'स्त्रीत्व"



'स्त्रीत्व"

स्त्रि जब तक 

ना मिले 

इंतजार का 

सूरज न डूबे 

बेताबी बेकरारी 

सुंदरता अक्षुण?

औरत एक रात हैं

जिसमे छुपे है असंख्य

 तारो से चमकते गुण 

एक चाँद सा दिल 

लिए बिखेरती हैं

 चाँदनी बना,

खुद  का कतरा- कतरा 

प्रेम  में निरुपित कर,

खुद को

चन्द्रकलाओ सी

कभी घटती  

कभी बढ़ती सी

जहाँ में चाँदनी, 

जीवन के पखवाड़े 

बदलती रहती हैं 

एक दिन दूज का चाँद

होती हैं 

एक दिन ईद का चाँद 

एक दिन 

पूर्णिमा बन 

रोशनी से भर देती हैं 

कायनात का

 कतरा- कतरा 

तब,

निशा हसीन हो 

सुराही से प्याले दर प्याले 

ढलकाती

इठलाती 

रूमानियत भर

यौवन के

नशे में चूर, 

रवि का रस पान कर लेती हैं

ओस की बूंदे 

भले ही

स्वागत में चमक उठती हैं 

अरूणादयो की प्रथम किरण से

तारे अपना अस्तित्व खोते 

ओझल हो 

चले जाते हैं दूर कही

 शीतल चाँदनी 

गर्माहट में बदल जाती हैं 

न जाने कब

सन्नाटे में महकती

 रात रानी की

सुगंध 

न जाने कहा खो जाती हैं

औरत का  स्त्रीत्व खोने के

 साथ हीअस्तित्व 

भी खो जाता हैं ....।


मंजू किशोर "रश्मि"

"कोटा राजस्थान "


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