अदालत देखती है

मेरे सच को तो अब जरुरी सहारा ख़िताबत का

थक गया,बयां कर रोज़ वो किस्सा ख़जालत का


इक उम्र बीत गयी है लगा चक्कर अदालत के मेरे

अब तो एहसास भी मर गया है इसी तवालत का


खुदा के पास जाऊँगा कैसे,जीत के कानूनी जंग

उड़ा मज़ाक मेरी,जुरअत,शुजाअत,वसालत का


कानून की देवी की तराजू में भी, भर दी दौलतें

अब रह गया है आसरा,खुदा की किफ़ालत का


इश्क की अदालत में ये क्या कह दिया उन्होंने 

पछतायेगा,ले ले वापस तू किस्सा ज़ुल्मत का 


हार कर तब मैनें उनसे सजा-ए-मौत मांग ली

उनहोनें फैसला लिखा,कर इंतजार क़यामत का


अदालत देखती है कागज पे लिखे लफ्जों को

देवेश देखे फैसला इन्सानियत की फ़जीहत का

       -------- संजय गुप्ता देवेश

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