारा। 


जो हमको आदर्श समझ कर, 

   पिता मान कर मान दे रहीं, 

मान हमें सर्वज्ञ, स्वयं अल्पज्ञ, 

    जो हमसे ज्ञान ले रहीं, 

जो वट जान हमें, लघु लतिका 

    सी है गले लिपटती जातीं, 

पा आश्रय आबद्ध हमारा, 

    बन आश्रित बेटी कहलातीं, 

इनका अनुशासित हँसना ही, 

    होता है घर का उजियारा, 

जनक नंदिनी सी ऐसी इन, 

    महिलाओं को नमन हमारा। 


गुण से ओतप्रोत हैं नारी, 

   तब ही इनका नाम सुशीला, 

किंतु अगर दुर्गा बन जाती, 

   तो फिर होती, अलग ही लीला, 

शिशु रक्षा को सदा सिंहिनी, 

   और समर्पण में कोमलतम, 

जगजननी संग कालरात्रि भी, 

    प्रेम भाव मय रूप मधुरतम, 

जिनके ज्योतिर्मय हृदय से,

    होता नहीं रंज अँधियारा, 

ऐसी पालनहारी महिलाओं 

    को शत शत नमन हमारा। 


 ज्ञानेश कुमार मिश्र अजमेर 


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