माला


साँसों की माला टूट गयी तब,

जोड़ने वाला कोई नहीं,

यौवन के मद में भरके बन्दे,

तू इतना इतराता है,


तुझे सुबह-शाम का पता नहीं,

फ़िर भी तू गणित लगाता है,

यौवन तेरा ढलने लगा जब,

चाम का प्यारा कोई नहीं,


साँसों की माला टूट गयी तब,

जोड़ने वाला कोई नहीं,

माटी तेरा जिस्म बनेगा,

राख उड़ेगी इक पल में,


यार-दोस्त तेरे सगे-सम्बन्धी,

रो-रोकर नीर बहायेंगे,

जो तुझसे लिपटे जाते थे,

वही ख़ौफ़ खायेंगे,


साँस तन से निकल गयी तो,

जग में रखईया कोई नहीं,

साँसों की माला टूट गयी तब,

जोड़ने वाला कोई नहीं,


तन-मन तूने होम किया है,

जिनको आज बनाने में,

घर हो या महल-दूँमहले,

सभी यहीं रह जाएंगे,


संग में तेरे कफ़न चलेगा,

संग में चलैया कोई नहीं,

साँसों की माला टूट गयी तब,

जोड़ने वाला कोई नहीं,


यारे-प्यारे सगे-सम्बन्धी,

जल्दी तुझे उठाएंगे,

ले जाकर तुझको बन्दे,

अग्नि में वो जलाएंगे,

कपाल क्रिया तेरी होगी,

"शकुन" तुझको बचैया कोई नहीं,

साँसों की माला टूट गयी तब,

जोड़ने वाला कोई नहीं || 


- शकुंतला अग्रवाल, जयपुर

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