🙏🙏 समणं सुत्तं/श्रमण सूत्र 🙏🙏

 🙏🙏 समणं सुत्तं/श्रमण सूत्र 🙏🙏


24 वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी की 2500 वें जन्मकल्याणक पर 1975 में दिगम्बर और श्वेतांबर मुनियों की प्रेरणा मूल ग्रन्थों से जैन विद्वानों द्वारा 756 प्राकृत गाथाएं संकलित करके समणं सुत्तं ग्रन्थ की रचना की गई। जिसे जैन धर्म का सार ग्रन्थ कहा जा सकता है। 


जैन आचार्य विद्यासागर जी ने " समणं सुत्तं " की सभी गाथाओं का काव्यानुवाद करके " जैन गीता " नामक काव्य की रचना की है।


मूल प्राकृत गाथाएं, भावार्थ सहित  काव्यानुवाद प्रस्तुत है।


प्राकृत गाथा


जेण विणा लोगस्स वि, ववहारो सव्वहा न निव्वहइ।


तस्स भुवणेक्कगुरुणो, णमो अणेगंतवायस्स।। १६६ ।।


भावार्थ - 


जिसके बिना लोक का व्यवहार बिल्कुल नहीं निभता है, उस मनुष्यों के केवल मात्र गुरु अनेकान्तवाद को नमस्कार।। १६६ ।।


काव्यानुवाद


जो विश्व के विविध कार्य हमें दिखाते,


भाई, बिना जिसके चल वे न पाते।


अनेकान्तवाद वह है जगदेक स्वामी,


बन्दू उसे विनय से शिव पन्थगामी।। १६६ ।।


प्रस्तुति - सुमेर चन्द जैन प्राकृताचार्य

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